चिंतन मंथन – घर में बड़ों को हर बात में अपनी बेबाक राय देते बच्चों की भूमिका कितनी सही कितनी गलत
घरों में बड़ों का रोल निभाते बच्चे
विकास की दौड़ती गाड़ी के साथ हमारे रिश्तों के विकास में बड़ी उथल पुथल हुई है | एक तरफ बड़े ” दिल तो बच्चा है जी’ का नारा लगते हुए अपने अंदर बच्चा ढूंढ रहे हैं या कुछ हद तक बचकाना व्यवहार कर रहे हैं वहीं बच्चे तेजी से बड़े होते जा रहे हैं | इन्टरनेट ने उन्हें समय से पहले ही बहुत समझदार बना दिया | माता – पिता भी नए ज़माने के विचारों से आत्मसात करने के लिए हर बात में बच्चों की राय लेते हैं | हर बात में अपनी राय देने के कारण जहाँ बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ा है | पारिवारिक रिश्तों में अपनी बात रखने का भय कम हुआ है वहीं कुछ नकारात्मक परिणाम भी सामने आये हैं | अत : जरूरी ही गया है की इस बात पर विमर्श किया जाए की बच्चों की ये नयी भूमिका कितनी सही है कितनी गलत |
निकिता किटी पार्टी में जाने के
लिए तैयार हो रही थी | जैसे ही उन्होंने लिपस्टिक लगाने के लिए हाथ बढाया १५ वर्षीय बेटी पारुल नें तुरंत टोंका “ न न
मम्मी डार्क रेड नहीं , ब्राउन कलर की लगाओ वो भी मैट फिनिश की ,इसी का फैशन हैं | निकिता जी नें
तुरंत हामी भरी “ ओके ,ओके | निकिता जी अक्सर
कहा करती हैं कि उन्हें कहीं भी जाना होता है तो बेटी से ही पूँछ कर साड़ी चुनती हैं , उसका ड्रेसिंग सेंस गज़ब का है | बच्चे आजकल फैशन के बारे में ज्यादा
जानते हैं |
धर्मेश जी और उनकी पत्नी राधा के बीच में कई दिन से झगडा चल रहा था | कारण
था राधा जी की किसी स्कूल में टीचर के रूप में पढ़ाने की इक्षा | धर्मेश जी हमेशा
तर्क देते “ तुम्हे पैसों की क्या कमी है , मैं तो कमाता ही हूँ | चार रुपयों के
लिए क्यों घर की शांति भंग करना चाहती हो | राधा जी अपना तर्क देती कि वो सिर्फ पैसे के लिए नहीं पढाना चाहती हैं उनकी इक्षा है की अपने दम पर कुछ करे
, अपनी नज़र में ऊँचा उठे | पर धर्मेश जी मानने को तैयार नहीं होते | आपसी झगडे में
इतिहास और भूगोल घसीटे जाते पर परिणाम कुछ न निकलता | एक दिन रात के २ बजे दोनों
झगड़ रहे थे | तभी उनकी ११ साल की बेटी उठ गयी | कुछ देर के लिए पसरी खामोशी को
तोड़ते हुए बोली “ पापा ,आप थोड़ी देर के लिए मम्मी की जगह खुद को रख कर देखिये, हम
सब स्कूल ,ऑफिस वैगरह चले जाते हैं | मम्मी अकेली रह जाती हैं | ऐसे में अगर वो
अपनी शिक्षा का इस्तेमाल करना चाहती हैं ,तो गलत क्या है | इसमें उनको ख़ुशी मिलेगी
| हम लोगों को ऐतराज़ नहीं है ,फिर आप को क्यों ? दिन रात इसी बात पर पत्नी से
उलझने वाले धर्मेश जी बेटी की बात नहीं काट सके | कुछ दिन बाद राधा जी पास के एक
स्कूल में अध्यापन कार्य करने लगी |
पति रोहित उसकी यदा –कदा हँसी उडा देता जिससे उनकी हिम्मत और टूट गयी | बेटा सूरज
जब बड़ा हुआ तो उसने अपनी मम्मी का उच्चारण दोष दूर करने की ठान ली | उसने ममता के
साथ अंग्रेजी में बात करना शुरू किया |
उसको शीशे के सामने बोलने के लिए प्रेरित किया | उसके गलत उच्चारण को विनम्रता
पूर्वक सही किया | आज ममता जी फर्राटे से
अंग्रेजी बोलती हैं | उनके मन में अपने बेटे के लिए प्रेम के साथ –साथ सम्मान का
भाव भी है |
चंद्रकांत जी पिछले कई सालों से चेन स्मोकर हैं | माँ ,पत्नी ,रिश्तेदार
समझाते –समझाते हार गए पर आदत छूटने का नाम ही नहीं ले रही थी | एक दिन ७ वर्षीय
बेटा अपना मोबाइल ले कर चंद्रकांत जी के
पास बैठ गया | गूगल पर एक –एक फोटो क्लिक करते हुए वह उन्हें सिगरेट के नुक्सान के
बारे में बताने लगा | चंद्रकांत जी सर झुका कर सुनते रहे | वह खुद लज्जित थे | अंत
में बेटे नें आंकड़े दिखाए कि सिगरेट पीने वालों के बच्चे भी पैसिव स्मोकर बन जाते
हैं | इससे उनके स्वास्थ्य को भी खतरा है | फिर मोबाइल रख कर बेटे ने उनके गालों
पर हाथ रखते हुए कहा “ पापा क्या आप हम लोगों को प्यार नहीं करते हैं “| चंद्रकांत जी की आँखे डबडबा गयी , वे बेटे
से नज़रे नहीं मिला सके | उन्होंने सिगरेट फेंक
कर बेटे को गोद ले कर कहा “ आइ लव
यू बेटा , अब कभी सिगरेट नहीं पियूँगा | “ दरसल वो बेटे की नज़रों में गिरना नहीं
चाहते थे |
बच्चे सदा बच्चे ही बने रहते हैं | उन्होंने
जरा कुछ बोलने की कोशिश की …. तुरंत सुनने को मिल जाता “ चार किताबें
क्या पढ़ ली ,हमसे जुबान लड़ाओगे | “ खासकर माता –पिता के झगड़ों में तो उन्हें बोलने
की सख्त मनाही होती थी | बड़ो के बीच में बोलना अशिष्ट समझा जाता था | उस ज़माने में
कहा जाता था ‘ अगर आप को अपनी गलतियाँ देखनी हैं तो अपने बच्चों को गुड़ियाँ खेलते
हुए देख लीजिये | अपनी हर गलती समझ आ जायेगी |
मनोवैज्ञानिक सुष्मिता मित्तल कहती हैं “तब बच्चे नकल करते थे अब
अक्ल लगाते हैं | वह माता पिता से अपने
मन की बात कहने में ,राय देने में हिचकते नहीं हैं |”
मनोवैज्ञानिक अतुल नागर
कहते हैं कि “यह ग्लोब्लाइज़ेशन का दौर है | पुरानी मान्यताएं टूट रही हैं |
पहले माना जाता था कि माता –पिता भगवान्
का रूप होते हैं वह कहीं गलत हो ही नहीं सकते |”
पश्चिम से आई बयार के साथ हमारे
देश में भी रिश्तों में खुलापन आया है| लोग मानने लगे हैं कि माता –पिता भी इंसान
हैं , वह भी कई मुद्दों पर गलत हो सकते हैं , निराश हो सकते हैं , आत्म विश्वास खो
सकते हैं | ऐसे में अगर अपने बच्चे ही संबल बन कर खड़े हो जाते हैं | सही –गलत
बताते हैं तो इसमें अपमान करने का भाव नहीं बल्कि स्नेह व् अच्छे पारिवारिक माहौल
की भावना छुपी होती है |
देखा जाए
तो आज एकल परिवारों में बच्चे बड़ों की भूमिका में आ गए हैं | यह महज
समय के साथ हुआ परिवर्तन नहीं है | इसके कई
कारण हैं |
दोस्त बन गए बच्चे
वहां अनुसाशन व् भय की गंभीर भूमिका थी | पिता तो अपने बच्चे को गोद भी नहीं उठता
था | हाँ भाई के बच्चे को उठा सकता है | संयुक्त परिवार को बनाए रखने के लिए शायद
पिता अपनी कोमल भावनाएं मारता था | जिससे वह और कठोर हो जाता था | समय के साथ –साथ
यह समझा जाने लगा कि कोई भी रिश्ता तभी टिकता है जब उसमें उस रिश्ते की गरिमा के
साथ सखा भाव हो | आज बच्चे अपने पेरेंट्स
के साथ क्रिकेट खेलते हैं ,टी.वी देखते हैं ,न्यूज़ डिस्कस करते हैं | जिससे रिश्तों में खुलापन व् अपनी
बात कह सकने की हिम्मत आ गयी है |
देखना चाहते हैं रोल मॉडल के रूप में
बहुत समय पहले एक फिल्म आई थी डैडी जिसमें नायिका
अपने शराबी पिता से कहती है “ केवल माता –पिता ही नहीं चाहते की बच्चे उनका नाम
ऊँचा करे और वह उन पर फक्र करे अपितु बच्चे भी चाहते हैं कि वो अपने माता –पिता पर
फक्र करे | स्वेता शर्मा इस बात पर कहती हैं “ माता –पिता बच्चों के रोल मॉडल होते
हैं | बच्चे चाहते हैं की उनमें कोई कमी न हों | इसलिए इसमें वह टोंका –टांकी कर
के सुधार करने में कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहते |
लगाव है असली वजह
पहले संयुक्त परिवार
हुआ करते थे | बच्चों का बचपन सलामत रहता था | बच्चे जानते थे कि अगर पापा –मम्मी
कुछ गलत करेंगे तो दादी ,नानी समझाने के लिए हैं | पर आज के बच्चे जानते हैं कि
जहाँ माता –पिता के स्वास्थ्य , कैरियर , आत्मविश्वास की बात आती है तो वह अपनी
बात खुल कर रखे | इसके पीछे केवल लगाव की भावना रहती है | बच्चे चाहते हैं कि माता
–पिता को कोई तकलीफ न हो | तभी तो
डायबिटीज की बीमारी से ग्रस्त भावेश को उनकी नन्ही परी स्नेह भरी घुड़की लगा देती है …… “ पापा अब और मिठाई
नहीं , बिलकुल नहीं “ इतना ही नहीं वह सामने से मिठाई की प्लेट हटा भी देती है
क्योंकि वो जानती है की पापा से कंट्रोल नहीं होगा |
बच्चे हैं अच्छे गाइड
स्वेता जी सामान इधर –ऊधर रख कर भूल जाती थी | पति महेश डांट देते तो पूरा
दिन रोती रहती | जिससे घर और अस्त –व्यस्त
हो जाता | बेटे रोहन ने एक दिन माँ के गले में बाहें डाल कर कहा माँ आप कितना काम
करती हैं , आप दुनिया की बेस्ट मॉम हैं …….पर एक कमी रह गयी आप में आप चीजों
को रख कर भूल जाती हैं | जिससे मैं भी कभी –कभी स्कूल के लिए लेट हो जाता हूँ |
अगर आप ये बुरी आदत छोड़ दे तो आप पक्का बेस्ट मॉम हैं |
समझदार हैं बच्चे
बहुत
पहले एक चुटकुला सुना था……. एक बार एक बच्चा “ बच्चों को पालने के
सही तरीके “किताब पढ़ रहा था| माँ
ने हंस कर पूंछा “ ये किताब तुम क्यों पढ़ रहे हो ? बच्चे ने जवाब दिया कि “ मैं ये
देखना चाहता हूँ ,मुझे सही तरीके से पाला गया है या नहीं |”
आज के बच्चे समझदार हैं | सोशल मीडिया की वजह
से उनके ज्ञान में काफी इजाफा हुआ है | सही –गलत को पहचानने की उनकी समझ विकसित ही
गयी है | वो जानते हैं की कि जिन घरों में अच्छा वातावरण रहता है जहाँ सब खुश रहते हैं वहाँ बच्चों की अच्छी
परवरिश होती है | बच्चे अपनी आज़ादी का गलत इस्तेमाल नहीं करते वरन वो माता –पिता
की गलत आदतों को दूर करने में अपनी भूमिका
निभाने से परहेज नहीं करते |
नकारात्मक भी है प्रभाव
बनने में परहेज नहीं करते |अक्सर उनका उदेश्य
केवल माता –पिता का ख्याल रखना होता है |पर हमेशा नहीं | कई बार बच्चों में तानाशाही की भावना आ जाती है | अत : ये तब तक अच्छा है जब तक उनमें बॉस बनने की प्रवत्ति न आये | जिसके कारण उनमें आगे जिंदगी के प्रति सहनशीलता कम हो जाती है व् केवल अपनी ही चलाने की भावना जगती है |कई बार बच्चों की राय को खुद से अधिक महत्व देने के कारण उनमें अनुशासन हीनता भी आती है | जिससे वो बड़ों की अवज्ञा करने व् बात न मानने से गुरेज नहीं करते | यहाँ तक की वो सबके सामने माता – पिता की बात भी काट देते हैं | एक दूसरी समस्या जो उभर कर आई है कि जब माता – पिता हर बात में अपने बच्चों की राय लेते हैं तो बच्चे न सिर्फ बड़ों की तरह बिहेव करने लग जाते हैं बल्कि बच्चे बड़ों की तरह स्पेस व् प्राइवेसी की मांग करने लगते हैं |
बच्चों को ये स्पेस देना जितना आधुनिक लगता है | उतना ही खतरनाक भी है | क्योंकि बच्चे फिर अपनी किसी बात के लिए जवाब देह नहीं रह जाते हैं | देर से घर आये , आप पूँछ नहीं सकते | क्या करना चाहते हैं आप पूँछ नहीं सकते | किस दोस्त के साथ जा रहे हैं आप पूँछ नहीं सकते | कुल मिला कर यह नया समाज जो बच्चों की राय पर आगे बढ़ रहा है , माता – पिता होने का अधिकार खोता जा रहा है | पर माता – पिता होना सिर्फ अधिकार ही नहीं कर्तव्य भी है | जहाँ जरूरी है बड़ा होना और थोड़ी सी सख्ती | वो सख्ती जो बच्चों को दिशा से भटकने नहीं देती |
कहने का तात्पर्य बस इतना है की बच्चे अपनी राय दें , जिससे उनकी फैसला लेने की क्षमता विकसित हो व्प माता – पिता को भी नयी सोंच को जानने – समझने का अवसर मिले पर ये ध्यान रखा जाए की बच्चों में हमेशा अपनी चलने की भावना न विकसित हो | यह संतुलन माता – पिता को ही स्थापित करना है की बच्चों को अपनी राय रखने का हक़ तो हो पर बॉस बनने की इजाज़त न दें |
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बहुत ही सुन्दर सटीक सामयिक एवं सार्थक आलेख!
हार्दिक बधाई वंदना जी!
dhnyvad kiran ji