साधना सिंह
कतरा कतरा पिघल रहा है
दिल नही मेरा संभल रहा है ||
हवा भी ऐसे सुलग रही है
और ये सावन भी जल रहा है ||
कि एक तेरे जाने से देखो,
कैसे सबकुछ बदल रहा है ||
फूल लग रहा शूल सरीखा
नमक जले पर मल रहा है ||
अब चाँद अखरता है मुझको
क्यों आसमान मे निकल रहा है ||
जाने वाला तो जायेगा ही,
नियति का नीयत अटल रहा है ||
पर दिल नही मेरा संभल रहा है,
ये कतरा कतरा पिघल रहा है ||