पापा मेरे मैथ्स के सवाल हल करने में मुझे आपकी मदद चाहिए |
नहीं बेटा आज तो मैं बहुत बिजी हूँ , ऐसा करो संडे को तुम्हारे साथ बैठूँगा |
पापा , न जाने ये संडे कब आएगा | पिछले एक साल से तो आया नहीं |
बहुत फ़ालतू बाते करने लगा है | अभी इतना बड़ा नहीं हुआ है की पिता से जुबान लड़ाए | देखते नहीं दिन – रात तुम्हारे लिए ही कमाता रहता हूँ | वर्ना मुझे क्या जरूरत है नौकरी करने की |
मम्मा रोज चीज ब्रेड ले स्कूल लंच में ले जाते हुए ऊब होने लगी है ,दोस्त भी हँसी उड़ाते हैं | क्या आप मेरे लिए आज कुछ अच्छा बना देंगीं |
नहीं बेटा , तुम्हें पता है न सुबह सात बजे तक तुम्हारा लंच तैयार करना पड़ता हैं | फिर मुझे तैयार हो कर ऑफिस जाना होता है | शाम को लौटते समय घर का सामान लाना , फिर खाना बनाना | कितने काम हैं मेरी जान पर अकेली क्या क्या करु | आखिर ये नौकरी तुम्हारे लिए ही तो कर रही हूँ | ताकि तुम्हें बेहतर भविष्य दे सकूँ | कम से कम तुम सुबह के नाश्ते में तो एडजस्ट कर सकते हो |
सुपर बिजी रागिनी और विक्रम का अपने १२ वर्षीय पुत्र देवांश से ये वार्तालाप सामान्य लग सकता है | पर इस सामान्य से वार्तालाप से देवांश के मन में उपजे एकाकीपन को उसके माता – पिता नहीं समझ पा रहे थे | तो किसी और से क्या उम्मीद की जा सकती है |
स्कूल से आने के बाद देवांश घर में बिलकुल अकेला होता | कभी सोफे पर पड़ा रहता , तो कभी मोबाइल लैपटॉप पर कुछ खंगालता , कभी रिमोट से टी वी चैनल बदलता | उसे घर एक कैद खाना सा लगता पर माता – पिता की अपने एकलौते पुत्र की सुरक्षा के लिए घर से बाहर न निकलने की इच्छा उसे मन या बेमन से माननी ही पड़ती | बाहर दोस्त खेलने को बुलाते पर वो कोई बहाना बना कर मोबाइल में बिजी हो जाता | देवांश पढाई में भी पिछड़ रहा था | ये ऊब भरी जिंदगी उसे निर्थक लग रही थी | उसके लिए जिंदगी बोरिंग हो चुकी थी | जहाँ कोई एक्साईटमेंट नहीं था |
जिन्दगी की लौ फिर से जलाने के लिए वो नए – नए मोबाइल गेम्स खेलता रहता | ऐसे ही उसकी नज़र पड़ी एक नए गेम पर , जिसका नाम था ब्लू व्हेल | यूँ तो ब्लू व्हेल संसार का सबसे बड़ा जीव है | पर इस गेम का नाम उस पर रखने के पीछे एक ख़ास मकसद था | क्योंकि ये ब्लू व्हेल समुद्र मैं तैरती नहीं थी | जिन्दिगियाँ निगलती थी ,पूरी की पूरी | इसका आसान शिकार थे जिन्दगी से ऊबे हुए लोग | खासकर किशोर व् बच्चे | इस गेम में प्रतियोगियों को ५० दिन में ५० अलग – अलग टास्क पूरे करने होते हैं |और हर टास्क के बाद अपने हाथ पर एक निशान बनाना होता है | इस गेम का आखिरी टास्क होता है आत्महत्या |
जिंदगी की चिंगारी जलाने की चाह ब्लास्ट तक ले जा सकती है इस बात से अनभिज्ञ देवांश ने यह गेम खेलना शुरू किया | उसे बहुत मजा आ रहा था | पहला टास्क जो उसे मिला वो था रात में हॉरर मूवी देखने का | वो भी अकेले | देवांश सबके सो जाने के बाद चुपचाप दूसरे कमरे में जा कर फिल्म देखने लगा | डर से उसके रोंगटे खड़े हो गए | पर आखिरकार उसने फिल्म देख ही ली | जीत के अहसास के साथ उसने अपने हाथ पर निशान बना दिया | सुबह रागिनी ने हाथ देखा तो देवांश ने उसे बताया माँ ट्रुथ एंड डेयर का एक खेल खेल रहा था ” ब्लू व्हेल ” बहुत मजा आया | रागिनी सुरक्षा के साथ खेल खेलने की ताकीद दे कर अपने काम में लग गयी | इससे ज्यादा कुछ कहने का समय रागिनी के पास कहाँ होता था |
देवांश का व्यवहार बदल रहा था | रागिनी व् विक्रम महसूस कर रहे थे | कुछ टोंकते तो भी देवांश उनकी बात अनसुनी कर देता | रागिनी ने उसे पढाई के बहाने टोंका तो देवांश ने बताया ,” मम्मा आज मेरे गेम का अंतिम टास्क है | यह पूरा हो जाए फिर कल से पढूंगा | रागिनी निश्चिन्त हो कर ऑफिस चली गयी | ऑफिस में आज माहौल कुछ दूसरा ही था | सभी लोग कुछ चिंतित थे | रागिनी ने महसूस किया की आज वो ऑफिस के सहकर्मी नहीं बस माता – पिता थे | जो अपने बच्चों के वीडियो गेम्स खेलने पर चिंतित थे | अब बच्चे हैं तो वीडियो गेम खेलेंगे ही यह सोंच कर रागिनी ने उनकी बातों पर ध्यान न देकर अपने काम पर फोकस करने का मन बनाया | आखिर माता – पिता हैं तो चिंता तो करेंगे ही |
एक बजे लंच ब्रेक में उसने अपनी सहकर्मी मोहिनी से कहा ,” क्या बात है आज सभी को अपने बच्चों की टेंशन है | मोहिनी दीवार पर आँखे गड़ा कर लंबी सांस लेते हुए बोली ,” क्यों न हो , आज हम सब यहाँ पैसा कमाने में जुटे हैं , की बच्चों भविष्य सुनहरा हो , वहां घर पर हमारे बच्चे मोबाइल , लैप टॉप पर अपनी जान खतरे में डाल रहे हैं | क्या मतलब ? मोबाइल लैप टॉप पर समय की बर्बादी तो समझ आती है पर जान खतरे में डालना , रागिनी ने प्रतिप्रश्न किया | मोहिनी आश्चर्य से उसकी और देखती हुई बोली , क्या तुमने अखबार नहीं पढ़ा ? मुंबई के एक १४ साल के छात्र ने एक वीडियो गेम के टास्क को पूरा करने के लिए आत्महत्या कर ली | उस गेम का अंतिम टास्क आत्महत्या ही होता है | जानती हो उस गेम का नाम है ” ब्लू व्हेल ”
रागिनी को जोर का झटका लगा | मुँह का कौर जैसे गले में अटक गया | कांपते हाथों से विक्रम को फोन मिलाया | पर गला रुंध गया | शब्द मुँह की देहरी पार करने से इनकार करने लगे | बहुत हिम्मत जुटा कर बोली ,” विक्रम अभी के अभी मेरे ऑफिस आ जाओ , फिर घर चलते हैं | व्हाट ,विक्रम ने आश्चर्य से कहा , ” तुम्हे पता है ना की आज मेरी कितनी जरूरी मीटिंग है | बात क्या है ?तुम अकेली ही चली जाओ | रागिनी अपने आंसुओं का सैलाब रोकते हुए बोली ,” जिंदगी की दौड़ में हम सब अकेले ही हो गए हैं विक्रम | पर अपने अपने वृत्त में भागते हुए भी यह अहसास तो रहता ही है की हमारे वृत्त देवांश पर आकर ओवरलैप करते हैं | आज उसी देवांश को हमारी जरूरत है | वो स्कूल से आ गया होगा | और खाना खा कर वीडियो गेम खेलने लगा होगा | तो इसमें नया क्या है ? विक्रम ने बात बीच में काटते हुए कहा | नया है उसका डेडली गेम ब्लू व्हेल , जिसका आज अंतिम टास्क वो खेलने जा रहा है | क्याआआअ ? विक्रम ने लगभग चीखते हुए कहा , ब्लू व्हेल की चर्चा आज उसके ऑफिस में भी थी | ठीक है , ठीक है मैं अभी आता हूँ | विक्रम ने अपने घुमड़ते हुए मन को नियंत्रित करते हुए कहा |
बाहर बारिश हो रही थी | आसमान में इतने काले बादल घिरे हुए थे की दोपहर में रात का अहसास हो रहा था | रागिनी और विक्रम के ऑफिस का फासला आधे घंटे का था पर रागिनी को लग रहा था की जैसे विक्रम के आने में युगों बीते जा रहे हैं | सारा ऑफिस रागिनी को घेरे खड़ा था | सब उसकी मनो दशा समझ रहे थे | किसी ने देवांश को फोन करने को कहा | रागिनी ने फोन मिलाया | घंटी जाती रही , जाती रही पर देवांश ने फोन नहीं उठाया | रागिनी के सब्र का बाँध टूट गया |नेत्रों की गंगा जमुना में बाढ़ आ गयी | विक्रम के आते ही रागिनी उससे लिपट कर रो पड़ी ,’ विक्रम मेरे देवांश को बचा लो , बचा लो | विक्रम अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रख कर उसके सैर पर हाथ फेरते हुए बोला , कुछ नहीं होगा देवांश को , कुछ भी नहीं |
दोनों गाडी में बैठ गए | विक्रम ने गाडी चलाना शुरू किया | पर ये क्या , गाडी के वाइपर चल ही नहीं रहे थे | गाडी का शीशा उनके मन की तरह धुंधला था | तेज बारिश में उन्हें बाहर का कुछ दिखाई नहीं दे रहा था | गाडी रेंग – रेंग कर ही चल पा रही थी | विक्रम और रागिनी के दिल की धडकने भय से बढती ही जा रही थीं | बीच – बीच में रागिनी देवांश को फोन मिला रही थी | पर देवांश उठा ही नहीं रहा था | यह बात उनके भय को और बढ़ा रही थी | रागिनी ने पड़ोस में फोन किया | पर वो लोग तो आउट ऑफ़ स्टेशन थे | उन्होंने अपनी असर्मथता जताते हुए माफ़ी मांग ली | आज ही रागिनी को पता चला की पड़ोस के दो लोग आउट ऑफ़ स्टेशन हैं , एक बीमार हैं और हॉस्पिटल में हैं | व् अन्य एक की आज बेटी की सगाई है इसलिए वो गेस्ट हाउस में हैं | क्या है शहरी जीवन की लाचारी , हमें अपने ही पडोस की कोई खबर नहीं रहती और दुनिया बदलने के ऊपर घंटों तर्क करते हैं | आज भी रागिनी ने अपने ही मतलब से फोन मिलाया था | पर कोई फायदा नहीं हुआ | देवांश की कुछ भी जानकारी नहीं मिल रही थी |
तभी एक बस स्टॉप पड़ा | रागिनी ने विक्रम से कहा ,” चलो गाडी यही लॉक कर देते हैं व् यहाँ से 172 नम्बर की बस पकड़ लेते हैं | वो सीधा कॉलोनी के गेट पर उतारेगी | विक्रम ने हां में हाँ मिलाई | जिस गाडी के एक स्क्रेच पर उसका मूड ख़राब हो जाता , आज उसी गाडी की उसे कोई चिंता नहीं थी | बस कालोनी के गेट पर रुकी | लाईट नहीं आ रही थी | बाहर का अँधेरा अंदर के अँधेरे से टक्कर ले रहा था | फ्लैट की सीढियां चढ़ते हुए रागिनी ने मोबाइल की टॉर्च जला ली | धडकते दिल से रागिनी ने गेट खटखटाया | कोई आवाज़ नहीं आई | रागिनी रोने लगी | विक्रम जोर जोर से दरवाजा खटखटाने लगा |
कोई आवाज़ न आने पर रागिनी को अपनी आशंका सच में बदलती हुई नज़र आई | वो वहीँ जमीन पर पसर गयी और दहाड़े मार मार कर रोने लगी | विक्रम ने दरवाजा तोड़ने का मन बनाया | वो पूरी ताकत से अपने कंधे दरवाजे पर मारने लगा | तभी दरवाज़ा खुला | देवांश अपनी उनींदी पलकों को मलते हुए उन्हें आश्चर्य से देख रहा था |मम्मा पापा आप इतनी जल्दी ? रागिनी और विक्रम की जैसे जान में जान आ गयी | उन्होंने उसे दौड़कर गले से लगा लिया | रागिनी देवांश को बार – बार चूमे जा रही थी व् बुदबुदाते हुए भगवान् का धन्यवाद दे रही थी | विक्रम धीरे – धीरे अपने रुमाल से अपने आंसुओं को पोंछ रहा था | एक बड़ी विपदा आते – आते टल गयी थी |
थोड़ी ही देर में लाईट आ गयी | उनके रोते हुए चेहरे देखकर देवांश ने पूंछा ,” मम्मी – पापा क्या बात है ?आप लोग रो क्यों रहे थे ? रागिनी देवांश के सर पर हाथ फेरते हुए बोली ,” बेटा हम बहुत डर गए थे | वो तुम्हारा गेम ” ब्लू व्हेल ” आज उसके बारे में खबर पढ़ी | फिर तुम्हारा फोन भी नहीं लगा | हम घबरा गए | कहीं तुम उसका अंतिम टास्क तो नहीं खेल रहे हो | हां , मम्मा आज उसका अंतिम टास्क खेलना था | पर न लाईट आ रही थी न इन्टरनेट | तो फिर मैं फोन को म्यूट पर कर के सो गया | मुझे पता था , आप लोग तो फोन करते नहीं पर मेरे दोस्त बार – बार फोन करके मुझे बाहर खेलने को बुलायेंगे और मैं जाऊँगा नहीं | विक्रम बोले ,” देवांश आज ईश्वर ने बहुत बड़ी कृपा की | तुम्हें पता है आत्महत्या के लिए उकसाने वाला ये गेम अपराधिक मानसिकता वाले लोंगों ने बनाया हैं | जिसमें से एक पकड़ा गया है | जिसका नाम फिलिप है | वो २१ साल का रूस का रहने वाला है | सबसे खतरनाक बात यह है की अपने कृत्य पर वो शर्मिंदा नहीं है | अपनी गवाही में उसने साफ़ – साफ़ कहा है की उसके पीड़ित ” जैविक कूड़ा हैं ” समाज की सफाई के लिए जिनका मर जाना ही अच्छा है |
देवांश बड़े गौर से पिता की बाते सुन रहा था | फिर आँखें नीची कर के बोला ,” पापा मैं आत्महत्या नहीं करना चाहता था | मैं तो जिन्दगी की ऊब में बस थोडा ऐडवेंचर चाहता था | आप और मम्मा पूरे दिन के लिए काम पर चले जाते हो | मैं अकेला रह जाता हूँ | बोर होता रहता हूँ | क्या करु ? रागिनी ने उसका माथा चूमते हुए कहा ,” नहीं देवांश , अब हम ओवर टाइम नहीं करेंगे | जिसके लिए हम इतना कामकर रहे हैं अगर वो ही साथ छोड़ कर चला जाए तो फिर यह रुपया – पैसा किस काम का ? अब हम अपना टाइम ऐसे मेनेज करेंगे की तुम्हें ज्यादा देर तक अकेला न रहना पड़े | मेरे बच्चे तुम से ज्यादा कीमती हमारे लिए कुछ नहीं | देवांश की आँखों में ख़ुशी के आँसूं थे | उसने धीरे से कहा ,” थैंक यू मम्मा , थैंक यूँ पापा |
देवांश के सोने के बाद भी रागिनी की आँखों में नींद नहीं थी | विक्रम भी बार – बार करवट बदल रहे थे | रागिनी ने ही पूंछा ,” विक्रम सोये नहीं क्या ? नहीं रागिनी नींद नहीं आ रही | ईश्वर की कृपा से हमारा देवांश तो बच गया पर न जाने कितने बच्चे ऐसे जानलेवा खेलों की गिरफ्त में फंसे होंगे | हम माता – पिता बच्चों के लिए कमाने के चक्कर में इतना व्यस्त हो जाते हैं की ये भी नहीं सोंच पाते की बच्चों को माता – पिता का समय भी चाहिए सिर्फ सुविधाएं ही नहीं |विक्रम ने कहा | पर हम क्या कर सकते है , रागिनी ने गहरी सांस लेते हुए कहा | विक्रम थोड़ी देर तक रागिनी को एक तक देखते हुए बोला ,” रागिनी हम अवेयरनेस तो फैला सकते हैं दोस्तों सहकर्मियों में फेसबुक , ब्लॉग ,ट्विटर के माध्यम से , अपने अपने स्तर पर | रागिनी की आँखों में चमक आ गयी ,” सही कह रहे हो तुम ये अवेयर नेस जरूरी है की माता – पिता अपने बच्चों को मंहगे मोबाइल के हवाले न कर दे ताकि बच्चे किसी सेल्फ हर्मिंग गेम के चंगुल में न फँस जाए | न ही कोई ब्लू व्हेल निगल ले किसी मासूम की जिन्दगी |विक्रम ने सहमती से सर हिलाया |
वंदना बाजपेयी
नोट – जैसा की आप सब को पता है की ब्लू व्हेल गेम एक सेल्फ हार्मिंग गेम है | मुंबई के एक बच्चे ने इसी गेम को खेलते हुए आत्म हत्या कर ली थी | यह खबर हर अखबार में थी | जी . टी वी के डीएनए में भी इसकी चर्चा हुई थी | माता – पिता को न सिर्फ अपने बच्चों को समय देना चाहिए बल्कि उनके ऊपर निगरानी रखना भी जरूरी है की वो क्या खेल रहे हैं | ये कहानी इसी अवेयरनेस मुहिम का हिस्सा है |
यह भी पढ़ें ………
लली
वो क्यों बना एकलव्य
ईद का तोहफा
रुतबा
वंदना जी, मैंने इस गेम के बारे में नही सुना था। लेकिन जानकर दूख, हैरानी,बच्चो के भविष्य की चिंता और न जाने क्या क्या मन में आने लगा।
सच मे आज बच्चो को सुख सुविधा के साधनों से ज्यादा जरूरत माता पिता के प्यार की उनके साथ बिताए क्वालिटी टाइम की है।
आपके इस लेख उन माता पिता की आंखे जरूर खुलेंगी जो अपने बच्चों को समय नही देते।
धन्यवाद ज्योति जी
समसामयिक घटनाओं पर पैनी नज़र रखती हैं आप, बहुत ही सुन्दर ढ़ंग से जागरूकता फैलाती आपकी कथा।
धन्यवाद राकेश कुमार जी
सुख सुविधा से अधिक प्यार की जरूरत है । आंखें खोलने वाली कहानी ।
धन्यवाद आशा जी
बहुत ही उम्दा पोस्ट शेयर किया आपने
धन्यवाद संगीता जी