बचपन में एक गाना अक्सर सुनते थे “लिखे जो खत तुझे वो तेरी याद में हज़ारों रंग के सितारे बन गए ” | गाना हमें बहुत पसंद था पर हमारा बाल मन सदा ये जानने की कोशिश करता ये खत सितारे कैसे बन जाते हैं।. खैर बचपन गया हम बड़े हुए और अपनी सहेलियों को बेसब्री मिश्रित ख़ुशी के साथ उनके पति के खत पढ़ते देख हमें जरा -जरा अंदाज़ा होने लगा कि खत सितारे ऐसे बनते हैं। और हम भी एक अदद पति और एक अदद खत के सपने सजाने लगे। खैर दिन बीते हमारी शादी हुई और शादी के तुरंत बाद हमें इम्तहान देने के लिए मायके आना पड़ा। हम बहुत खुश थे की अब पति हमें खत लिखेंगे और हम भी उन खुशनसीब सहेलियों की सूची में आ जाएंगे जिन के पास उनके पति के खत आते हैं।
हमने उत्साह में भरकर कर पति से कहा आप हमें खत लिखियेगा ,खाली फोन से काम नहीं चलेगा। खत …… न न न ये हमसे नहीं होगा हमें शार्ट में आंसर देने की आदत है। ,यहाँ सब ठीक है वहाँ सब ठीक होगा इसके बाद तीसरी लाइन तो हमें समझ ही नहीं आती है। पति ने तुरंत ऐसे कहा जैसे युद्ध शुरू होने से पहले ही युद्ध विराम की घोषणा हो जाए। हमारे अरमानों पर घड़ों पानी फिर गया। कहाँ हम अभी खड़े -खड़े ४ पेज लिख दे कहाँ ये तीसरी लाइन लिखने से भी घबरा रहे हैं।ईश्वर के भी क्या खेल हैं पति -पत्नी को जान -बूझ कर विपरीत बनाते हैं जिससे घर में संतुलन बना रहे किसी चीज की अति न हो। हम पति को खत लिखने के लिए दवाब में ले ही रहे थे की हमारी आदरणीय सासू माँ बीच में आ गयीं और अपने पुत्र का बचाव करते हुए बोली ,” अरे ! इससे खत लिखने को न कहो | इसने आज तक हम लोगों को खत नहीं लिखा तुम्हें क्या लिखेगा |
सासू माँ की बात सही हो सकती थी पर वो पत्नी ही क्या जो अपने पति की शादी से पहले की आदतें न बदलवा दे | हमें पता था समस्त भारतीय नर्रियाँ हमारी तरफ आशा की दृष्टि से देख रही होंगी | हम हार मानने में से नहीं थे | हम पतिदेव को घंटों पत्र लिखने का महत्व समझाते रहे ,पर पति के ऊपर से सारी दलीले ऐसे फिसलती रहीं जैसे चिकने घड़े के ऊपर से पानी। अंत में थक हार कर हमने ब्रह्मास्त्र छोड़ा ……….इस उम्र में लिखे गए खत ,खत थोड़ी न होते हैं वो तो प्रेम के फिक्स डिपाजिट होते हैं.| सोंचो जब तुम होगे ६० साल के और हम होंगे ५५ के ,दिमाग पूरी तरह सठियाया हुआ होगा तब हम यही खत निकाल कर साथ -साथ पढ़ा करेंगे ,और अपनी नादानियों पर हँसा करेंगे।वाह रे हानि लाभ के ज्ञाता ! फिक्स डिपोजिट की बात कहीं न कहीं पति को भा गयी और उन्होंने खत लिखने की स्वीकृति दे दी।
एक अदद खत की आशा लिए हम मायके आ गए। दिन पर दिन गुजरते जा रहे थे ,और खत महाराज नदारद। रोज सूना लैटर बॉक्स देख कर हमारा मन उदास हो जाता। चाइल्ड साइकोलॉजी पढ़ते हुए भी हमारी सायकॉलॉजी बिगड़ रही थी। आख़िरकार हमने खत मिलने की उम्मीद ही छोड़ दी। एक दिन बुझे मन से लेटर बॉक्स देखने के बाद हम ख़ाना खा रहे थे की हमारा ५ साल का भतीजा चिल्लाते हुए आया “बुआजी ,फूफाजी की चिठ्ठी आई है। हमारा दिल बल्लियों उछल पड़ा ,पर इससे पहले की हम खत उसके हाथ से लेते , हमारी “विलेन ” भाभी ने यह कहते हुए खत ले लिया “पहले तो हम पढ़ेंगे “| हमें अरेंज्ड मैरिज होने के कारण यह तो बिलकुल नहीं पता था की पति कैसा खत लिखते हैं। पर हम अपनी भाभी के स्वाभाव से बिलकुल परिचित थे कि अगर एक लाइन भी ऊपर -नीचे हो गयी तो वो हमें हमारे पैर कब्र में लटकने तक चिढ़ाएँगी। लिहाज़ा हमने उनसे पत्र खीचने की चेष्टा की। भाभी पत्र ले कर दूसरी दिशा में भागीं | घर में भागमभाग मच गयी | भाभी आगे भागी हम पीछे। भागते – भागते हम सब्जी की डलिया से टकराये ,आलू -टमाटर सब बिखेरे, हम बिस्तर पर कूदे ,एक -दूसरे पर तकिया फेंकी …………… पर चिठ्ठी भाभी के ही हाथ में रही | अंततः हमें लगा कि लगता है भाभी ने भतीजे के होने में विटामिन ज्यादा खा लिए हैं भाग -दौड़ व्यर्थ है। हार निश्चित हैं | ” आधी छोड़ पूरी को धावे /आधी मिले न पूरी पावे” के सिद्धांत पर चलते हुए हमने उन्हें पति कि पहली चिठ्ठी पढ़ने कि इज़ाज़त दे दी।
भाभी ने खत पढ़ना शुरू किया। . जैसे जैसे वो आगे बढ़ती जा रहीं थी उनका चेहरा उतरता जा रहा था। धीरे से बोली ” हे भगवान !बिटिया बड़ा धोखा हो गया तुम्हारे साथ “(भाभी हमें लाड में बिटिया कहती हैं )क्या हुआ भाभी हमने डरते हुए पूंछा ?च च च निभाना तो पडेगा ही ,पर दुःख इस बात का ही की पापा से इतनी बड़ी गलती कैसे हो गयी। भाभी ने गंभीरता से कहा। हमारा जी घबराने लगा “क्या हुआ भाभी ‘”बड़ी मुश्किल से ये शब्द हमारे मुह से निकले। च च च हाय बिटिया ! पापा तो चलो बूढ़े हैं पर तुम्हारे भैया भी तो गए थे लड़का देखने उनसे ये गलती कैसे हो गयी। इंजीनियर देख लिया ,आई आई टी देख लिया बस ,क्या इतना काफी है ? अरे , ये तक नहीं समझ पाये ………… ये लक्षण। हमारी आँखे भर आई। हम पिछले दिनों पति द्वारा बताई गयी बातों से अंदाज़ा लगाने लगे ………… पांचवी में साथ पढ़ने वाली पिंकी , आठवी वाली सुधा या आई आई टी के ज़माने की मनीषा ,आखिर कौन है वो जिसने हमारा घर बसने से पहले उजाड़ दिया। भाभी कुछ तो बाताओ ,क्या हुआ है ? न चाहते हुए भी हमरे मुह से ये शब्द निकल गए ,वैसे भी अब जानने को बचा क्या था। बिटिया ,जन्म -जन्मान्तर का साथ है ,निभाना पडेगा ,तुम्हे ही धैर्य रखना ,बहुत कुछ समझाना पड़ेगा ,आगे हरी इच्छा । .. कहते हुए भाभी ने सर झुकाये -झुकाये हमें खत पकड़ा दिया। हमाँरी खत पढ़ने की सारी इच्छा मर गयी थी। फिर भी बुझे मन से हमने खत ले लिया और एक निगाह डाली ,पू रे दो पेज| इन्हें तो लिखने की आदत ही नहीं थी | हे भगवान ,क्या सब ख़त्म ! हमने खत पढ़ना शुरू किया………… एक -एक पंक्ति आगे बढ़ते हुए हमारे चेहरे पर मुस्कराहट आने लगी ,दरसल पति बोकारो स्टील प्लांट की विजिट पर गए थे ,उसी का पूरा विवरण लिख दिया था। आयरन ओर से ब्लास्ट फर्नेस ,वहां से रोलिंग मिल में स्टील के शीट्स निकलने तक पूरा विवरण ऐसे लिखा था जैसे आयरन की मेटलर्जी पढ़ रहे हों | हाँ अंत की पंक्ति जरूर कुछ -कुछ पर्सनल थी “अब खुश “.|
खत पढ़ने के बाद मैंने भाभी की तरफ देखा और हम लोग पेट पकड़ कर तब तक हसे जब तक भैया की डांट नहीं पड़ गयी “कोई काम नहीं है तुम लोगों के पास ,जब देखो तब खी -खी ”
वंदना बाजपेयी
( पीले पन्नों से )
वंदना जी, आपने हास्य और श्रृंगार रस का श्रेष्ठ और उत्तम अभियोजन कर मन को काफी उल्लसित कर दिए. बेचारे पति को अपनी पत्नी को अदद खत लिखने के लिए लम्बा टूर का इंतजाम करना पड़ा.
dhanyvad
बहुत ही रोचक 🙂 🙂
धन्यवाद
वंदना जी, सच में खत पढ़ने में मजा आ गया। पहले तो ऐसा लगा कि न जाने ऐसा क्या लिखा है लेकिन बाद में जबरदस्त हंसी आ गई…! व्वा…ऊ…मजा आ गया।
धन्यवाद ज्योति जी