किसी का दुःख समझने के लिए उस दुःख से होकर गुज़ारना पड़ता है – अज्ञात
रामरती देवी कई दिन से बीमार थी | एक तो बुढापे की सौ तकलीफे ऊपर से अकेलापन | दर्द – तकलीफ बांटे तो किससे | डॉक्टर के यहाँ जाने से डर लगता , पता नहीं क्या बिमारी निकाल कर रख दे | पर जब तकलीफ बढ़ने लगी तो हिम्मत कर के डॉक्टर के यहाँ अपना इलाज़ कराने गयी | डॉक्टर को देख कर रामरती देवी आश्वस्त हो गयीं | जिस बेटे को याद कर – कर के उनके जी को तमाम रोग लगे थे | डॉक्टर बिलकुल उसी के जैसा लगा | रामरती देवी अपना हाल बयान करने लगीं | अनुभवी डॉक्टर को समझते देर नहीं लगी की उनकी बीमारी मात्र १० % है और ९० % बुढापे से उपजा अकेलापन है | उनके पास बोलने वाला कोई नहीं है | इसलिए वो बिमारी को बढ़ा चढ़ा कर बोले चली जा रहीं हैं | कोई तो सुन ले उनकी पीड़ा | अम्मा, “ सब बुढापे का असर है कह सर झुका कर दवाई लिखने में व्यस्त हो गया | रामरती देवी एक – एक कर के अपनी बीमारी के सारे लक्षण गिनाती जा रही थी | आदत के अनुसार वो डॉक्टर को बबुआ भी कहती जा रही थी |
रामरती देवी : बबुआ ई पायन में बड़ी तेजी से पिरात है |
डॉक्टर – वो कुछ नहीं
रामरती – कुछ झुनझुनाहट होती है
डॉक्टर : वो कुछ नहीं
रामरती – तनिक अकड भी जात है |
डॉक्टर – वो कुछ नहीं
रामरती – जब पीर उठत है तो
डॉक्टर : कहा न अम्मा ,” कुछ नहीं
रामरती (गुस्से में ), जब तुम्हारे पिरायेगा , तब कहना कुछ नहीं
(आपको क्या लगता है , डॉक्टर को सिर्फ दवा लिखनी चाहिए थी | या ये जानते हुए की रामरती जी अकेलेपन की शिकार हैं उसे दो मिनट उसकी तकलीफ सुन लेनी चाहिए थी | साइकोसोमैटिक डिसीजिज , जहाँ तन का इलाज़ मन के माध्यम से ही होता है | डॉक्टर भी उसे ठीक करना चाहता था | शायद उसकी रामरती जी की तकलीफ को नज़रंदाज़ करने की या उपहास उड़ाने की मंशा नहीं थी , जैसा रामरती जी को लगा |
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सुराज की नौकरी चली गयी | वो मुँह लटकाए घर आया | कई दिनों तक घर से बाहर नहीं निकला | रिश्तेदारों में खलबली मची | सब उसे समझाने आने लगे | तभी उसका एक रिश्तेदार दीपक आया | वो उसे लगा समझाने ,” अरे एक गयी है हज़ार नौकरियाँ तुम्हारा इंतज़ार कर रही है | “ थिंक पॉजिटिव “ , ब्ला ब्ला ब्ला | थोड़ी देर सुनने के बाद सुराज कटाक्ष करने वाले लहजे में बोला ,” मुझे पता है की हज़ारो , अरे नहीं लाखों नौकरियां मुझे मिल सकती हैं | मिल क्या सकती हैं , बाहर लोग मुझे नौकरी देने के लिए लाइन लगा कर खड़े हैं | पर अभी मैं अपनी नौकरी छूटने का दुःख मानना चाहता हूँ | क्या आप मुझे इसकी इजाज़त देंगे | | दीपक , ओके , ओके कहता हुआ चला गया | वह सुराज को इस परिस्तिथि से बाहर निकालना चाहता था | पर शायद उसका तरीका गलत था |
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स्वेता जी के पति का एक महीना पहले स्वर्गवास हो गया था | सहानुभूति देने वालों का तांता लगा रहता | उनमें से एक उनके पड़ोसी नेमचंद जी भी थे | जो उनके प्रति बहुत सहानुभूति रखते थे | रोज़ उनका हाल पूंछने चले आते | स्वेता जी का का संक्षिप्त सा उत्तर होता ,” ठीक हूँ | “ पर उस दिन स्वेता जी का मन बहुत उदास था | उसी समय नेमचंद जी आ गए , और लगे हाल पूंछने | स्वेता जी गुस्से से आग बबूला हो कर बोली ,” एक महीना पहले मेरे पति का स्वर्गवास हुआ है | आप को क्या लगता है मुझे कैसा होना चाहिए | चले आते हैं रोज़ , रोज़ पत्रकार बन के | नेमचंद जी मुँह लटका कर चले गए | वो सहानुभूति दिखाना चाहते थे पर तरीका गलत था |
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कई बार हमें समस्याओं से जूझते वक्त एक बुद्धिमान दिमाग के तर्कों के स्थान पर एक खूबसूरत दिल की आवश्यकता होती है , जो बस हमें सुन सकें
बात तब की है जब मैं अपनी सासू माँ के साथ रिश्तों की कुछ समस्याओं से जूझ रही थी | मैं चाहती थी की घर का वातावरण सुदर व् प्रेम पूर्ण हो | पर कुछ समस्याएं ऐसी आ रही थी | जिनको डील करना मेरे लिए असंभव था | हर वो स्त्री जो अपने परिवार को जोड़े रखने में विश्वास करती है , कभी न कभी इस फेज से गुजरती है | व् इसकी पीड़ा समझ सकती है | मैं समस्याओं को सुलझाना चाहती थी पर असमर्थ थी | लिहाजा मैंने सलाह लेने की सोंची | मैंने इसके लिए अपनी माँ को चुना | मुझे लगता था , माँ मेरे समस्या अच्छे से सुनेगी व् समाधान भी देंगी | क्योंकि बचपन से अभी तक मैंने माँ को सदा एक सुलझी हुई महिला के रूप में देखा है | समस्याओं को सुलझाना , रिश्तों को निभाना , व् सब को सहेज कर रखना ये उनके बायें हाथ का खेल रहा है | मैंने माँ को फोन लगाया | हेलो , की आवाज़ के साथ ही मैंने रोना शुरू कर दिया | एक – एक करके अपनी सारी समस्याएं बता दी | माँ , बीच – बीच में ओह ! , अच्छा , अरे कह कर सुनती जा रही थी | मैंने बात खत्म करके माँ से पूंछा माँ , आपको क्या लगता है | इस परिस्तिथि में मुझे क्या करना चाहिए | माँ धीरे से अपने शब्दों में ढेर सारा प्यार भर कर बोली , बेटा , मुझे पता है तुम कितनी तकलीफ से गुज़र रही हूँ | मैं तुम्हारा दर्द समझ सकती हूँ | पर मुझे विश्वास है तुम इससे निकल जाओगी |”
पढ़िए –नाउम्मीद करती उम्मीदें
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फोन बंद करने के बाद , मुझे माँ पर बहुत गुस्सा आया | तो , बस इतना ही मुझसे उन्हें कहना था | क्या इसके अतिरिक्त कोई और शब्द नहीं थे ?क्या वो मुझे कोई सलाह नहीं दे सकती थी ? माँ ने अपनी गृहस्थी इतने अच्छे से चलाई है पर मेरे लिए उनके पास बस इतने ही शब्द हैं | मुझे लगा माँ मुझे सलाह देना नहीं चाहती | या पराई होने के बाद उन्हें मेरी समस्याओं से कोई मतलब नहीं रह गया है | गुस्से में मैंने कई दिनों तक माँ को फोन नहीं किया | जिंदगी जैसी थी वैसी ही चल रही थी | अचानक मुझे याद आया अपनी सहेली के बारे में जिसकी मौसी कॉलेज में प्रोफ़ेसर है | एक पढ़ी लिखी महिला हैं | मुझे लगा अपनी सहेली से पूँछ कर मैं उनकी मौसी से बात कर लूं |
मैं अपनी सहेली से मिलने गयी | उसने मेरी बात अच्छे से सुनी | फिर बोली देखो , मौसी से मिलने में कोई हर्ज नहीं है | पर मैं एक बार तुम्हारी ही तरह समस्याओं से घिरी हुई थी | मैंने भी मौसी को ही सबसे उचित सलाहकार समझा | मैंने मौसी को अपनी सारी समस्याएं बताई | मौसी ने सुनने के बाद जब बोलना शुरू किया , तो उन्होंने मुझे मेरी गलतियों की लिस्ट पकड़ा दी | तुमन यहाँ गलत किया तुमने वहां गलत किया | तुम्हारी सास को यहाँ ये कहना चाहिए था | वहां वो कहना चाहिए था | मैं हतप्रभ थी | मौसी ने मुझे कोई सलाह दी या नहीं ये तो मुझे याद नहीं | पर घर से बाहर निकलते – निकलते मेरी सेल्फ एस्टीम , कांफिडेंस की धज्जियाँ उड़ा दी | इतनी आलोचना झेलने के बाद मुझे वापस उन्हें पाने में काफी समय लगा |बाद में मैंने अपनी समस्याएं खुद अपने तरीके से सॉल्व की | मुझे लगा उस समय मुझे आलोचना की नहीं हिम्मत देने की जरूरत थी | अब फैसला तुम्हारे ऊपर है | तुम्हे मौसी से मिलना है ?
मैंने मौसी से मिलने का इरादा छोड़ दिया | रास्ते भर मैं अपनी सहेली के बारे में सोंचती रही | इतनी आलोचना उसने कैसे झेली होगी | उसकी मौसी ने क्यों उसकी इतनी आलोचना की | क्या वो अपने को सर्वाज्ञ सिद्ध करना चाहती थी | या उसे नीचा दिखाना चाहती थी ?अचानक मुझे माँ की याद आई | माँ ने मेरी बातों को पूरे मन से सुना |उन्होंने मेरी दर्द , तकलीफ को समझा | जिससे उन्होंने दिखाया की वो मेरे दर्द को समझती हैं | व् बिना मेरा ईगो हर्ट किये एक छोटी सी सलाह दी ,” मुझे विश्वास है तुम इससे निकल जाओगी | माँ , बहुत डिग्रीधारी नहीं हैं पर उनकी सलाह पढ़ी लिखी मौसी से कहीं ज्यादा बेहतर थी | मुझे माँ पर प्यार उमड़ आया | मैंने झट से माँ को फोन लगा कर धन्यवाद दिया | माँ की मिश्री सी आवाज़ आई , ” मुझे पता था , तुम खुद समझोगी , तुम्हारा फोन आएगा |
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आज जब मेरी वो समस्या सुलझ चुकी है | तो मुझे मुझे अहसास होता है की अक्सर हम सब दूसरे की समस्या सुनते ही खुदा बन जाते है | और तरह – तरह के सुझाव देने लगते हैं | पर हमारे सुझाव हर किसी पर असर नहीं कर सकते | क्योंकि हर व्यक्ति की परिस्तिथियाँ , उसकी आर्थिक , सामजिक स्तिथि , मानसिक दशा एक सामान नहीं होते | ये सुझाव बस एक थोथे ज्ञान जैसे लगते हैं | व्यक्ति को अपनी समस्याओं को खुद सुलझाना पड़ता है | और हर व्यक्ति में ये क्षमता होती है | समस्याओं के समय घबरा कर जब वो दूसरे के पास सलाह लेने जाता है | तो वो भीतर से जानता है की उसे क्या करना है | ऐसे में उसे एक ऐसे व्यक्ति की दरकार होती है , जो उसे सुन सकें व् अहसास दिलाये की जिंदगी में कभी – कभी इतनी कठिन परिस्तिथियाँ आ जाती हैं जिनको हल करना आसान नहीं होता , साथ ही उसकी हिम्मत व् हौसला बढ़ा सके न की ऐसे सलाहकार की जो ज्ञानी बन कर सामने आये व् उसकी कमियाँ बता कर उसके आत्म विश्वास को तोड़ दे |
रियल स्टोरी – सर्वमिष्ठा सेनगुप्ता
राइटर – वंदना बाजपेयी
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अगला कदम के लिए आप अपनी या अपनों की रचनाए समस्याएं editor.atootbandhan@gmail.com या vandanabajpai5@gmail.com पर भेजें
#अगला_कदम के बारे में
हमारा जीवन अनेकों प्रकार की तकलीफों से भरा हुआ है | जब कोई तकलीफ अचानक से आती है तो लगता है काश कोई हमें इस मुसीबत से उबार ले , काश कोई रास्ता दिखा दे | परिस्तिथियों से लड़ते हुए कुछ टूट जाते हैं और कुछ अपनी समस्याओं पर कुछ हद तक काबू पा लेते हैं और दूसरों के लिए पथ प्रदर्शक भी साबित होते हैं |
जीवन की रातों से गुज़र कर ही जाना जा सकता है की एक दिया जलना ही काफी होता है , जो रास्ता दिखाता है | बाकी सबको स्वयं परिस्तिथियों से लड़ना पड़ता है | बहुत समय से इसी दिशा में कुछ करने की योजना बन रही थी | उसी का मूर्त रूप लेकर आ रहा है
” अगला कदम “
जिसके अंतर्गत हमने कैरियर , रिश्ते , स्वास्थ्य , प्रियजन की मृत्यु , पैशन , अतीत में जीने आदि विभिन्न मुद्दों को उठाने का प्रयास कर रहे हैं | हर मंगलवार और शुक्रवार को इसकी कड़ी आप अटूट बंधन ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं | हमें ख़ुशी है की इस फोरम में हमारे साथ अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ व् कॉपी राइटर जुड़े हैं |आशा है हमेशा की तरह आप का स्नेह व् आशीर्वाद हमें मिलेगा व् हम समस्याग्रस्त जीवन में दिया जला कर कुछ हद अँधेरा मिटाने के प्रयास में सफल होंगे
जीवन की रातों से गुज़र कर ही जाना जा सकता है की एक दिया जलना ही काफी होता है , जो रास्ता दिखाता है | बाकी सबको स्वयं परिस्तिथियों से लड़ना पड़ता है | बहुत समय से इसी दिशा में कुछ करने की योजना बन रही थी | उसी का मूर्त रूप लेकर आ रहा है
” अगला कदम “
जिसके अंतर्गत हमने कैरियर , रिश्ते , स्वास्थ्य , प्रियजन की मृत्यु , पैशन , अतीत में जीने आदि विभिन्न मुद्दों को उठाने का प्रयास कर रहे हैं | हर मंगलवार और शुक्रवार को इसकी कड़ी आप अटूट बंधन ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं | हमें ख़ुशी है की इस फोरम में हमारे साथ अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ व् कॉपी राइटर जुड़े हैं |आशा है हमेशा की तरह आप का स्नेह व् आशीर्वाद हमें मिलेगा व् हम समस्याग्रस्त जीवन में दिया जला कर कुछ हद अँधेरा मिटाने के प्रयास में सफल होंगे
हर बात का कहने का अपना ढंग होता है। यदि सही बात को भी सही ढंग से म कहा जाए तो वो गलत लगती है। सुंदर प्रस्तुति।
धन्यवाद ज्योति जी
सलाह देने का अर्थ ये नहीं की हम उनसे बेहतर हैं | अगर कोई सलाह मांगे तो इसे दूसरे की कमी निकालने के मौके के रूपमें नहीं देखना चाहिए | राय ऐसी दें की सुनने वाले को लगे की आप उसके दर्द को समझ रहे हैं न किउसकी कमी निकाल रहे हैं | अच्छा लेख
धन्यवाद
Salah dene ka mano vaigyanik dristikong present karta accha alekh… Divya shukla
धन्यवाद दिव्या जी