नसीब

                       !!!!!!!! नसीब !!!!!!!!
                      (कहानी -उपासना सियाग )
                       

 

                      

कॉलेज
में
 छुट्टी
की घंटी बजते ही अलका की नज़र घड़ी
 
पर पड़ी। उसने भी अपने कागज़ फ़ाइल में समेट , अपना मेज़ व्यवस्थित कर
कुर्सी से उठने को ही थी कि जानकी बाई अंदर आ कर बोली
, ” प्रिंसिपल
मेडम जी
, कोई
महिला आपसे मिलने आयी है।”
नहीं
जानकी बाई
, अब मैं
किसी से नहीं मिलूंगी
, बहुत थक
गयी हूँ …उनसे बोलो कल आकर मिल लेगी।”

मैंने
कहा था कि अब मेडम जी की छुट्टी का समय हो गया है
, लेकिन वो मानी नहीं कहा रही है के जरुरी काम
है।” जानकी बाई ने कहा।
अच्छा
ठीक है
, भेज दो
उसको और तुम जरा यहीं ठहरना ….
,”
अलका ने कहा।
    अलका
 भोपाल के
 गर्ल्स
कॉलेज में बहुत सालों
 से
प्रिंसिपल है। व्यवसायी पति का राजनेताओं में अच्छा रसूख है। जब भी उसका
  तबादला
 हुआ तो रद्द करवा दिया गया। ऐसे में वह घर और नौकरी दोनों में अच्छा तालमेल
बैठा पायी।नौकरी की जरूरत तो नहीं थी उसे लेकिन यह उनकी सास की आखिरी इच्छा थी कि
  वह
शिक्षिका बने और
 मजबूर और
जरूरत मंद
  महिलाओं
की मदद कर सके।
       उसकी सास
का मानना था कि अगर महिलाये अपनी आपसी इर्ष्या भूल कर किसी मजबूर महिला की मदद करे
तो महिलाओं पर जुल्म जरुर खत्म हो जायेगा। वे कहती थी अगर कोई महिला सक्षम है तो
उसे कमजोर महिला के उत्थान के लिए जरुर कुछ करना चाहिए।
 
      जब वे
बोलती थी तो अलका उनका मुख मंडल पर तेज़ देख दंग
  रह जाती थी। एक महिला जिसे
मात्र
  अक्षर
ज्ञान ही था और इतना ज्ञान !
       पढाई
पूरी
  हुए बिन
ही अलका की शादी कर दी गयी तो उसकी सास ने आगे की पढाई करवाई। दमे की समस्या से
ग्रसित उसकी सास ज्यादा दिन जी नहीं पाई।  मरने से पहले अलका से वचन जरुर
लिया कि वह शिक्षिका बन कर मजबूर औरतों का सहारा जरुर बनेगी।
अलका ने अपना वादा
निभाया भी।अपने कार्यकाल में बहुत सी लड़कियों और
 औरतों का सहारा भी बनी।अब
रिटायर होने में एक साल के करीब रह गया है।कभी सोचती है रिटायर होने के बाद वह
क्या करेगी ….!

                      
राम -राम
मेडम जी …!” आवाज़ से अलका की तन्द्रा
  भंग हुई।
सामने
उसकी ही हम उम्र लेकिन बेहद खूबसूरत महिला खड़ी थी। बदन पर साधारण – सूती सी साड़ी
थी। चेहरे पर मुस्कान और भी सुन्दर बना रही थी उसे।
राम -राम
मेडम जी
, मैं
रामबती हूँ। मैं यहाँ भोपाल में ही रहती हूँ।
 आपसे कुछ बात करनी थी इसलिए चली आयी।  मुझे
पता है यह छुट्टी का समय है पर मैं क्या करती मुझे अभी ही समय मिल पाया।”
रामबती की आवाज़ में थोडा संकोच तो था पर चेहरे पर आत्मविश्वास भी था।
कोई बात
नहीं रामबती
, तुम
सामने बैठो …!” कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए अलका ने उसे बैठने का इशारा
किया।
अच्छा
बताओ क्या काम है और तुम क्या करती हो …
?” अलका ने उसकी और देखते हुए कहा।
रामबती
ने अलका की और गहरी नज़र से देखते हुए कहा
, ” मेडम जी  , मैं वैश्या हूँ …! आप मेरे बारे में जो चाहे सोच
सकते हो और यह भी  के
 मैं एक
गिरी हुयी औरत हूँ।”
हां गिरी
हुई
  तो हो
तुम …!” अलका ने होठ भींच कर कुछ आहत स्वर में रामबती को देखते हुए कहा।
लेकिन
तुम खुद
  गिरी हो
या गिराया गया है यह तो तुम बताओ। तुमने यही घिनोना पेशा
  क्यूँ
अपनाया।काम तो बहुत सारे है जहान
 में।अब
मुझसे क्या काम आ पड़ा तुम्हें। ” थोडा सा खीझ गयी अलका।
एक तो
थकान  और
  दूसरे भूख भी
लग आयी थी उसे। उसने जानकी बाई को दो कप चाय और बिस्किट लाने को कहा।
पहले
मेडम जी मेरे बारे में सुन तो लो …! साधारण परिवार में मेरा जन्म हुआ।पिता
चपरासी थे।माँ-बाबा की लाडली थी। मेरी माँ तो रामी ही कहा करती थी
 मुझे। हम तीन बहने
दो भाई
,परिवार
भी बड़ा था।फिर भी पिता जी ने हमको स्कूल भेजा।”
       “मेरी
ख़ूबसूरती ही मेरे जीवन का बहुत बड़ा अभिशाप बन गयी। आठवीं कक्षा तक तो ठीक रहा
लेकिन उसके बाद
,मेडम जी.… !  गरीब की
बेटी जवान भी जल्दी हो जाती है और उस पर सुन्दरता तो
कोढ़ में खाज का काम करती 
है।
 मेरे साथ भी यही हुआ।” थोडा सांस लेते हुए बोली रामबती।
  इतने में
चाय भी आ गयी।  अलका ने कप और बिस्किट उसकी और
 बढ़ाते हुए कहा , ” अच्छा
फिर …!”

                      
    ” अब
सुन्दर थी और गरीब की बेटी भी जो भी नज़र डालता गन्दी ही डालता।स्कूल जाती तो चार
लड़के साथ चलते
, आती तो
चार साथ होते। कोई सीटी मारता कोई पास से गन्दी बात करता या कोई अश्लील गीत सुनाता
निकल जाता। मैं भी क्या करती। घर में शिकायत की तो बाबा ने स्कूल छुडवा
दिया।”
    ” कोई साल
– छह महीने बाद शादी भी कर दी। अब चपरासी पिता
 अपना दामाद चपरासी के कम क्या ढूंढता सो मेरा पति
भी एक बहुत बड़े ऑफिस में चपरासी था।
 मेरे माँ-बाबा तो मेरे बोझ से मुक्त हो गए कि
 उन्होंने लड़की को ससुराल भेज दिया अब चाहे कैसे भी रखे अगले
,ये बेटी की किस्मत …! मैं
तो हर बात से नासमझ थी। पति का प्यार -सुख क्या होता है नहीं जानती थी।बस इतना
जानती थी कि पति अपनी पत्नी का बहुत ख्याल रखता है जैसे मेरे बाबा मेरी माँ का रखते
थे।कभी जोर से बोले हुए तो सुना ही नहीं। पर यहाँ तो मेरा पति जो मुझसे
10 साल तो बड़ा होगा ही , पहली रात को ही मेरे चेहरे
को दोनों हाथों में भर कर बोला …!” बोलते -बोलते रामबती थोडा रुक गयी।
चेहरे से लग रहा था जैसे कई कडवे घूंट पी रही हो।
   चेहरे के
भाव सयंत कर बोली
, ” मेडम जी , कितने साल हो गए शादी को
मेरी उम्र क्या है मुझे नहीं याद !लेकिन मेरे पति ने जो शब्द मुझे कहे वह मेरे
सीने में वे आज भी ताज़ा घाव की तरह टीस मारते हैं।वो बोला
,’ तू तो बहुत सुन्दर है री
…! बता तेरे कितने लोगों से सम्बन्ध रहे हैं।
मुझे क्या मालूम ये सम्बन्ध क्या चीज़ होती है भला
…!
मैं
 बोली
नहीं चुप रही।”
  
    ” सुन्दर
पति का दिल इतना घिनोना भी होगा मुझे बाद में मालूम हुआ। पति ने नहीं कद्र की
  तो बाकी
घर वालों नज़र में भी मेरी
  कोई
इज्ज़त नहीं थी। कभी रो ली। कभी पिट ली। यही जिन्दगी थी मेरी। माँ को कहा तो मेरा
नसीब बता कर चुप करवा दिया। शादी के बाद जब पहला करवा चौथ आया तो सब तैयारी कर रहे
थे। मैंने साफ़ मनाही कर दी के मुझे यह व्रत नहीं करना।  मुझे अपने आप और उपर
वाले से झूठ बोलना पसंद नहीं आया। “
  ” सास ने
बहुत भला – बुरा कहा
, गालियां
भी दी मेरे खानदान को भी कोसा। लेकिन मैंने भी अम्मा को साफ़ कह दिया के मैं
 उसके
बेटे जैसा पति अगले जन्म तो क्या इस जन्म में भी नहीं चाहूंगी। मेरी मजबूरी है जो
  मैं यहाँ
रह रही हूँ।यह मेरी पहली बगावत थी। “
   ” शक्की , शराबी और भी बहुत सारे अवगुणों
की खान मेरा पति राम किशन और मैं रामबती ….!ज़िन्दगी यूँ ही कट रही थी। “
   ” मेडम जी
…! मुझे तो सोच कर ही
  हंसी आती
कि उसके नाम में भगवान
 राम और
किशन दोनों और दोनों ही उसके मन में नहीं …! लेकिन
 नाम से
क्या भगवान् बन जाता है क्या …
?”
    ऐसे में सलीम
मेरे जीवन में ठंडी हवा का झोंका बन कर आया। सलीम मेरे पडोसी का लड़का था और मेरा
हम उम्र था। सुना था आवारा था पर मुझे उसकी बातें बहुत सुकून पहुंचाती
 थी। पहले
सहानुभूति फिर प्यार दोनों से मैं बहक गयी और क्यूँ न बहकती आखिर मैं भी इन्सान
थी।
 
    उसके
इश्क में एक दिन घर छोड़ दिया मैंने और कोठे पर बेच दी गयी। एक नरक से निकली दूसरे
नरक
 में
पहुँच गयी। यहाँ तो वही बात हुई
  न मेडम
जी
, आसमान से
गिरे और खजूर में अटके। मैंने  कोशिश भी बहुत
 की वहां से निकलने की लेकिन
नहीं जा पाई और फिर मेरा जीवन रेल की पटरियों जैसे हो गया कितने रेलगाड़ियाँ गुजरी
यह पटरियों को कहाँ मालूम होता है और कौन उनका दर्द समझता है …!” शायद यही
मेरा नसीब था। ” कहते – कहते रामबती की आँखे भर आयी।
    अलका
जैसे उसका दर्द समझते -महसूस करते कहीं खो गयी और जब उसने नसीब वाली बात कही तो
उसे अपने विचार पर थोडा विरोधाभास सा हुआ। हमेशा कर्म को प्रधानता देने वाली अलका
आज विचार में पड़
 गयी कि
 नसीब भी कोई चीज़ होती है शायद …! क्यूँ की उसे तो हमेशा जिन्दगी ने दिया
ही दिया है। जन्म से लेकर अब तक जहाँ पैर रखती गयी जैसे
रेड- कार्पेट खुद ही बिछ गए हों।तो क्या
ये अलका का नसीब था तो फिर का
 कर्म
क्या हुआ …! सोच में उलझने लगी थी वह।
  तभी फॊन
टुनटुना उठा।  अलका ने देखा उसकी बहू
  थी फोन पर ,कह रही
थी
  खाने पर
इंतजार हो रहा है उसका ।अलका ने देर से आने को कह मना
 कर दिया
कि वह खाना नहीं खाएगी। फिर रामबती से कहने लगी कि वह अब उसके लिए क्या कर सकती
है।
वही तो
बता रही हूँ  मेडम जी
, आप के
सामने मन हल्का करने को जी चाहा तो अपनी कहानी सुनाने बैठ गयी। ” रामबती ने
बात को आगे बढ़ते हुए कहा।
मैंने उस
नर्क को ही
 अपना
नसीब ही समझ लिया और अपना दीन -ईमान सब भूल बैठी। दुनिया और उपर वाले से जैसे एक
बदला लेना हो मुझे
, मैंने
किसी पर दया रहम नहीं की
,जब तक
मेरा रूप-सौन्दर्य था तब तक मैंने और बाद में मैंने और भी लड़कियों को इस काम में
घसीटा।
 
    लेकिन
मेडम जी
मुझे
मर्द -जात की यह बात कभी भी
 समझ नहीं
आयी
, खुद की पत्नियों
को तो छुपा -लुका
  कर रखते
है। किसी की नज़र भी
 ना पड़े।
 शादी के पहले भी पाक -साफ बीबी की चाह
  होती है और बाद में भी कोई
हाथ लगा
 ले तो
जूठी हो जाती है …! तो फिर वह हमारे कोठे या और कहीं क्यूँ
जूठे भांडोमें मुहं मारता  है ….
कुत्तों
 की तरह
…!हुहँ ..छि …!! ” मुहं से गाली निकलते -निकलते रह गयी रामबती के मुहं
से।

                        
   ” पिछले एक
सप्ताह से मैं सो नहीं पायी हूँ।  मुझे लगा एक बार रामबती खुद रामबती के
सामने ला कर खड़ी कर दी गयी हो। एक लड़की जिसे दलाल मेरे सामने लाया। शायद वह भी
किसी के प्यार के बहकावे में फांस
  कर मेरे पास लाई गयी हो।
 डर के मारे काँप
 रही थी।
मुझे पहली बार दया आयी उस पर और उससे पूछा तो उसने बताया कि  वह अनाथ है।
 कोई भी नहीं है उसका।  अनाथालय से ही वह बाहरवीं कक्षा में पढाई कर रही
थी। सलोनी नाम है उसका।”
   ” मैं
चाहती हूँ के आप उसके लिए कुछ कीजिये। यही मेरे पाप का प्रायश्चित होगा।”
रामबती ने अपनी बात खत्म की।
रामबती
तुम्हारा ख्याल बहुत अच्छा है। मैं सोच कर बताती हूँ कि  मैं उसके लिए क्या
कर सकती हूँ। अब तुम जाओ और कल शाम को
 उसे मेरे यहाँ ले आओ फिर उससे बात करके तय करेंगे
कि  वह क्या चाहती है। ”      अलका ने भी बात खत्म करते
हुए खड़े होने का उपक्रम किया।
रामबती
भी चली गयी। अलका कॉलेज से घर  पहुँचने तक विचार मग्न ही रही। मन में कई
विचार आ-जा
 रहे
थे।घर पहुँचते ही दोनों बच्चे यानि उसके पोते-पोती उसी का इंतजार कर रहे थे। दोनों
को गले लगा कर जैसे उसकी थकन ही मिट गयी हो।
    रात को
खाने के मेज़ पर उसने सबके सामने
रामबती और सलोनी की बात रखी। अलका के पति निखिल ने कहा कि अगर वह
लड़की आगे पढना चाहे तो उसे आगे पढाया जाये। वह
  उसका खर्चा उठाने को
तैयार है। ऐसा ही कुछ विचार अलका के मन में भी था। बेटे-बहू
  की राय
थी कि
  पहले
सलोनी की राय
 ली जाये।
हो सकता वह कोई काम सीखना चाहे।
    अगली
सुबह रविवार की थी। सारे सप्ताह की भाग दौड़ से निजात का दिन है रविवार अलका के
लिए।हल्की गुलाबी धूप में बैठी अलका कल वाली बात सोच रही थी। उसे रामबती की बातों
ने प्रभावित किया था खास तौर
 पर
पुरुषों की जात पर जो सवाल किया।  वह तो उसने भी कई बार अपने आप से किया था
और जवाब नहीं मिला कभी।
 
     हाथ में
चश्मा पकडे हलके-हलके हाथ पर थपथपा रही थी। उसे
 पता ही नहीं चला निखिल कब
सामने आ कर बैठ गए
 । कुर्सी
के थपथपाने पर उसकी तन्द्रा
  भंग हुई।
उसने निखिल से भी यही सवाल दाग दिया ।
    निखिल ने
कहा
, ” पुराने
समय से ही औरत को सिर्फ देह ही समझा गया है और पुरुष की निजी सम्पति भी …! जो
सिर्फ भोग के लिए ही थी।
 तभी तो
हम देख सकते है कि राजाओं की कई-कई रानियाँ हुआ करती थी।वे जब युद्ध जीता करते थे
तो उनकी रानियों से भी दुष्कर्म करना अपनी जीत की निशानी माना
  करते
थे।अब भी
  पुरुष की
यही प्रवृत्ति है।  वह अब भी उसे अपनी संपत्ति मानता है। और दूसरी स्त्रियों
को भोग का साधन …! इसिलिए वह अपने घर की औरतों को दबा -ढक कर रखना चाहता है।
 लेकिन
औरतों की इस स्थिति का जिम्मेवार मैं खुद औरतों को
  मानता हूँ …! क्यूँ वह
पुरुष को धुरी मानती है
? क्यूँ
नहीं वह अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व रचती
? क्यूँ वह खुद
को पुरुष की नज़रों में ऊँचा उठाने की हौड़
  में अपने ही स्वरूप को नीचा
दिखाती है …! मेरा पति
, मेरा
बेटा  या कोई भी और रिश्ता क्यूँ ना हो
,  झुकती चली जाती है। फिर पुरुष क्यूँ ना फायदा
उठाये
, यह तो
उसकी प्रवृत्ति है …!”
   अलका को
काफी हद तक उसके बातों
 में
सच्चाई नज़र आ रही थी।कुछ कहती तभी सामने से सलोनी और रामबती आती दिखी।
    सलोनी का
सुन्दर मुख कुम्हलाया हुआ और भयभीत था।अलका ने प्यार से सर पर हाथ फिर कर गले से
लगा लिया उसे। जैसे कोई सहमी हिरनी जंगल से निकल कर भेड़ियों
  रूपी
इंसानों में आ गयी हो। सलोनी  आशंकित नज़रों से अलका की तरफ ताक रही थी। अलका
ने उसे आश्वस्त किया कि वह अब सुरक्षित है।उससे उसकी पिछली जिन्दगी का पूछा और आगे
क्या करना चाहती है। सलोनी की पढने की इच्छा बताने पर निखिल ने अपना खर्च वहन करने
का प्रस्ताव रखा।
 इसके लिए
रामबती ने मना
  कर दिया
और कहा
, ” मैंने पाप
-कर्म से
 बहुत
पैसा कमाया है। अब इसे अगर सही दिशा में लगाउंगी तो शायद मेरा यह जीवन सुधर जाये।
 अगले जन्म में अच्छा नसीब ले कर पैदा हो जाऊं।सलोनी का नसीब अच्छा है तभी तो
आपका साथ मिल गया
, यह बहुत
बड़ा अहसान है हम पर आपका मेडम जी -साहब जी …!”
    एक बार
अलका फिर से उलझ गयी कर्म और नसीब में।
 उसने
रामबती से कहा
, ” माना कि
नसीब में क्या है और क्या नहीं
,
कोई नहीं जानता है। लेकिन जो
मिला है
 
उसे ही
नसीब मान लेना कहाँ की समझदारी है। कठिन पुरुषार्थ से नसीब भी बदले जा सकते है।
 

                                                   
हाथ लगते ही मिट्टी
 सोना बन जाये यह नसीब की बात हो सकती है लेकिन जो मिट्टी को अपने पुरुषार्थ
से सोने
  में बदल
दे और अपना खुद ही
 नसीब बना  ले ‘ ऐसा भी
तो हो सकता है। तुम ऐसा क्यूँ सोचती हो ये नारकीय जीवन ही तुम्हारा नसीब बन कर रह
गया है। तुम अब भी यह जीवन छोड़ कर अच्छा और सम्मानीय जीवन बिता सकती हो। तुम अगर
चाहो तो मैं बहुत सारी
  ऐसी
संस्थाओं को जानती हूँ जो तुम्हारे बेहतर जीवन के लिए कुछ कर सकती है। तुम्हारे
साथ और कितनी महिलाये है
?
मेडम जी , क्या सच में ऐसा हो सकता है
? मेरे साथ
मुझे मिला कर छह औरतें है। सच कहूँ तो बहुत तंग आ चुके है ऐसे जीवन से …! क्या
हमारा भी नसीब बदलेगा …!” आँखे और गला दोनों भर आये रामबती के।
यह इंसान
पर निर्भर करता है कि
  वह अपने
लिए कैसी जिन्दगी चुनता है। ईश्वर अगर नसीब देता है तो विवेक भी देता है। इसलिए हर
बात नसीब पर टाल
  कर उस
उपर बैठे ईश्वर को बात -बात पर अपराध बोध में मत डालो। ” अलका ने अपनी बात पर
जोर देते हुए कहा।
रामबती
ने भी अपना नसीब बदलने की ठान ली और अलका का शुक्रिया कहते हुए सामजिक संस्थाओ में
बात  करने को कह सलोनी को लेकर चल पड़ी।

उपासना
सियाग
अबोहर (
पंजाब )
परिचय
नाम —
उपासना सियाग
पति का
नाम — श्री संजय सियाग
जन्म — 26 सितम्बर
शिक्षा
— बी एस सी ( गृह विज्ञान )
, महारानी
कॉलेज
, जयपुर
           
           
 
ज्योतिष रत्न , आई ऍफ़ ए
एस दिल्ली
प्रकाशित
रचनाएं —
6 साँझा
काव्य संग्रह  
, ज्योतिष
पर  लेख
,कहानी और कवितायेँ
 विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में छपती
  रहती है।

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