हमारे राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी जी का जीवन अपने आप में मिसाल है | कोई भी व्यक्ति अपने भाषणों या प्रवचनों से महान नहीं बन जाता | ये महानता उसके जीवन की छोटी – छोटी बातों में झलकती है | आज हम महात्मा गाँधी जी के जीवन के कुछ ऐसे ही पांच प्रेरक प्रसंग लाये हैं | जो बापू की महानता तो सिद्ध करते ही हैं | हमें भी उस मार्ग का अनुसरण करने की प्रेरणा देते हैं |
पहला प्रसंग – समय की कीमत
महात्मा गाँधी जी समय को बहुत मूल्यवान कहा करते थे |क्योंकि गया हुआ वक्त फिर कभी नहीं आता है | वो न तो स्वयं समय बर्बाद करते न अपने आस पास किसी को करने देते | दांडी यात्रा के समय की बात है | गाँधी जी तेज तेज चलते जा रहे थे | उनका ध्यान लक्ष्य की ओर था | सबके कहने पर वो थोड़ी देर को एक स्थान पर रुके | तभी एक अंग्रेज व्यक्ति उनसे मिलने आया | गाँधी जी को देख कर बोला ,” हेलो मिस्टर गाँधी, मेरा नाम वाकर है |” गांधी जी ने उसकी तरफ देखा फिर बोले ,” आप वाकर हैं तो मैं भी वाकर हूँ | “कह कर वो अपनी यात्रा पर आगे चल पड़े |
तभी एक व्यक्ति उनके पास आया और बोला,” आप को उनसे मिल लेना चाहिए था | पता है वो कौन थे | अगर आप का नाम तमाम अंग्रेजी अख़बारों में छपता | उन से मिल लेते तो आप बहुत प्रसिद्द हो जाते |
गाँधी जी ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया – मेरे लिए सम्मान से कीमती मेरा समय है |
प्रसंग दो – जब गाँधी जी ने सारी सभा को हंसा दिया
यूँ तो महात्मा गाँधी जी की छवि एक अनुशासित , समय के पाबन्द व्यक्ति के रूप में है | पर उनमें हास्य बोध भी गज़ब का था | इसका उदाहरण एक जन सभा में देखने को मिला | दरसल गाँधी जी आज़ादी की लड़ाई के दौरान बहुत सारी जनसभाएं करते थे | जिसमें उनके अहिंसात्मक आन्दोलन पर जोर रहता था |
एक बार की बात है वो एक जनसभा कर रहे थे | गाँधी जी गंभीरता पूर्वक अपनी बात जनता के सामने रख रहे थे | तभी पीछे के लोग शोर मचाने लगे की उन्हें कुछ भी सुनाई नहीं पड रहा है | गांधी जी ने भाषण रोक कर पूंछा ,” जिस – जिस को सुनाई नहीं दे रहा है वो हाथ उठाये | कुछ लोगों ने हाथ उठा दिए |
गाँधी जी ने हँसते हुए कहा ,” देखिये ,ये तो बड़ा विरोधाभास है | मेरा भाषण आप को सुने नहीं दे रहा था | पर ये बात आप को सुनाई दे गयी की हाथ उठाना है | इतना सुनते ही पूरी सभा ठहाकों से भर गयी |
प्रसंग तीन -बोइये और काटिए
महात्मा गाँधी जी पूरे भारत की यात्रा करते रहते थे | एक बार अपनी किसी यात्रा के दौरान वो एक छोटे से गाँव में रुके | वहां के किसान उनसे मिलने गए | उन्होंने गाँधी जी से कहा आप परम ज्ञानी हैं | हमें भी कुछ ज्ञान दीजिये |
गाँधी जी ने कहा ,” ठीक है , पहल ये बताइये आजकल आप कौन सी फसल बो रहे हैं | किसान उनके प्रश्न पर आश्चर्य में पड़ गए और बोले ,” क्या कहें , शायद आपको जानकारी नहीं है | साल का ये महीना हमारे लिये बिलकुल खाली होता हैं | क्योंकि इसमें कुछ भी बोया नहीं जाता | बाकी समय जब जब हम फसल बोते व् काटते हैं तो हमारे पास एक पल का भी समय नहीं होता | यहाँ तक की हमारे पास रोटी खाने तक का समय नहीं होता | पर अभी तो हम बिलकुल निठ्ठले हैं |
गाँधी जी बोले ,” ये आप का चयन है की आप खाली बैठे हैं | वर्ना कोई भी समय ऐसा नहीं होता जब कोई फसल बोई न जाए व् काटी न जा सके |
किसान आश्चर्य में पड़ गए | वो हाथ जोड़ कर बोले ,” कृपया हमें बताइए की वो कौन सी फसल है जो इस समय बोई व् काटी जा सकती है | हम अवश्य ये करेंगे |
गाँधी जी बोले ,” जब आप के पास काम की अधिकता होती है तब तो आप अतिव्यस्त होते हैं | पर जब आप के पास खाली समय हो तब उसे यूँ ही बर्बाद मत करिए |
आप कर्म को बोइये आदत को काटिए
आदत को बोइये चरित्र को काटिए
चरित्र को बोइये भाग्य को काटिए
तभी ये मानव जीवन सार्थक होगा |
प्रसंग चार -सार को निकाल लिया
अपनी निंदा सुनना आसान नहीं है | पर हमारे बापू
हर बात में संयत रहते थे | एक बार की बात है एक अंग्रेज ने उनको पत्र लिखा | पत्र सिर्फ गालियों से भरा हुआ था | गाँधी जी ने पत्र पढ़ा | फिर अपने चेहरे पर बिना कोई भाव लाये उसे रद्दी की टोकरी में फेंक दिया | फेंकते समय उन्होंने उसमें लगे एक आलपिन को निकाल कर रख लिया |
शाम को वो अंग्रेज जब उनसे मिलने आया तो उसने बड़ी शातिर मूस्कुराहट के साथ पूंछा ,” आपने पत्र पढ़ा |
गाँधी जी ने मुस्कुरा कर उत्तर दिया ,” हां बिलकुल |
अंग्रेज ने फिर पूंछा ,” उसमें आपको कुछ सार लगा |
गाँधी जी ने आलपिन दिखाते हुए कहा ,” जी , मुझे तो उसमें ये सार का दिखा | इसलिए मैंने इसे संभाल कर रख लिया | बाकी काम का नहीं लगा | तो उसे रद्दी की टोकरी में फेंक दिया |
प्रसंग पांच – कभी झूठ मत बोलो
एक बार की बात है गाँधी जी के बड़े भाई ने कुछ कर्ज लिया था | जिसे वो आर्थिक स्तिथि ठीक न होने से वापस नहीं कर प् रहे थे | वो तगादे वालों से बहुत परेशांन थे | गाँधी जी ने उनकी मदद करने के लिए अपना कड़ा बेंच दिया | घर में डांट खाने के भय से उन्होंने झूठ बोल दिया की कड़ा कहीं गिर गया है | माता – पिता ने तो उनकी बात पर विश्वास कर लिया | पर झूठ बोलने के कारण गांधी जी का मन बेचैन हो उठा | झूठ बोलने के कारण वो अपने आपको माफ़ नहीं कर पा रहे थे | सारी रात उन्हें नींद नहीं आई | वो करवटें बदलते रहे | उनकी आत्मा उन्हें धिक्कार रही थी | अंत में उन्होंने सच बोलने का निर्णय किया |
उन्होंने अपनी गलती स्वीकारते हुए सारी बात एक पत्र में लिख कसर अपने पिता को दे दी | गाँधी जी सोंच रहे थे की पत्र पढने के बाद उनके पिताजी उनकी पिटाई करेंगे | परन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ | जैसे ही गांधी जी के पिता ने पत्र पढ़ा | उनकी आँखों में आँसू आ गये | | वो जहाँ खड़े थे वहीँ बैठ गए | गाँधी जी उन्हें छिप कर देख रहे थे |
इससे उन्होंने निष्कर्ष निकाला स्नेह ,हिंसा से कहीं ज्यादा बड़ा दंड दे सकता है |यहीं आगे चलकर उनके अहिंसात्मक आन्दोलन का आधार बना |
गाँधी जी का जीवन अपने आप में एक प्रेरणा दायक पुस्तक है | जिसके हर प्रकरण से हमें शिक्षा मिलती है |गाँधी जी की इसी महानता के कारण उनका जन्म दिवस अन्तराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जा रहा है | गाँधी जयंती पर उनके इन प्रेरणा दायक प्रसंगों को हमें छत्तीसगढ़ रायपुर से अर्चना बाजपेयी जी ने संकलित किया है | इसके लिए हम उनका ह्रृदय से आभार व्यक्त करते हैं |
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