कहाँ हो रही है जो उसे घाटा हो रहा है | कुछ समझ में नहीं आ रहा है | एक तो काम
में घाटा ऊपर से कामवाली का टेंशन | महारानी खुद तो गाँव चली गयीं और अपनी जगह
किसी को लगा कर नहीं गयीं | पड़ोस की निधि से कहा तो है की अपनी कामवाली से कह कर
किसी को भिजवाये | पर चार दिन हो गए अभी तो दूर – दूर तक कोई निशान दिखाई नहीं दे
रहे हैं | आखिर वो क्या – क्या संभाले ? अपने ख्यालों को परे झटक कर मिताली फिर
हिसाब में लग गयी | तभी दिव्य कमरे में आये | उसे देख कर बोले ,” रहने दो मिताली
तुमसे नहीं होगा | ये बात मिताली को तीर की तरह चुभ गयी | दिव्य को देख कर गुस्से
में चीखती हुई बोली ,” क्या कहा ? मुझसे नहीं होगा … मुझसे , मैं MBA हूँ | वो
तो तुम्हारी घर गृहस्थी के चक्कर में इतने साल खराब हो गए , वर्ना मैं कहाँ से
कहाँ होती | वो ठीक हैं मैडम पर आपके इस प्रोजेक्ट के चक्कर में मेरा बैंक बैलेंस
कहाँ से कहाँ जा रहा है | दिव्य ने हवा में ऊपर से नीचे की और इशारा करते हुए कहा
| मिताली कुछ कहने ही वाली थी की तभी बाहर से आवाज़ आई ,” लली “
की खुशबू से मिताली को समझते देर न लगी की ये काम वाली है जिसे निधि ने भेजा है |
इससे पहले की मिताली कुछ कहती वो ही मुस्कुराते हुए बोल पड़ी ,”सुनो लली , कमला नाम है मेरा , निधि मेमसाहब ने बताया था की
आप को कामवाली की जरूरत है |
बार करा कर देखोगी तब पता चलेगा |
मिताली : देखो मेरा समय बर्बाद मत करो , तुम्हारा
शरीर इतना भारी है तुम कैसे पलंग के नीचे से कूड़ा निकाल पाओगी |
लली लगा रखा है | बड़े – बड़े बच्चे हैं मेरे | अब कोई कम उम्र लली थोड़ी न हूँ मैं |
को देख कर कोई कह सकता है की आप के बड़े – बड़े बच्चा हैं | लड़की सी लगती हैं उमर का तो तनिक पता ही नहीं चलता है | भाग हैं , भगवान्
की देन है |
से बोली , “ कितना लोगी ?’
लेती थी | इससे अच्छा तो बर्तन मैं ही कर
लूं और तुम सफाई कर लो |मिताली घाटे का
गणित लगाते हुए बोली |
देखे हैं | कितने मुलायम हैं | सबके कहाँ होते हैं ऐसे हाथ | भगवान् बानाए रखे | कया , २ ००- २५० रुपया के लिए इन्हें भी कुर्बान कर दोगी |
मिताली अपने हाथ देखने लगी | सच में कितने मुलायम हैं | तभी तो दो
नंबर की चूड़ियाँ भी झटपट चढ़ जाती है | सहेलियां भी तो अक्सर तारीफ करती हैं | मिताली
ने अपने हाथ देखते हुए स्वीकृति में सर हिलाया | खुश होते हुए कमला बोली ,” ठीक है
लली , कल से आयेंगे | फिर से लली ,इस बार मीताली के स्वर में प्यार भरी झिडकी थी | कमला हँसते हुए बोली ,” अब हम तो
लली ही कहियें | जैसे दिखती हो , वही कहेंगे | और दोनों हँस पड़ीं |
कमला ने काम पर आना शुरू कर दिया | और मिताली उसी प्रोजेक्ट , हिसाब ,
किताब , गुणा – भाग में लग गयी | वो घाटे से उबर नहीं पा रही थी | क्या दिव्य सही कहते
हैं की उसे बुकिश नॉलिज है | प्रैक्टिकल नहीं | कहीं , कुछ तो है गलत है | पांच –
छ : लोगों की छोटी सी कंपनी को वो संभाल नहीं पा रही थी | सबके इगो हैंडल करना उसके बस
की बात नहीं थी | पैसा वो लगाये , काम वो सबसे ज्यादा करे और मनमर्जी सबकी सहे | हर कोई अपनी वाहवाही चाहता था | दिव्य कहते हैं की सब का इगो हैंडल करना ही
सबसे बड़ा हुनर है | नहीं तो कम्पनी ही टूट जायेगी |फिर बचेगा क्या ? कैसे करे वो ?
और अब तो दिव्य ने भी पैसे देने से इनकार कर दिया है | मिताली हारना नहीं चाहती थी |उसने लोन लेने का
मन बनाया | सारे कागज़ तैयार किये | पर MBA की डिग्री की फोटो कॉपी रह गयी | मिताली
डिग्री की फोटो कॉपी कराने बाज़ार के लिए निकली |
रास्ते में पार्क पड़ता है | जहाँ काम वालियां अक्सर झुण्ड में बैठ कर
बतियाती हैं | उसे दूर से कमला बैठी दिख गयी | कमला ने उसे नहीं देखा वो बातचीत
में मशगूल थी | पार्क के पास पहुँचते –
पहुँचते मिताली को उनकी सपष्ट आवाज़े सुनाई देने लगीं | एक बोली ,” कमला चाची इस उम्र
में भी तुम कैसे इतने घर पकड़ ली हो | हमें
तो 40 की होने के बाद से ही काम नहीं मिलने लगा | सब ओ लड़की चाहिए | जो पलंग के
नीचे से कूड़ा निकाल दे | स्टूल पर चढ़ कर पंखा साफ़ कर दे | अब भारी शरीर से ये काम
तो हमसे होने से रहा | कमला खुश होते हुए बोली ,” यह तो हमारा काम नहीं व्यवहारिक
ज्ञान हैं | हमें भी पहले कोई काम नहीं देता था | हमारा भारी शरीर और उम्र के कारण हर कोई मना कर देता था |
फिर हमने ही तरीका निकाला | दरसल इसमें हमारे काम का नहीं शब्दों का हुनर है | अब
ये बड़े घरों की औरतें ,इन्हें कम उम्र
दिखने का शौक होता है | हमारी तनख्वाह से चार गुना तो ब्यूटी पार्लर पर चढ़ाती हैं
| तो हम तो इसी बात का फायदा उठाते हैं | उसके लिए एक ही शब्द है “ लली “ | ये कह दो की वो तो बहुत कम उम्र लड़की लगती हैं
, तो देखो कैसे सब खुश हो जाती हैं | फिर
काम पर गौर नहीं करती | हां महीने में एक आध बार अपनी बेटी या बहू को ले जाकर ठीक
से सफाई करवा डेट हैं | काम भी ज्यादा पैसा भी ज्यादा और कोई खिच – खिच नहीं |
उनके अहम् को संभालना है | ये काम करता है बस एक शब्द |
हुए सब एक साथ हँस पड़ीं |
मिताली को पसीना आ गया | उसके कानों में
दिव्य के शब्द गूंजने लगे कंपनी में सब का इगो हैंडल करना ही सबसे बड़ा हुनर है |
उसके हाथ से MBA की डिग्री छूटने लगी |
वंदना बाजपेयी
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बेहतरीन कहानी
सादर
धन्यवाद
गूगल फॉलोवर का गेजेट भी लगाइए
सादर
जी , शुक्रिया
बहुत अच्छी रचना है। भाषाशैली में महादेवी सी महक है।
धन्यवाद
very Nice story..!!