अम्माँ की दूरदर्शिता




              दोस्तों जब भी हम कोई काम करने जा रहे होते हैं तो हमारे अन्दर से
आवाज़ आती है की ये काम करना ठीक है या नहीं |
 इसे गट फीलिंग या सिक्स्थ सेन्स भी कहते हैं |
ये एक तरह की पूर्व चेतावनी भी
 होती है |आज हम एक ऐसी ही कहानी लाये हैं एक बुढिया
की जिसे उसकी दूरदर्शिता ने बचाया



A moral story on sixth sens

 एक गाँव में एक बुढ़िया रहती
थी | उसे गाँव के सब  लोग अम्माँ भी कहते
थे
 | अम्माँ के कोई
संतान थी नहीं वो भी सब को अपने बच्चों सा प्यार करती थी | एक बार की बात है की अम्माँ
को किसी दुसरे गाँव कुछ सामन ले कर जाना था | उसने सामान की गठरी बाँध ली | यूँ तो
कई बार वह सामान ले कर गयी थी | पर जो बच्चे उसके साथ जाते थे | वो इस बार ननिहाल
गए  हुए थे | वैसे तो वो गाँव के किसी भी
बच्चे से कह सकती थी पर अम्माँ  ने अकेले
ही सामान ले जाने की सोंची | उसने गठरी सर पर रख ली और चल पड़ी दूसरे गाँव की ओर |

एक तो जेठ का महीना लम्बा रास्ता , भरी गठरी  ऊपर से अम्माँ  का जर्जर शरीर | उसके पसीने छुटने लगे | तभी एक
घुड़सवार वहां से गुजरा |

अम्माँ ने घुड़सवार से कहा ,” बेटा मुझे दूसरे गाँव जाना है | मेरी
गठरी भारी है | क्या तुम मेरी गठरी अपने घोड़े पर रख लोगे |

घुड़सवार बोला ,” देखिये माताजी , धूप  कितनी तेज है | फिर आप धीरे – धीरे भी चल् पा  रही हैं | ऐसे में मैं तो वहां पहुँच जाऊँगा पर
मुझे आपका इंतज़ार करना पड़ेगा | आप मुझे क्षमा करें | कह कर घुड़सवार चला गया | थोड़ी
दूर जाने पर उसके मन में विचार आया ,” अरे बुढिया  तो इतनी बूढी है | मुझे उसकी
गठरी ले लेनी चाहिए थी | मैं तो सरपट दौड़ लगा कर आगे बढ़ जाता | वो मेरा पीछा कहाँ
कर पाती | फिर गठरी मेरी होती | काफी भारी लग रही थी बहुत माल – ताल होगा | चालों
वापस चल कर मदद देने को कहूँ |

इधर अम्मा सोंचने लगी | बेकार ही में मैंने अजबनबी से मदद मांगी |
कहीं वो गठरी ले कर भाग जाता तो मैं तो उसके पीछे भाग भी न पाती | जो हुआ अच्छा
हुआ |
अम्माँ मन ही मन सोंच ही रही थीं | तभी वो घुड़सवार आ गया और घोडा रोक बोला
,” माताजी मैं आगे चला तो गया | पर मेरा मन मुझे धिक्कारने लगा की मुझे मदद करनी
चाहिए थी | इसलिए मैं वापस लौट आया | लाइए मैं आप की गठरी घोड़े पर ले चलता हूँ |


 अब अम्माँ घुड़सवार पर किये अपने शक पर यकीन हो गया | हो नहो इसके मन में लालच आ
गया है | नहीं तो ये क्यों लौटता |
अम्मा बोली ,” बेटा जैसे तुम्हारा मन बदल गया , मेरा भी मन बदल गया | तुम
जाओ अब मैं अपनि गठरी खुद ही ले जाऊँगी | घुड़सवार अचकचा गया | बोला माताजी अभी तो
आप चलने को तैयार थीं | अब जब मैं आ गया तो मना  कर रहीं हैं | आखिर इतनी देर में
आपको उलटी पट्टी कौन पढ़ा गया |

अम्मा हंस कर बोलीं ,” बेटा उलटी या सीधी  ये पट्टी उसी ने पढाई जिसे कहते हैं  छठी इन्द्रिय |

तो देखा दोस्तों आपने किस तरह सिक्स्थ सेन्स से अम्मा ने अपनी गठरी की
हिफाजत की |इसे कहते हैं दूरदर्शिता |
           

दीपा निगम
आगरा 

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