सीताराम गुप्ता,
दिल्ली में प्रदूषण का एक मुख्य कारण है वाहनों की बहुत ज़्यादा संख्या। यह स्थिति दिल्ली व एनसीआर के लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर चिंता का विषय है। यहाँ वाहन चलते नहीं रेंगते हैं। वाहनों के एक निश्चित अपेक्षित गति से कम गति पर चलने से न केवल हवा में ज़्यादा घातक गैसों का अतिरिक्त ज़हर घुलता है अपितु वाहनों की सेहत पर भी बुरा असर होता है। दूसरी बात यहाँ जो वाहन सड़कों पर चलने के लिए निकलते हैं या चल रहे होते हैं उनमें से एक बड़ी संख्या में वाहन या तो चैराहों पर रुके होते हैं या कहीं न कहीं जाम में फँसे होते हैं। स्थिति ये होती है कि दिल्ली की सड़कों पर एक साथ लाखों वाहनों के इंजन तो चालू होते हैं लेकिन वाहन गति न करके स्थिर होते हैं जो शहर की हवा को विषाक्त बनाते रहते हैं।
दिल्ली के चैराहों की स्थिति सबसे ख़राब है। चार-चार पाँच-पाँच बार ग्रीन सिग्नल होने के बावजूद वाहन चैराहे पार नहीं कर पाते। इससे न केवल बिना कारण के बहुमूल्य ईंधन फुंकता है और प्रदूषण में वृद्धि होती है अपितु लोगों का क़ीमती वक़्त भी बरबाद होता है। चैराहों पर ट्रैफिक ठीक से मूव न कर पाने का कारण नियंत्रण व्यवस्था में ख़ामियाँ ही नहीं अपितु चैराहों पर उपस्थित भिखारी समुदाय भी है। इसमें कोढ़ में खुजली का काम करते हैं सामान बेचने वाले। हर चैराहे पर हर दिशा में दर्जनों लोग खड़े रहते हैं। दो-तीन साल के बच्चों से लेकर अस्सी-पिचासी साल की उम्र के बुज़ुर्गों तक भीख मांगने के लिए वाहनों के आगे डटे रहते हैं। इनके अतिरिक्त छोटे बच्चों को गोद में उठाए औरतें व बैसाखियों के सहारे चलती लड़कियाँ भी हर चैराहे की शोभा बढ़ाती नज़र आती हैं।
इनके कारण न केवल यातायात के सुचारु परिचालन में व्यवधान उत्पन्न होता है अपितु वाहन चालकों को भी बड़ी परेशानी होती है। ग्रीन लाइट होने पर भी ये गाड़ियों के आगे डटे रहते हैं। ये वाहन चालकों को परेशान भी कम नहीं करते। गाड़ियों के दोनों ओर से ठक-ठक ठक-ठक करके वाहन चालकों को परेशान करते हैं व शीशा खुला होने पर सामान पर हाथ साफ करने में भी देर नहीं लगाते। ये लोग ग्रुप्स में होते हैं और झगड़ा करने से भी बाज नहीं आते। इससे यातायात के परिचालन व चालकों की मनोदशा दोनों पर बुरा असर पड़ता है।
हमारे चैराहों पर भिखारियों के अतिरिक्त सामान बेचनेवाले भी कम नहीं होते। हर चैराहे पर पानी की बोतलों से लेकर ग़ुब्बारे, खिलौने, नमकीन, मूंगफली, रेवड़ी, गजक, सीजनल फल, गोलागिरी, डस्टर-पौंछे, अगरबत्तियाँ, इलैक्ट्राॅनिक आइटम्स, किताबें, टायर, स्पेयर पाट्र्स तक क्या नहीं होता जो यहाँ नहीं बिकता। जब कोई वाहन चालक इनसे सामान ख़रीदता है तो जब तक उसका मोल-भाव व पेमेंट नहीं हो जाती ग्रीन सिग्नल होने पर भी वह आगे नहीं बढ़ता और उसके पीछे के वाहनों को भी रुके रहने पर विवश होना पड़ता है। इस स्थिति में कुछ लोग पौं-पौं करके आसमान सर पर उठा लेते हैं लेकिन इससे ट्रैफिक नहीं सरकता अलबत्ता ध्वनि प्रदूषण ज़रूर बढ़ जाता है। कई बार झगड़े की नौबत आ जाती है और ट्रैफिक की स्थिति और बदतर हो जाती है।
प्रदूषण बढ़ने का एक पहलू और भी है। भिखारियों और सामान बेचने वालों से बचने के लिए ज़्यादातर लोग गाड़ियों की खिड़कियों के शीशे नहीं खोलते। सामान्य स्थितियों व अच्छे मौसम में भी उन्हें एसी चलाने के लिए विवश होना पड़ता है जो प्रदूषण बढ़ाने के लिए कम उत्तरदायी नहीं। इसके अतिरिक्त कुछ सार्वजनिक वाहन जैसे रिक्शा, ई-रिक्शा व ग्रामीण सेवा आदि भी प्रायः ट्रैफिक रूल्स का खुला उल्लंघन कर यातायात को बाधित करने के लिए कम दोषी नहीं। ये मेट्रो स्टेशनों के नीचे व आसपास बेतर्तीब खड़े रहते हैं और जाम लगाए रखते हैं। कुछ लोगों ने विशेष रूप से भिखारियों व सामान बेचने वालों ने चैराहों के आसपास की सड़कों व फुटपाथों पर स्थायी अड्डे बना रखे हैं। वहीं रहते हैं, वहीं खाते-पीते हैं, वहीं टट्टी-पेशाब जाते हैं, वहीं कपड़े धोते और सुखाते हैं और वहीं पर सोते हैं।
दिल्ली में मधुबन चैक से लेकर रिठाला मेट्रो स्टेशन तक मेट्रो लाइन के नीचे अधिकांश स्थानों पर इन लोगों ने न केवल क़ब्ज़ा कर रखा है अपितु इन स्थानों को बेहद गंदा भी रखते हैं। ये लोग केवल भीख मांगने और सामान बेचने का काम ही नहीं करते बल्कि कई ग़लत काम भी करते हैं जो अपराध की श्रेणी में आते हैं। इस पूरे परिदृष्य में भीख देने वाले दानी व धर्मात्मा लोग तथा यहाँ पर सामान ख़रीदनेवाले लोग भी कम दोषी नहीं हैं। दिल्ली शहर व इसके बाशिंदों की सेहत के लिए प्रदूषण के इस दुष्चक्र को तोड़ना अनिवार्य है।
कुल मिलाकर इन्होंने और इनको यहाँ बसाने व क़ब्ज़ा करवाने में मदद करने वाले लोगों ने दिल्ली की हवा को प्रदूषित करने और दिल्ली की ख़ूबसूरत सड़कों व चैराहों को नरक बनाने में कोई कसर नहीं रख छोड़ी है। वास्तविकता तो ये है कि पूरे देश के भिखारी व नकारा लोग दिल्ली आकर यहाँ की सड़कों को अपना ठिकाना बनाने से बाज नहीं आते हैं लेकिन सरकार व प्रशासन को तो इनसे निपटने के लिए ठोस क़दम उठाने ही चाहिएँ ताकि दिल्ली ख़ूबसूरत न सही लोगों के रहने लायक तो बनी रहे।