आलेख, संकलन, लिप्यंतरण एवं प्रस्तुति:
सीताराम गुप्ता
दिल्ली
जीवन परिचय
पूरा नाम: शुजाउद्दीन साजिद
पैदाइश: 24 दिसंबर सन् 1946 को दिल्ली में
वालिद का नाम: जनाब अमीर हुसैन
तख़ल्लुस: शुजाअ ‘ख़ावर’
मुलाज़मत: पहले दिल्ली के एक काॅलेज में अंग्रेज़ी के लेक्चरर मुकर्रर हुए और बाद में आई.पी.एस. इम्तिहान पास करने के बाद 20 साल तक पुलिस में आला अफसर के रूप में काम किया।
वफ़ात: 19 जनवरी सन् 2012 को दिल्ली में
पैदाइश और मिज़ाज के ऐतिबार से ही नहीं, ज़बान और उस्लूब के ऐतिबार से भी शुजाअ ‘ख़ावर’ ठेठ दिल्ली की ख़ूबसूरत टकसाली ज़बान के शायर हैं। उनकी शायरी में अल्फाज़ और मुहावरों का इस्तेमाल देखते ही बनता है। क्योंकि शुजाअ ‘ख़ावर’ के यहाँ ज़बान और बयान में किसी क़िस्म का बनावटीपन नहीं है इसलिए उनकी शायरी को न सिर्फ आम पाठक पसंद करते हैं बल्कि शायरी की ख़ास समझ रखने वाले भी उस पर उतनी ही तवज्जो देते हैं। उनके कुछ शेर देखिए:
पहुँचा हुज़ूरे-शाह, हर एक रंग का फक़ीर,
पहुँचा नहीं जो, था वही पहुँचा हुआ फक़ीर।
कहाँ से इब्तिदा कीजे, बहुत मुश्किल है दरवेशो!
कहानी उम्र भर की और जलसा रात भर का है।
हालात न बदलें तो इस बात पे रोना,
बदलें तो बदलते हुए हालात पे रोना।
गुज़ारे के लिए हर दर पे जाओगे ‘शुजाअ’ साहब
अना का फ़लसफ़ा दीवान में रह जाएगा लिखा।
कुछ नहीं बोला तो मर जाएगा अंदर से शुजाअ,
और अगर बोला तो फिर, बाहर से मार जाएगा।
थोड़ा सा बदल जाए तो बस ताज हो और तख़्त,
इस दिल का मगर क्या करें सुनता नहीं कमबख़्त।
इस सर की ज़रूरत कभी उस सर की ज़रूरत,
पूरी नहीं होती मिरे पत्थर की ज़रूरत।
मरके भी देखा जाए दो इक दिन,
कब तक ऐसे ही ज़िंदगी कीजे।
‘शुजाअ’ मौत से पहले ज़रूर जी लेना,
ये काम भूल न जाना बड़ा ज़रूरी है।
ये दुनियादारी और इर्फान का दावा शुजाअ ख़ावर,
मियाँ इर्फान हो जाए तो दुनिया छोड़ देते हैं।
तुझ पर है श्हर भर की नज़र इन दिनों शुजाअ,
क्यों बोलता नहीं किसी इर्शाद के ख़िलाफ।
इस तरह ख़ामोश रहने से तो ये मिट जाएगा,
सोचिए इस शहर के बारे मंे बल्कि बोलिए।
यहाँ तो क़ाफिले भर को अकेला छोड़ देते हैं,
सभी चलते हों जिस पर हम वो रस्ता छोड़ देते हैं।
मुझको तो मरना है इक दिन ये मगर ज़िंदा रहे,
कारीगर की मौत का क्या है, हुनर ज़िंदा रहे।
सर को ख़म कीजे तो दस्तार बंधे सर पे शुजाअ,
बोलिए क्या है अज़ीज़ आपको दस्तार कि सर?
शब्दार्थ:
हुज़ूरे-शाह = शाह की सेवा में उपस्थिति
इब्तिदा = प्रारंभ
अना = मैं/अहंकार
दीवान = ग़ज़लों का संकलन
इर्फान = विवके/ब्रह्मज्ञान/तमीज़
ख़म करना = झुकाना
दस्तार = पगड़ी/सम्मान
इर्शाद = हिदायत/हुक्म/आज्ञा
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