डायरियाँ – कविता ( वंदना बाजपेयी )




डायरियाँ


जब -जब मैं दर्द और वेदना से भर उठी
मेरी आह और कराह
ढल गयी शब्दों में
और किसी गहरे समुन्दर के मानिंद
डूब गयी नीली डायरी के पन्नों में
जो गहराता गया समय के साथ
हर दर्द ,हर आह ,हर शब्द के साथ
उसका रंग
और ,और ,और
नीला होता गया

२ )
जब-जब मैं ख़ुशी और उत्साह से भर उठी
मेरी हर मुस्कान
ढल गयी शब्दों में
और किसी ताज़ा गुलाब के मानिंद
बिखर गयी
लाल डायरी के पन्नों में
जो महकता गया ,हर ख़ुशी के साथ
उसका रंग
और और और
लाल होता गया





३)
अक्सर देखती थी लोगों को लिखते हुए
सुनहरी डायरी के पन्नों में
लुभाती थी
शब्द रचना जो सज जाती थी
हर पन्ने पर
किसी सुनहरे वर्क की तरह
पर आह!
घोर आश्चर्य कि शब्द
चूर – चूर हो जाते छूते ही
ये मायावी सुनहरी डायरियाँ
रचती हैं तिलिस्म
किसी सिंड्रेला की कथा का
पर अफ़सोस
कि यहाँ जूता ढूँढता राजकुमार नहीं होता
होते सिर्फ जुते
छोटे,बड़े,उससे बड़े, सबसेबड़े
जिसमें फिट होती सुनहरी डायरियाँ
होती पदोन्नति
छोटे जूते से सब से बड़े तक
मंजिल तक पहुँचते -पहुँचते
रह जाता सिर्फ रंग
वर्क से सजे शब्द
कब के कुचल गए होते
४)

भय से पलट कर देखती हूँ
अपनी
नीली व् लाल डायरियों को
धैर्य से लेती हूँ
एक लम्बी साँस
उसमें लिखा एक- एक शब्द सुरक्षित है
वो सुरक्षित रहेगा
रहती दुनिया तक
या शायद उसके बाद भी
तैरेगा गैलेक्सियों के मध्य
क्योंकि चमक फीकी पड़ सकती है
पर भावनाएं ……………………………
कभी नहीं

वंदना बाजपेयी

चित्र गूगल से



6 thoughts on “डायरियाँ – कविता ( वंदना बाजपेयी )”

  1. वाकई कितनी आसानी से कह गईं दिल की बात आज की पर मेरी डायरियों में स्वप्न कुमार नहीं संघर्ष भरा है और वो आज भीहासिल है तथा मेरे डायरी के शब्द आज भी मेरा पथ आलोकित करते हैं

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  2. वाकई कितनी आसानी से कह गईं दिल की बात आज की पर मेरी डायरियों में स्वप्न कुमार नहीं संघर्ष भरा है और वो आज भीहासिल है तथा मेरे डायरी के शब्द आज भी मेरा पथ आलोकित करते हैं

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