(हास्य-व्यंग्य)
अशोक परूथी ‘मतवाला’
आजकल जी. एस. टी. यानि
वस्तु एंव सेवा कर को लेकर भारत में जनता ने दंगा-फसाद किया हुआ है औरकुछ लोग समाज में तरह-तरह की भ्रांतियां फैला रहे हैं!
इस कर को लेकर पानी के गिलास के साथ भी लोगों की रोटी इनके हलक से नीचे नहीं उतर
रही ! सरकार ने इस कर का नाम सोच समझ कर रखा है – वस्तु एंव सेवा कर.
वस्तु एंव सेवा कर को लेकर भारत में जनता ने दंगा-फसाद किया हुआ है औरकुछ लोग समाज में तरह-तरह की भ्रांतियां फैला रहे हैं!
इस कर को लेकर पानी के गिलास के साथ भी लोगों की रोटी इनके हलक से नीचे नहीं उतर
रही ! सरकार ने इस कर का नाम सोच समझ कर रखा है – वस्तु एंव सेवा कर.
वस्तु श्रेणी में कफ़न आता है और सेवा की श्रेणी में कफन को कन्धा
देने वाले सब! इसलिए तो सयानो ने कहा है – आजकल किसी की कोई सेवा,
मदद या भला करना भी जुर्म है!
देने वाले सब! इसलिए तो सयानो ने कहा है – आजकल किसी की कोई सेवा,
मदद या भला करना भी जुर्म है!
मोदी जी को भी पता था कि इस कर को लेकर लोग रोष व्यक्त करेंगे और
हो सकता है देश-भर में दंगा फसाद और तरह तरह के आन्दोलन शुरू हो जायें। लेकिन,
लगता है आजकल मेरे भारत- वासी सभ्य हो गये है। अभी तक भारत के किसी
कौने से बसों, रेलगाड़ियों या इमारतों के जलने की कोई खबर ‘इस-पार‘ नहीं आई है! मोदी जी को इस बात का पूरा डर
था कि ‘कुछ ‘बावली-बूच‘ कुछ न कुछ तो तहस -नहस करेंगे। राष्ट्रीय सम्पति की पवित्र -अग्नी को
आहूति देंगे, इसीलिये वे अपना ‘कटोरा‘
लेकर अमेरिका के दौरे पर निकल आये हैं!
हो सकता है देश-भर में दंगा फसाद और तरह तरह के आन्दोलन शुरू हो जायें। लेकिन,
लगता है आजकल मेरे भारत- वासी सभ्य हो गये है। अभी तक भारत के किसी
कौने से बसों, रेलगाड़ियों या इमारतों के जलने की कोई खबर ‘इस-पार‘ नहीं आई है! मोदी जी को इस बात का पूरा डर
था कि ‘कुछ ‘बावली-बूच‘ कुछ न कुछ तो तहस -नहस करेंगे। राष्ट्रीय सम्पति की पवित्र -अग्नी को
आहूति देंगे, इसीलिये वे अपना ‘कटोरा‘
लेकर अमेरिका के दौरे पर निकल आये हैं!
लोग तरह तरह के भड़काऊ सवाल किये जा रहे हैं! नये कर को लेकर किसे
मुर्दे ने अभी तक कोई गिला नहीं किया लेकिन,.उसे
कन्धा देने वालों की नींद कई दिनों से उडी पडी है !
मुर्दे ने अभी तक कोई गिला नहीं किया लेकिन,.उसे
कन्धा देने वालों की नींद कई दिनों से उडी पडी है !
सभी लोग तरह तरह की सुविधाएं चाहते है लेकिन कर कोई भरना नहीं
चाहता! कर भरने की लोगों को आदत नहीं है इसलिए इस नये कर ककी खबर उनसे सही नहीं जा
रही! विकसित देशों में भी ऐसे टैक्स हैं, भारत
में भी था लेकिन अब उसमे कुछ बदलाव किया गया है ताकि कर न देने वाले या कर-चोर
व्यापारी अपने हिस्से का टैक्स अदा करें! उन्होंने टैक्स कभी नहीं भरा उन्हें
नियमों के अनुसार अब देना पड़ेगा इसलिए थोडा मुश्किल हो रही है! ऐसा होना स्वाभाविक
ही है! कुछ साल पहले क्या हम आयकर देते थे? उस वक्त भी
टेक्स-भरने पर दम घुटता था अब शायद सबको आदत हो गयी है! कोई ‘खाट‘ नहीं खड़ी करता अपनी या किसी दुसरे की क्यूंकि
इससे देश का निर्माण हुआ है, देश का विकास हुआ है! जन-साधन
और सुविधाओ में बढोतरी हुयी है! हुयी है कि नहीं? देश की
ज़रूरते बड़ी हैं तो खर्चे के लिए सरकारों को भी समय समय पर नये कर लगाने पढ़ते हैं!
चाहता! कर भरने की लोगों को आदत नहीं है इसलिए इस नये कर ककी खबर उनसे सही नहीं जा
रही! विकसित देशों में भी ऐसे टैक्स हैं, भारत
में भी था लेकिन अब उसमे कुछ बदलाव किया गया है ताकि कर न देने वाले या कर-चोर
व्यापारी अपने हिस्से का टैक्स अदा करें! उन्होंने टैक्स कभी नहीं भरा उन्हें
नियमों के अनुसार अब देना पड़ेगा इसलिए थोडा मुश्किल हो रही है! ऐसा होना स्वाभाविक
ही है! कुछ साल पहले क्या हम आयकर देते थे? उस वक्त भी
टेक्स-भरने पर दम घुटता था अब शायद सबको आदत हो गयी है! कोई ‘खाट‘ नहीं खड़ी करता अपनी या किसी दुसरे की क्यूंकि
इससे देश का निर्माण हुआ है, देश का विकास हुआ है! जन-साधन
और सुविधाओ में बढोतरी हुयी है! हुयी है कि नहीं? देश की
ज़रूरते बड़ी हैं तो खर्चे के लिए सरकारों को भी समय समय पर नये कर लगाने पढ़ते हैं!
‘आप मरा जग परलो होई!‘ इसके
अर्थ आप सब जानते हैं – जब आप इस संसार के लिए मर जायेंगे तो यह सारे संसार वाले
भी आप के लिए मर जायेंगे! फिर काहे की टेंशन लेते हो, बंधू?
गीता में लिखा है – “क्या लेकर आये थे जो खो दिया है। ..काहे
को रोते हो…?”
अर्थ आप सब जानते हैं – जब आप इस संसार के लिए मर जायेंगे तो यह सारे संसार वाले
भी आप के लिए मर जायेंगे! फिर काहे की टेंशन लेते हो, बंधू?
गीता में लिखा है – “क्या लेकर आये थे जो खो दिया है। ..काहे
को रोते हो…?”
जो हो अपने माता-पिता की बदोलत ही हो,
उन्होंने ही आपको पाल-पोस कर बड़ा किया और अपना पेट काट कर भी आपको
अच्छी शिक्षा और अन्य सुविधाएँ दी, आपके उज्जवल भविष्य के
लिए अपना सुख-चैन तक गवायाँ! आपके पास जो है उनकी वजह से ही है! अब अगर उनके लिए
कुछ करना पड़ रहा है तो काहे को रोते हो?
उन्होंने ही आपको पाल-पोस कर बड़ा किया और अपना पेट काट कर भी आपको
अच्छी शिक्षा और अन्य सुविधाएँ दी, आपके उज्जवल भविष्य के
लिए अपना सुख-चैन तक गवायाँ! आपके पास जो है उनकी वजह से ही है! अब अगर उनके लिए
कुछ करना पड़ रहा है तो काहे को रोते हो?
हाँ, एक बात यह भी याद रखें, बड़ा
पैसे से नही बनता, उड़द की दाल से बनता है! इसलिए जब तक आप
में सांस हैं और आपके हाँथ-पांव और दिमाग चलता है तब तक अपनी ज़िन्दगी का खूब आनंद
लें ! अपनी कमाई और बचाई हुयी बचत से देश भ्रमण करें या वह गतिविधियाँ करें जो
आपको स्वस्थ्य और आनंद देती हों! अपनी सेहत और खुशी का सबसे पहले ख्याल करें उसके
बाद ही ‘दूजी‘ चीजें और रिश्ते आते
हैं!
पैसे से नही बनता, उड़द की दाल से बनता है! इसलिए जब तक आप
में सांस हैं और आपके हाँथ-पांव और दिमाग चलता है तब तक अपनी ज़िन्दगी का खूब आनंद
लें ! अपनी कमाई और बचाई हुयी बचत से देश भ्रमण करें या वह गतिविधियाँ करें जो
आपको स्वस्थ्य और आनंद देती हों! अपनी सेहत और खुशी का सबसे पहले ख्याल करें उसके
बाद ही ‘दूजी‘ चीजें और रिश्ते आते
हैं!
इश्वर ने इसीलिये सबको दो हाथ देकर इस धरती पर भेजा है ! क्या आप
नही चाहते कि आप की संतान आप के जाने के बाद शांति और अमन के साथ अपनों के साथ
मिलजुलकर स्नेह-प्यार से रहेे या कि आप चाहते है कि वे आपकी पूंजी के लिए एक दुसरे
से “डांगो-सोटा” करती रहे और एक-दुसरे से बोल-चाल भी बंद कर बैठे! अगर
आपके किर्या -क्रम का भी कोई जिम्मा लेने वाला नहीं तो अभी से किसी शमशान घर से
प्रबंध करवा लें (अगर ऐसी आजकल भारत में ऐसी व्यवस्था है तो?
विदेशों में तो यह सुविधा है, भारत में भी हो
जायेगी) अन्यथा, अपने ‘आत्मा राम ‘
की शांति के लिए पूरे खर्चे की राशी अपने किसी विश्वशनीय रिश्तेदार
या किसी मित्र को थमा दें! हाँ, अपनी पसंद के फूलों और
संगमरमर के पत्थर जड्वाने की तमन्ना रखते हों तो इस खर्चे की भी अभी से कीमत
उन्हें थमा दें!
नही चाहते कि आप की संतान आप के जाने के बाद शांति और अमन के साथ अपनों के साथ
मिलजुलकर स्नेह-प्यार से रहेे या कि आप चाहते है कि वे आपकी पूंजी के लिए एक दुसरे
से “डांगो-सोटा” करती रहे और एक-दुसरे से बोल-चाल भी बंद कर बैठे! अगर
आपके किर्या -क्रम का भी कोई जिम्मा लेने वाला नहीं तो अभी से किसी शमशान घर से
प्रबंध करवा लें (अगर ऐसी आजकल भारत में ऐसी व्यवस्था है तो?
विदेशों में तो यह सुविधा है, भारत में भी हो
जायेगी) अन्यथा, अपने ‘आत्मा राम ‘
की शांति के लिए पूरे खर्चे की राशी अपने किसी विश्वशनीय रिश्तेदार
या किसी मित्र को थमा दें! हाँ, अपनी पसंद के फूलों और
संगमरमर के पत्थर जड्वाने की तमन्ना रखते हों तो इस खर्चे की भी अभी से कीमत
उन्हें थमा दें!
अब उपरलिखित प्रश्न का उतर सीधा-सा है ! १८ प्रतिशत का कर ‘लाश को कन्धा देने वाला‘ क्यूं देगा। ..वही देगा जो
मृतक की पूँजी का अपने आप को हकदार मान रहा है ! हाँ , आपकी
तरह बस मेरा भी एक डर है, उस शराबी की तरह जिसे उसके एक
मित्र ने सुझाव दिया – ” यार, तूं शराब छोड़ने की बात कर
रहा है। …ऐसा कर तूं बची हुयी अपनी सारी शराब की बोतलें अपने दोस्तों को दे दे
!”
शराबी का जवाब था – “अपने दोस्तों को मैं शराब दे तो दूं,
मगर उन पर मुझे विश्वास नहीं….साले पी जायेंगे !”
मगर उन पर मुझे विश्वास नहीं….साले पी जायेंगे !”
हाँ , इस साली सरकार और राजनीतिज्ञों का भी कोई भरोसा
नहीं कि इस कर को जनता के भले के लिए लगायेंगे या अपने पौते -पौतियों या रिश्ते
-नातियों पर!
नहीं कि इस कर को जनता के भले के लिए लगायेंगे या अपने पौते -पौतियों या रिश्ते
-नातियों पर!
दोस्तों है क्या , मरने वाले ने भी
कौनसा रोज़-रोज़ मरना है, एक बार ही तो मरना है उसने ! फिर
आपने कौनसा अपनी जेब से कर भरना है. उसी की पूंजी से तो भरना है…आपके बाप का
क्या जाता है… एक बार ‘टैक्स/‘ भरके ‘पासे‘ करो!
कौनसा रोज़-रोज़ मरना है, एक बार ही तो मरना है उसने ! फिर
आपने कौनसा अपनी जेब से कर भरना है. उसी की पूंजी से तो भरना है…आपके बाप का
क्या जाता है… एक बार ‘टैक्स/‘ भरके ‘पासे‘ करो!
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bahut Rochak .. Diya shukla
आभार दिया शुक्ला जी – लेख पढने और पसंद करने के लिए !
अशोक परूथी
अच्छा व्यंग
shukriya shivam jee !