फ़ोटो क्रेडिट::::अभिषेक बौड़ाई
मैं
गंगा
जानते हैं सभी
बहती आई हूँ
सदियों से
अपनों के लिए
इस पावन धरा पर
अलग-अलग रूप लिए
अलग-अलग नाम से
उमड़ता है एक प्रश्न
मथता है मनो-मस्तिष्क
मेरे अपने
मेरे अस्तित्व को
बचाए रखने को बनाई योजनाएँ
अमल में लाते क्यों नही?
स्वयं अपने से
आरंभ करे प्रयत्न
मुझे सुरक्षित रखने का
तभी मेरा अस्तित्व
अक्षुण्ण रह पाएगा
सोचो, करो, देखो
तुम सबका प्रयास
व्यर्थ नहीं जाएगा
वादा मेरा
मैं इस धरा पर
बहने के साथ साथ
बहूँगी सर्वदा
तुम सबके भीतर
नए विश्वास के साथ।
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डॉ . भारती वर्मा ‘बौड़ाई ‘