कल स्त्री देह और बाजारवाद पर एक पोस्ट डाली थी | जिस पर लोगों ने अपने अपने विचार रखे | कई मेल भी इस विषय पर प्राप्त हुए | इन्हीं में से एक विचार जो हमें प्राप्त हुआ | जो स्त्री देह और बाजारवाद पर पुरुषों के दृष्टिकोण को व्यक्त रहा है | उसे भी पढ़िए और अपनी राय रखिये | जिन्होंने कल की पोस्ट नहीं पढ़ी | उनके लिए लिंक इसी पोस्ट में है | आप भी अपने विचार रखिये | या अपने विचार हमें editor.atootbandhan@gmail.com पर भेजें
स्त्री देह और बाजारवाद( भाग एक )
आज की पोस्ट
लडकियाँ भी अपनी सोंच को बदलें
लड़कियो केे नग्न घूमने पर जो लोग या स्त्रीया ये कहते है की कपडे नहीं सोच बदलो….
उन लोगो से मेरे कुछ प्रश्न है???
1)हम सोच क्यों बदले?? सोच बदलने की नौबत आखिर आ ही क्यों रही है??? आपने लोगो की सोच का ठेका लिया है क्या??
2) आप उन लड़कियो की सोच का आकलन क्यों नहीं करते?? उसने क्या सोचकर ऐसे कपडे पहने की उसके स्तन पीठ जांघे इत्यादि सब दिखाई दे रहा है….इन कपड़ो के पीछे उसकी सोच क्या थी?? एक निर्लज्ज लड़की चाहती है की पूरा पुरुष समाज उसे देखे,वही एक सभ्य लड़की बिलकुल पसंद नहीं करेगी की कोई उस देखे
3)अगर सोच बदलना ही है तो क्यों न हर बात को लेकर बदली जाए??? आपको कोई अपनी बीच वाली ऊँगली का इशारा करे तो आप उसे गलत मत मानिए……सोच बदलिये..वैसे भी ऊँगली में तो कोई बुराई नहीं होती….आपको कोई गाली बके तो उसे गाली मत मानिए…उसे प्रेम सूचक शब्द समझिये…..हत्य
ा,डकैती,चोरी,बलात्कार,आतंकवाद इत्यादि सबको लेकर सोच बदली जाये…सिर्फ नग्नता को लेकर ही क्यों????
4) कुछ लड़किया कहती है कि हम क्या पहनेगे ये हम तय करेंगे….पुरुष नहीं…..
जी बहुत अच्छी बात है…..आप ही तय करे….लेकिन हम पुरुष भी किस लड़की का सम्मान/मदद करेंगे ये भी हम तय करेंगे, स्त्रीया नहीं…. और हम किसी का सम्मान नहीं करेंगे इसका अर्थ ये नहीं कि हम उसका अपमान करेंगे
5)फिर कुछ विवेकहीन लड़किया कहती है कि हमें आज़ादी है अपनी ज़िन्दगी जीने की…..
जी बिल्कुल आज़ादी है,ऐसी आज़ादी सबको मिले, व्यक्ति को चरस गंजा ड्रग्स ब्राउन शुगर लेने की आज़ादी हो,गाय भैंस का मांस खाने की आज़ादी हो,वैश्यालय खोलने की आज़ादी हो,पोर्न फ़िल्म बनाने की आज़ादी हो… हर तरफ से व्यक्ति को आज़ादी हो।
6) फिर कुछ नास्तिक स्त्रीया कुतर्क देती है की जब नग्न काली की पूजा भारत में होती है तो फिर हम औरतो से क्या समस्या है??
पहली बात ये की काली से तुलना ही गलत है।।और उस माँ काली का साक्षात्कार जिसने भी किया उसने उसे लाल साडी में ही देखा….माँ काली तो शराब भी पीती है….तो क्या तुम बेवड़ी लड़कियो की हम पूजा करे?? काली तो दुखो का नाश करती है….तुम लड़किया तो समाज में समस्या जन्म देती हो…… और काली से ही तुलना क्यों??? सीता पारवती से क्यों नहीं?? क्यों न हम पुरुष भी काल भैरव से तुलना करे जो रोज कई लीटर शराब पी जाते है???? शनिदेव से तुलना करे जिन्होंने अपनी सौतेली माँ की टांग तोड़ दी थी।
7)लड़को को संस्कारो का पाठ पढ़ाने वाला कुंठित स्त्री समुदाय क्या इस बात का उत्तर देगा की क्या भारतीय परम्परा में ये बात शोभा देती है की एक लड़की अपने भाई या पिता के आगे अपने निजी अंगो का प्रदर्शन बेशर्मी से करे??? क्या ये लड़किया पुरुषो को भाई/पिता की नज़र से देखती है ??? जब ये खुद पुरुषो को भाई/पिता की नज़र से नहीं देखती तो फिर खुद किस अधिकार से ये कहती है की “हमें माँ/बहन की नज़र से देखो”
कौन सी माँ बहन अपने भाई बेटे के आगे नंगी होती है??? भारत में तो ऐसा कभी नहीं होता था….
सत्य ये है कीअश्लीलता को किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं ठहराया जा सकता। ये कम उम्र के बच्चों को यौन अपराधो की तरफ ले जाने वाली एक नशे की दूकान है।।और इसका उत्पादन स्त्री समुदाय करता है।
मष्तिष्क विज्ञान के अनुसार 4 तरह के नशो में एक नशा अश्लीलता(सेक्स) भी है।
चाणक्य ने चाणक्य सूत्र में सेक्स को सबसे बड़ा नशा और बीमारी बताया है।।
अगर ये नग्नता आधुनिकता का प्रतीक है तो फिर पूरा नग्न होकर स्त्रीया अत्याधुनिकता का परिचय क्यों नहीं देती????
गली गली और हर मोहल्ले में जिस तरह शराब की दुकान खोल देने पर बच्चों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है उसी तरह अश्लीलता समाज में यौन अपराधो को जन्म देती है।।
#साभार_श्यामजी के व्हाट्स एप्प सॆ..
शिवा पुत्र
सही मायनों में हमारे समाज मे हमारी संस्कृति सभ्यता और संस्कार आज भी बहुत मायने रखते हैं…ओर कल ओर आज के जो विचार हमारे सामने आए हैं वस्तुतः वो मौलिक विचारधारा से परे हो सकते है लेकिन उनसे मुह भी नही मोड़ा जा सकता हैं। क्योंकि आज हमारा समाज देश और हम जिस पश्चिमी सभ्यता बाजारवाद, ओर आधुनिकता की हकीकत के लबादे को ओढे वह वास्तव में हमारी सभ्यता संस्क्रति के धरातल पर हमसे कतई मेल नही खाती हैं फिर भी हम एक नए बाजारवाद के दरवाजे में प्रवेश कर उसे आत्मसात करते जाते रहे हैं मूलतः यह हम सबकी कमजोरी ही कही जाएगी कि जिस विश्व मंच पर भारतीय सभ्यता ,संस्क्रति की अक्षुण्ण धारा बहती रही हो वहां पर हम उसे बिसार कर पड़ोसी संस्क्रति सभ्यता को अपनाने जा रहे हैं जबकि इस मामले में हमसे ज्यादा समृद्ध अन्य कोई नही हो सकता।
खेर..पुरुष की मानसिकता को दर्शाती ओशो को एक अभिव्यक्ति नीचे दे रहे हैं । शायद पसंद आये और इस वास्तविकता से भी हम अपने आपको रूबरू करें!!!
पुरुष की उत्सुकता किसी भी स्त्री में तभी तक होती है, जब तक वह उसे जीत नहीं लेता! जीतते ही उसकी उत्सुकता समाप्त हो जाती है, जीतते ही फिर कोई रस नहीं रह जाता।
नीत्शे ने कहा है कि पुरुष का गहरे से गहरा रस विजय है! कामवासना भी उतनी गहरी नहीं है, कामवासना भी विजय का एक क्षेत्र है। इसलिए पत्नी में उत्सुकता समाप्त हो जाती है, क्योंकि वह जीती ही जा चुकी; उसमें कोई अब जीतने को बाकी नहीं रहा है। इसलिए जो बुद्धिमान पत्नियां हैं, वे सदा इस भांति जीएंगी पति के साथ कि जीतने को कुछ बाकी बना रहे। नहीं तो पुरुष का कोई रस सीधे स्त्री में नहीं है। अगर कुछ अभी जीतने को बाकी है तो उसका रस होगा। अगर सब जीता जा चुका है तो उसका रस खो जाएगा। तब कभी-कभी ऐसा भी घटित होता है कि अपनी सुंदर पत्नी को छोड़ कर वह एक साधारण स्त्री में भी उत्सुक हो सकता है। और तब लोगों को बड़ी हैरानी होती है कि यह उत्सुकता पागलपन की है, इतनी सुंदर उसकी पत्नी है और वह नौकरानी के पीछे दीवाना हो!
पर आप समझ नहीं पा रहे हैं, नौकरानी अभी जीती जा सकती है; पत्नी जीती जा चुकी! सुंदर और असुंदर बहुत मौलिक नहीं हैं। जितनी कठिनाई होगी जीत में, उतना पुरुष का रस गहन होगा। और स्त्री की स्थिति बिलकुल और है, जितना पुरुष मिला हुआ हो, जितना उसे अपना मालूम पड़े, जितनी दूरी कम हो गई हो, उतनी ही वह ज्यादा लीन हो सकेगी। स्त्री इसलिए पत्नी होने में उत्सुक होती है; प्रेयसी होने में उत्सुक नहीं होती। पुरुष प्रेमी होने में उत्सुक होता है; पति होना उसकी मजबूरी है।
स्त्री का यह जो संतुलित भाव है, विजय की आकांक्षा नहीं है, यह ज्यादा मौलिक स्थिति है। क्योंकि असंतुलन हमेशा संतुलन के बाद की स्थिति है। संतुलन प्रकृति का स्वभाव है। इसलिए हमने पुरुष को पुरुष कहा है और स्त्री को प्रकृति कहा है। प्रकृति का मतलब है कि जैसी स्थिति होनी चाहिए स्वभावतः वही हो..!!
dhanyvad