रचना व्यास
चातुर्मास
में साध्वियों
का दल पास ही के भवन में ठहरा
था। महिमा नित्य अपनी सास के साथ प्रवचन सुनने
जाती थी। समाज में ये संचेती परिवार बड़े सम्मान की दृष्टी से देखा जाता
था। अर्थलाभ हो या धर्मलाभ -सबमें अग्रणी।
में साध्वियों
का दल पास ही के भवन में ठहरा
था। महिमा नित्य अपनी सास के साथ प्रवचन सुनने
जाती थी। समाज में ये संचेती परिवार बड़े सम्मान की दृष्टी से देखा जाता
था। अर्थलाभ हो या धर्मलाभ -सबमें अग्रणी।
प्रेक्षा -ध्यान के नियमित
प्रयोग ने महिमा को एकाग्रता ,तुष्टि व
समता रुपी उपहार दिए। व्याख्यान के दौरान उसका ध्यान एक 16 -17 वर्षीय साध्वी पर अनायास ही खिंच जाता। साध्वी सुमतिप्रभा – यही नाम था उनका। ऐसी व्यग्रता और चंचलता अमूमन साध्वियों के व्यवहार
में नहीं
होती।गोचरी के लिए आती तो प्रतीत
होता कि वयोवृद्ध साध्वी उन्हें आचरण सीखा रही है। शायद नई नई दीक्षित है।
महिमा सोचती कि क्या वजह रही कि संसार छूटा नहीं फिर भी वो साधना पथ पर आ गई। फिर
स्वयं पर ही हँस पड़ी कि उसके लिए तो संसार में कुछ बचा ही
नहीं फिर भी प्रतिष्ठित संचेती परिवार की आदर्श बहू की भूमिका बखूबी निभा
रही है।
यही तो नियति के निराले खेल है
कि पात्र की पात्रता के विरुद्ध
भूमिका मिलती है। अगले दिन सुबह के व्याख्यान में सुमतिप्रभा जी
नदारद थी।
बाहर लान में कहीं खोई -सी फूलों को टकटकी लगाकर देख रही थी। गरीबी और अभाव ने अल्हड़ शोभा को साध्वी सुमतिप्रभा बना दिया।
स्वयं पर ही हँस पड़ी कि उसके लिए तो संसार में कुछ बचा ही
नहीं फिर भी प्रतिष्ठित संचेती परिवार की आदर्श बहू की भूमिका बखूबी निभा
रही है।
यही तो नियति के निराले खेल है
कि पात्र की पात्रता के विरुद्ध
भूमिका मिलती है। अगले दिन सुबह के व्याख्यान में सुमतिप्रभा जी
नदारद थी।
बाहर लान में कहीं खोई -सी फूलों को टकटकी लगाकर देख रही थी। गरीबी और अभाव ने अल्हड़ शोभा को साध्वी सुमतिप्रभा बना दिया।
जल्दबाजी में महिमा अभिवादन न कर सकी। उसे hsg के लिए जाना था पता होते हुए भी कि वह फिट है। जिस दिन परिवार के सम्मान रक्षार्थ युवती महिमा ने
अपनी पसंद त्यागकर संचेती परिवार के कुलदीपक के साथ फेरे लिए वो सदा
के लिए बेआस
हो गई। दीक्षा लेने की अनुमति मांगकर हार गई वो। नहीं
हारी तो उसकी सास -मणिका ,जो डॉक्टर तांत्रिक ,ओझाओं की शरण
में जाती पर कभी बेटे को अपना चेकअप करवाने को मजबूर न कर सकी।
अपनी पसंद त्यागकर संचेती परिवार के कुलदीपक के साथ फेरे लिए वो सदा
के लिए बेआस
हो गई। दीक्षा लेने की अनुमति मांगकर हार गई वो। नहीं
हारी तो उसकी सास -मणिका ,जो डॉक्टर तांत्रिक ,ओझाओं की शरण
में जाती पर कभी बेटे को अपना चेकअप करवाने को मजबूर न कर सकी।
हॉल में नमोकार मन्त्र का जाप चल रहा था। मणिका अपना बैग लाने बाहर आई। सबसे बेखबर साध्वी सुमतिप्रभा बाहर
खुली फैशनेबुल सैंडल व चप्पलों को बारी -बारी से रीझकर पहन रही थी। मणिका के अंतस में महिमा का अनदेखा किया दर्द
कसमसाने लगा।
खुली फैशनेबुल सैंडल व चप्पलों को बारी -बारी से रीझकर पहन रही थी। मणिका के अंतस में महिमा का अनदेखा किया दर्द
कसमसाने लगा।
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