15 अगस्त पर एक खूबसूरत कविता
—रंगनाथ द्विवेदी
अपनो के ही हाथो———
सरसैंया पे पीड़ाओ के तीर से विंधा,
भीष्म सा पड़ा है——पन्द्रह अगस्त।
सड़को पे द्रोपदी के रेप के दृश्यो ने,
फिर भर दी है आजाद देश के
उन तमाम शहीदो की आँखे,
और उनकी रुह के सामने!
शर्म से खड़ा है—-पन्द्रह अगस्त।
बहुत बिरान है मजा़रे कही मेला नही लगता,
ये सच है——————-
कि हम शहिदो की शहादत के दगाबाज है,
फिर भी एै,रंग————-
ये लहराते तिरंगे कह रहे,
कि हमारी तुम्हारी सोच से भी कही ज्यादा,
विशाल और बड़ा है—–पन्द्रह अगस्त।
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