दिल का दर्द
मंगलवार को हरिद्धार जाना हुआ और अभी तक मन वही अटका है ! वो बूढ़ी सी आँखे अभी भी दिख रही सवाल भरी |
गंगा स्नान के वक्त वो वहा बेठी थी ! कुछ पोलोथिन लेकर , आते जाते गीले कपड़ो को रखने के लिए कोई ले ले तो |
कमजोर और बुजुर्ग इतनी तेज धूप | मासूम सी चेहरे की चमक बता रही थी की काफी अच्छी ज़िन्दगी जी होगी उन्होंने | तभी आते जाते कोई कुछ देता तो आँखे झुका लेती थी कोई पहचान ना ले शायद |
जब में गयी तो बहुत अभिमान से — लेकिन उनसे मिल कर बहुत बेबस सा महसूस किया | मैंने कुछ बिस्किट के पैकेट दिए — और कुछ कपडे जो देने के लिए ले गयी थी उसमे से एक। साड़ी मैंने उन्हें दी | आँखे छलछला गयी उनकी और बोली बेटा ये साड़ी उस कोने में बेठी लड़की को दे दो | इस फटी साड़ी में ठीक हु पर आते जाते लोग उसको नहीं उसके जिस्म को घूरते है तो रोना आता है | उस लड़की को देख मन परेशान हुआ ! अम्मा। क्या वो आपकी ? पैदा नहीं किया मैंने — मुझे मेरे बुढ़ापे का बोझ समझ और उसको अपाहिज समझ छोड़ गए यहाँ हमारे अपने ! जब तक मेरी साँस है में उसको सम्भालूंगी बाद में ये गंगा मैया ||
आह्ह्ह्ह समझ नहीं पायी क्या करू ! अपने कपडे उस लड़की को पहनाए तो बोली ऐ जीजी ये पेट भरता क्यों नहीं | उसने मुझे ऐसी ज़िन्दगी दी तो पेट क्यों दे दिया | भारी मन से कुछ खाना दिलाया खा कर संतोष से बोली अब कब आओगी ||
चली आई – मन वही |
मंगलवार को हरिद्धार जाना हुआ और अभी तक मन वही अटका है ! वो बूढ़ी सी आँखे अभी भी दिख रही सवाल भरी |
गंगा स्नान के वक्त वो वहा बेठी थी ! कुछ पोलोथिन लेकर , आते जाते गीले कपड़ो को रखने के लिए कोई ले ले तो |
कमजोर और बुजुर्ग इतनी तेज धूप | मासूम सी चेहरे की चमक बता रही थी की काफी अच्छी ज़िन्दगी जी होगी उन्होंने | तभी आते जाते कोई कुछ देता तो आँखे झुका लेती थी कोई पहचान ना ले शायद |
जब में गयी तो बहुत अभिमान से — लेकिन उनसे मिल कर बहुत बेबस सा महसूस किया | मैंने कुछ बिस्किट के पैकेट दिए — और कुछ कपडे जो देने के लिए ले गयी थी उसमे से एक। साड़ी मैंने उन्हें दी | आँखे छलछला गयी उनकी और बोली बेटा ये साड़ी उस कोने में बेठी लड़की को दे दो | इस फटी साड़ी में ठीक हु पर आते जाते लोग उसको नहीं उसके जिस्म को घूरते है तो रोना आता है | उस लड़की को देख मन परेशान हुआ ! अम्मा। क्या वो आपकी ? पैदा नहीं किया मैंने — मुझे मेरे बुढ़ापे का बोझ समझ और उसको अपाहिज समझ छोड़ गए यहाँ हमारे अपने ! जब तक मेरी साँस है में उसको सम्भालूंगी बाद में ये गंगा मैया ||
आह्ह्ह्ह समझ नहीं पायी क्या करू ! अपने कपडे उस लड़की को पहनाए तो बोली ऐ जीजी ये पेट भरता क्यों नहीं | उसने मुझे ऐसी ज़िन्दगी दी तो पेट क्यों दे दिया | भारी मन से कुछ खाना दिलाया खा कर संतोष से बोली अब कब आओगी ||
चली आई – मन वही |
डॉली अग्रवाल
नयी शुरुआत
जब गौरी के बेटी हुई तो उसने सोचा कि वो अपनी बच्ची को वो हर खुशी देगी जो किन्हीं कारणों से उसे खुद न मिली थी। फूल-सी बच्ची को मखमल का बिछौना और सितारों जड़ी ओढ़नी देगी और भी न जाने क्या-क्या संजोकर गौरी ने बिटिया की परवरिश शुरु की।
पर एक दिन ठगी-सी रह गयी जब कुछ बुज़ुर्ग और आदरणीय महिलाओं ने चेतावनी देकर समझाया कि “इतने नाज़ों से न पाल लड़की को! पत्थर पर रखकर पाल कि आने वाले दुखों को झेल सके! जब मखमल का बिछौना न मिले तो काँटों की सेज पर भी हँसकर सोए!”
गौरी सिहर गयी! आने वाले अनजाने कल के लिए बेटी का आज खराब कर दूं? सुखों की आदत न पड़ जाए इसलिए सुखों से वंचित रखूंगी?दुख देकर अभाव देकर मज़बूत बनाऊं?
पर कल अगर उसने बड़े होकर ये पूछ लिया कि “माँ अगर आगे दुख देखना था तो अपने आँचल तले तो मुझे सुख से रखती! क्या मेरे जीवन में सुख तूने चाहा ही नहीं? जब तुममें ही सुख से न रहने दिया माँ तो दूसरों से क्या उम्मीद? ”
गौरी ने सिर झटक कर विचारों को लगाम लगायी और बिटिया के लिए नये खिलौने और ढेर सारे उपयोगी सामान कि लिस्ट बनाने में जुट गयी चेहरे पर दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास भरी मुस्कान लिए!
पर एक दिन ठगी-सी रह गयी जब कुछ बुज़ुर्ग और आदरणीय महिलाओं ने चेतावनी देकर समझाया कि “इतने नाज़ों से न पाल लड़की को! पत्थर पर रखकर पाल कि आने वाले दुखों को झेल सके! जब मखमल का बिछौना न मिले तो काँटों की सेज पर भी हँसकर सोए!”
गौरी सिहर गयी! आने वाले अनजाने कल के लिए बेटी का आज खराब कर दूं? सुखों की आदत न पड़ जाए इसलिए सुखों से वंचित रखूंगी?दुख देकर अभाव देकर मज़बूत बनाऊं?
पर कल अगर उसने बड़े होकर ये पूछ लिया कि “माँ अगर आगे दुख देखना था तो अपने आँचल तले तो मुझे सुख से रखती! क्या मेरे जीवन में सुख तूने चाहा ही नहीं? जब तुममें ही सुख से न रहने दिया माँ तो दूसरों से क्या उम्मीद? ”
गौरी ने सिर झटक कर विचारों को लगाम लगायी और बिटिया के लिए नये खिलौने और ढेर सारे उपयोगी सामान कि लिस्ट बनाने में जुट गयी चेहरे पर दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास भरी मुस्कान लिए!
शिवानी,जयपुर
फौजी की माँ
वक़्त हो चला था परिवार वालों से विदा लेने का, छुट्टी ख़त्म हो गयी थी। घर से निकलने ही वाला था सहसा सिसकियों की आवाज से कदम रुक गए, मुड़ कर देखा तो बूढी माँ आँचल से अपने आंसुओं को पोछ रही थी।
शायद अब वो सोच रही हो की उम्र हो चली है ना जाने फिर देख भी पाऊँगी या नहीं, अपने आंसुओं को दिल में दफ़न कर मैं निकल आया, दिल भारी सा हो गया था मुझमे इतनी भी हिम्मत नहीं थी को पीछे मुड़ कर अपने परिवार वालो को अलविदा कह सकूँ, बस एक उम्मीद थी मैं वापिस आऊंगा और मेरी बूढ़ी माँ उस चौखट पर मेरा स्वागत करेगी…
जी हाँ मैं एक फौजी हूँ और मुझसे कहीं ज्यादा देश के लिये समर्पित “मेरी माँ” है ।।
उत्पल शर्मा “पार्थ”
राँची -झारखण्ड
राँची -झारखण्ड
असली माँ कौन
एक बार दो स्त्रियाँ एक बच्चे के लिए झगड़ रही थीं। प्रत्येक स्त्री यह दावा कर रही थी कि वही उस बच्चे की असली माँ है। जब किसी तरह झगड़ा नहीं सुलझा तो लोगों ने उन दोनों को राजा सुलेमान के सामने पेश किया।
राजा ने ध्यानपूर्वक दोनों की दलीलें सुनीं। दोनों के ही दावे सही लग रहे थे | राजा के लिए भी यह निर्णय करना मुश्किल हो गया कि बच्चे की असली माँ कौन थी।
राजा ने बहुत सोच-विचार किया। अखिरकार उसे एक उपाय सूझा। उसने अपने कर्मचारी को आदेश दिया, ”इस बच्चे के दो टुकड़े कर दो और एक-एक टुकड़ा दोनों स्त्रियों को दे दो।“
राजा का आदेश सुनकर उनमें से एक स्त्री ने धाड़ मारकर रोते हुए कहा,
”नहीं, नहीं! ऐसा जुल्म मत करो। दया करो सरकार। भले ही यह बच्चा इसी स्त्री को दे दो, लेकिन मेरे लाल को जिंदा रहने दो! मैं बच्चे पर अपना दावा छोड़ देती हूँ।“
पर दूसरी स्त्री कुछ नहीं बोली। वह चुपचाप यह सब देखती रही।
अब चतुर राजा सुलेमान को मालूम हो गया था कि बच्चे की असली माँ कौन है। उसने बच्चा उस स्त्री को सौप दिया, जो उस पर अपना दावा छोड़ने के लिए तैयार थी। उसने दूसरी स्त्री को कठोर कारावास का दंड दिया |
राजा ने ध्यानपूर्वक दोनों की दलीलें सुनीं। दोनों के ही दावे सही लग रहे थे | राजा के लिए भी यह निर्णय करना मुश्किल हो गया कि बच्चे की असली माँ कौन थी।
राजा ने बहुत सोच-विचार किया। अखिरकार उसे एक उपाय सूझा। उसने अपने कर्मचारी को आदेश दिया, ”इस बच्चे के दो टुकड़े कर दो और एक-एक टुकड़ा दोनों स्त्रियों को दे दो।“
राजा का आदेश सुनकर उनमें से एक स्त्री ने धाड़ मारकर रोते हुए कहा,
”नहीं, नहीं! ऐसा जुल्म मत करो। दया करो सरकार। भले ही यह बच्चा इसी स्त्री को दे दो, लेकिन मेरे लाल को जिंदा रहने दो! मैं बच्चे पर अपना दावा छोड़ देती हूँ।“
पर दूसरी स्त्री कुछ नहीं बोली। वह चुपचाप यह सब देखती रही।
अब चतुर राजा सुलेमान को मालूम हो गया था कि बच्चे की असली माँ कौन है। उसने बच्चा उस स्त्री को सौप दिया, जो उस पर अपना दावा छोड़ने के लिए तैयार थी। उसने दूसरी स्त्री को कठोर कारावास का दंड दिया |
लोककथाएं से
माँ का प्यार
एक परी थी। एक बार उसने घोषणा की,”जिस प्राणी का बच्चा सबसे ज्यादा सुंदर होगा, उसे मैं इनाम दूँगी।“
यह सुनकर सभी प्राणी अपने-अपने बच्चों के साथ एक स्थान पर जमा हो गए। परी ने एक-एक करके सभी बच्चों को ध्यान से देखा। जब उसने बंदरिया के चपटी नाकवाले बच्चे को देखा, तो वह बोल उठी,” छिः! कितना कुरूप है यह बच्चा! इसके माता-पिता को तो कभी पुरस्कार नही मिल सकता।“
परी की यह बात सुनकर बच्चे के माँ के दिल को बहुत ठेस लगी। उसने अपने बच्चे को हदय से लगा लिया और उसके कान के समीप अपना मुँह ले जाकर कहा,”तू चिंता न कर मेरे लाल! मैं तुझे बहुत प्यार करती हूँ। मेरे लिए तो तू ही सबसे बड़ा पुरस्कार है। मैं कोई दूसरा पुरस्कार प्राप्त करना नहीं चाहती। भगवान तुझे लंबी उम्र दे।“
प्रेरक कथाओं से
यह सुनकर सभी प्राणी अपने-अपने बच्चों के साथ एक स्थान पर जमा हो गए। परी ने एक-एक करके सभी बच्चों को ध्यान से देखा। जब उसने बंदरिया के चपटी नाकवाले बच्चे को देखा, तो वह बोल उठी,” छिः! कितना कुरूप है यह बच्चा! इसके माता-पिता को तो कभी पुरस्कार नही मिल सकता।“
परी की यह बात सुनकर बच्चे के माँ के दिल को बहुत ठेस लगी। उसने अपने बच्चे को हदय से लगा लिया और उसके कान के समीप अपना मुँह ले जाकर कहा,”तू चिंता न कर मेरे लाल! मैं तुझे बहुत प्यार करती हूँ। मेरे लिए तो तू ही सबसे बड़ा पुरस्कार है। मैं कोई दूसरा पुरस्कार प्राप्त करना नहीं चाहती। भगवान तुझे लंबी उम्र दे।“
प्रेरक कथाओं से