–डाॅ. जगदीश गाँधी, शिक्षाविद् एवं
संस्थापक-प्रबन्धक,
संस्थापक-प्रबन्धक,
सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ
(1) मानव जीवन अनमोल उपहार है:-
आज के युग तथा आज की परिस्थितियों में विश्व मंे
सफल होने के लिए बच्चों को टोटल क्वालिटी पर्सन (टी0क्यू0पी0) बनाने के लिए स्कूल को जीवन की तीन वास्तविकताओं
भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक शिक्षायें देने वाला समाज के प्रकाश का केन्द्र अवश्य
बनना चाहिए। टोटल क्वालिटी पर्सन ही टोटल क्वालिटी मैनेजर बनकर विश्व में बदलाव ला
सकता है। उद्देश्यहीन तथा दिशाविहीन शिक्षा बालक को परमात्मा के ज्ञान से दूर कर
देती है। उद्देश्यहीन शिक्षा एक बालक को विचारहीन, अबुद्धिमान, नास्तिक, टोटल डिफेक्टिव पर्सन, टोटल डिफेक्टिव मैनेजर तथा
जीवन में असफल बनायेगी। तुलसीदास जी कहते है – ‘‘बड़े भाग्य मानुष तन पावा। सुर दुर्लभ सदग्रंथनि
पावा।। अर्थात बड़े भाग्य से, अनके जन्मों के पुण्य से यह मनुष्य शरीर मिला है। इसलिए हम
इसी पल से सजग हो जाएं कि यह कहीं व्यर्थ न चला जाये। हिन्दू धर्म के अनुसार 84 लाख पशु योनियों में जन्म
लेने के बाद अपनी आत्मा का विकास करने के लिए एक सुअवसर के रूप में मानव जन्म मिला
है। यदि मानव जीवन में रहकर भी हमने अपनी आत्मा का विकास नहीं किया तो पुनः 84 लाख पशु योनियों में जन्म
लेकर उसके कष्ट भोगने होंगे। यह स्थिति कौड़ी में मानव जीवन के अनमोल उपहार को खोने
के समान है। यह सिलसिला जन्म-जन्म तक चलता रहता है।
सफल होने के लिए बच्चों को टोटल क्वालिटी पर्सन (टी0क्यू0पी0) बनाने के लिए स्कूल को जीवन की तीन वास्तविकताओं
भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक शिक्षायें देने वाला समाज के प्रकाश का केन्द्र अवश्य
बनना चाहिए। टोटल क्वालिटी पर्सन ही टोटल क्वालिटी मैनेजर बनकर विश्व में बदलाव ला
सकता है। उद्देश्यहीन तथा दिशाविहीन शिक्षा बालक को परमात्मा के ज्ञान से दूर कर
देती है। उद्देश्यहीन शिक्षा एक बालक को विचारहीन, अबुद्धिमान, नास्तिक, टोटल डिफेक्टिव पर्सन, टोटल डिफेक्टिव मैनेजर तथा
जीवन में असफल बनायेगी। तुलसीदास जी कहते है – ‘‘बड़े भाग्य मानुष तन पावा। सुर दुर्लभ सदग्रंथनि
पावा।। अर्थात बड़े भाग्य से, अनके जन्मों के पुण्य से यह मनुष्य शरीर मिला है। इसलिए हम
इसी पल से सजग हो जाएं कि यह कहीं व्यर्थ न चला जाये। हिन्दू धर्म के अनुसार 84 लाख पशु योनियों में जन्म
लेने के बाद अपनी आत्मा का विकास करने के लिए एक सुअवसर के रूप में मानव जन्म मिला
है। यदि मानव जीवन में रहकर भी हमने अपनी आत्मा का विकास नहीं किया तो पुनः 84 लाख पशु योनियों में जन्म
लेकर उसके कष्ट भोगने होंगे। यह स्थिति कौड़ी में मानव जीवन के अनमोल उपहार को खोने
के समान है। यह सिलसिला जन्म-जन्म तक चलता रहता है।
(2) मानव जन्म व्यर्थ में नहीं खोना चाहिए:-
हे मेरे परमात्मा मैं साक्षी देता हूँ कि तुने मुझे
इसलिए उत्पन्न किया है कि मैं तुझे जाँनू तथा तेरी पूजा करूँ। परमात्मा को जानने
का मतलब है परमात्मा की ओर से कृष्ण, बुद्ध, ईशु, मोहम्मद, नानक, बहाउल्लाह के माध्यम से धरती पर अवतरित हुई शिक्षाओं
न्याय, समता, करूणा, भाईचारा, त्याग व हृदय की एकता को जानना और पूजा करने का मतलब है ईश्वर की इन्हीं
शिक्षाओं पर चलना। हमारा मानना है कि बच्चों के मन-मस्तिष्क पर अपने शिक्षकों
द्वारा दी गई नैतिक शिक्षाओं का अत्यधिक गहरा प्रभाव पड़ता है। टीचर्स बच्चों को इतना
पवित्र, महान तथा चरित्रवान बना सकते हंै कि ये बच्चे आगे चलकर सारे समाज, राष्ट्र व विश्व को एक नई
दिशा देने की क्षमता से युक्त हो सकें। मनुष्य गुण रूपी मूल्यवान रत्नों से भरी
खान के समान है। केवल शिक्षा ही उसके अंदर छिपे गुणों रूपी खजाने को उजागर कर सकती
है और मानव जाति को उनसे लाभ उठाने के योग्य बना सकती है। मनुष्य ईश्वर की
सर्वश्रेष्ठ रचना होने के कारण उस पर सारी सृष्टि को सुन्दर बनाने का दायित्व है।
मानव जन्म रूपी रत्न मिला है, सचमुच सौभाग्य मिला है, कौड़ी में इसको न खोना चाहिए।
इसलिए उत्पन्न किया है कि मैं तुझे जाँनू तथा तेरी पूजा करूँ। परमात्मा को जानने
का मतलब है परमात्मा की ओर से कृष्ण, बुद्ध, ईशु, मोहम्मद, नानक, बहाउल्लाह के माध्यम से धरती पर अवतरित हुई शिक्षाओं
न्याय, समता, करूणा, भाईचारा, त्याग व हृदय की एकता को जानना और पूजा करने का मतलब है ईश्वर की इन्हीं
शिक्षाओं पर चलना। हमारा मानना है कि बच्चों के मन-मस्तिष्क पर अपने शिक्षकों
द्वारा दी गई नैतिक शिक्षाओं का अत्यधिक गहरा प्रभाव पड़ता है। टीचर्स बच्चों को इतना
पवित्र, महान तथा चरित्रवान बना सकते हंै कि ये बच्चे आगे चलकर सारे समाज, राष्ट्र व विश्व को एक नई
दिशा देने की क्षमता से युक्त हो सकें। मनुष्य गुण रूपी मूल्यवान रत्नों से भरी
खान के समान है। केवल शिक्षा ही उसके अंदर छिपे गुणों रूपी खजाने को उजागर कर सकती
है और मानव जाति को उनसे लाभ उठाने के योग्य बना सकती है। मनुष्य ईश्वर की
सर्वश्रेष्ठ रचना होने के कारण उस पर सारी सृष्टि को सुन्दर बनाने का दायित्व है।
मानव जन्म रूपी रत्न मिला है, सचमुच सौभाग्य मिला है, कौड़ी में इसको न खोना चाहिए।
(3) परमात्मा के सबसे अच्छे पुत्र बनें:-
हमारा व हमारे बच्चों का यह संकल्प होना चाहिए कि
हम अपने शरीर के पिता के द्वारा बनाये गये घर के साथ ही अपनी आत्मा के पिता के
द्वारा बनाई गई इस सारी सृष्टि को भी सुन्दर बनायेंगे। यही एक अच्छे पुत्र की
पहचान भी है। कोई भी पिता अपने उस पुत्र को ज्यादा प्रेम करता है जो कि उसकी बातों
को सबसे ज्यादा मानता है। सबसे प्रेम करता है। आपसी सद्भावना पैदा करता है। एकता
को बढ़ावा देता है। परमात्मा अपने ऐसे ही पुत्रों को सबसे ज्यादा प्रेम करता है,
जो उनकी शिक्षाओं पर
चलकर उनकी बनाई हुई सारी सृष्टि को सुन्दर बनाने का काम करते हैं। परमपिता
परमात्मा की बनाई हुई इस सारी सृष्टि में ही हमारे शरीर के पिता ने 4 या 6 कमरों का एक छोटा सा मकान
बनाया है। हमें इस 4 या 6 कमरों में रहने वाले अपने परिवार के सभी सदस्यों के साथ ही परमपिता परमात्मा
द्वारा बनाई गई इस सारी सृष्टि में रहने वाली मानवजाति से भी प्रेम करना चाहिए।
तभी हमारे शरीर के पिता के साथ ही हमारी आत्मा के पिता भी हमसे खुश रहेंगे।
हम अपने शरीर के पिता के द्वारा बनाये गये घर के साथ ही अपनी आत्मा के पिता के
द्वारा बनाई गई इस सारी सृष्टि को भी सुन्दर बनायेंगे। यही एक अच्छे पुत्र की
पहचान भी है। कोई भी पिता अपने उस पुत्र को ज्यादा प्रेम करता है जो कि उसकी बातों
को सबसे ज्यादा मानता है। सबसे प्रेम करता है। आपसी सद्भावना पैदा करता है। एकता
को बढ़ावा देता है। परमात्मा अपने ऐसे ही पुत्रों को सबसे ज्यादा प्रेम करता है,
जो उनकी शिक्षाओं पर
चलकर उनकी बनाई हुई सारी सृष्टि को सुन्दर बनाने का काम करते हैं। परमपिता
परमात्मा की बनाई हुई इस सारी सृष्टि में ही हमारे शरीर के पिता ने 4 या 6 कमरों का एक छोटा सा मकान
बनाया है। हमें इस 4 या 6 कमरों में रहने वाले अपने परिवार के सभी सदस्यों के साथ ही परमपिता परमात्मा
द्वारा बनाई गई इस सारी सृष्टि में रहने वाली मानवजाति से भी प्रेम करना चाहिए।
तभी हमारे शरीर के पिता के साथ ही हमारी आत्मा के पिता भी हमसे खुश रहेंगे।
(4) परमात्मा ने अपनी इच्छाओं के पालन के लिए मनुष्य को शरीर रुपी यंत्र दिया है:-
ईश्वर की शिक्षाओं को जानें, उनको समझें और उनकी गहराईयों
में जाये और फिर उन शिक्षाओं पर चलें। यही ईश्वर की सच्ची पूजा है और यही हमारी
आत्मा का पिता ‘परमपिता परमात्मा’ हमसे चाहता भी है। शरीर चाहे अवतार का हो या संत महात्माओं का हो, माता-पिता का हो, भाई-बहन का हो या किसी और का
हो, यही पर रह जाता है।
जब तक आत्मा शरीर में है तभी तक यह शरीर काम करता है। परमात्मा ने अपनी आज्ञाओं के
पालन के लिए हमें यह शरीर दिया है। परमात्मा हमसे कहता है कि तेरी आँखें मेरा
भरोसा हैं। तेरा कान मेरी वाणी को सुनने के लिए है। तेरे जो हाथ हैं वो मेरे
चिन्ह् है। तेरा जो हृदय है मेरे गुणों को धारण करने के लिए हैं। यह मानव शरीर को
परमात्मा ने हमें अपने काम के लिए अर्थात् ईश्वर की शिक्षाओं को जानने के लिए तथा
उसकी पूजा करने अर्थात् उन शिक्षाओं पर चलने के लिए दिया है। इसे किसी भी हालत में
व्यर्थ नहीं खोना चाहिए।
में जाये और फिर उन शिक्षाओं पर चलें। यही ईश्वर की सच्ची पूजा है और यही हमारी
आत्मा का पिता ‘परमपिता परमात्मा’ हमसे चाहता भी है। शरीर चाहे अवतार का हो या संत महात्माओं का हो, माता-पिता का हो, भाई-बहन का हो या किसी और का
हो, यही पर रह जाता है।
जब तक आत्मा शरीर में है तभी तक यह शरीर काम करता है। परमात्मा ने अपनी आज्ञाओं के
पालन के लिए हमें यह शरीर दिया है। परमात्मा हमसे कहता है कि तेरी आँखें मेरा
भरोसा हैं। तेरा कान मेरी वाणी को सुनने के लिए है। तेरे जो हाथ हैं वो मेरे
चिन्ह् है। तेरा जो हृदय है मेरे गुणों को धारण करने के लिए हैं। यह मानव शरीर को
परमात्मा ने हमें अपने काम के लिए अर्थात् ईश्वर की शिक्षाओं को जानने के लिए तथा
उसकी पूजा करने अर्थात् उन शिक्षाओं पर चलने के लिए दिया है। इसे किसी भी हालत में
व्यर्थ नहीं खोना चाहिए।
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