शरद पूर्णिमा : 16 कलाओं से युक्त चाँद जो बरसाता है प्रेम व् आरोग्यता



शरद पूर्णिमा की रात यानी एक ऐसी रात जब चाँद और उसका अहसास कुछ ख़ास
होता है | सोलह कलाओ से युक्त चाँद और  
धरती
पर फैली चाँद की चांदनी रहस्य , रोमांच और प्रेम का अद्भुत ताना बाना बुनती हैं |
इस ताने बाने के पीछे एक सुखद संयोग है जब वृद्ध हो चुकी वर्षा ऋतु बाल सुलभ
चंचलता लिए हुए शरद ऋतु के चाँद से मिलती है | दोनों का ये अटूट बंधन कुछ अनुपम ही
छटा बिखेरता है |


क्या है शरद पूर्णिमा के चाँद की सोलह कलाएं

 शरद पूर्णिमा का चाँद सोलह कलाओ से युक्त होता है | आम भाषा में कहें
तो सोलह कलाओ का अर्थ है पूर्ण ईश्वर | पुराणों  के अनुसार
 प्रभु राम 12 कलाओ से युक्त व् श्रीकृष्ण 16
कलाओ से युक्त थे | शरद पूर्णिमा का चाँद भी 16  कलाओं से युक्त होता है | अर्थात
शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्र दर्शन का विशेष महत्व  है | अमृत , मनदा , पुष्प ,
पुष्टि , तुष्टि ,घ्रुती , शशिनी , चन्द्रिका
 काँटी ज्योत्स्ना , श्री , प्रीती , अंगदा , पूर्ण
और पुर्नामृत | ये चंद्रमा की 16  अवस्थाएं होती हैं | चन्द्र की इन 16 अवस्थाओ से
16 कलाओ का जन्म हुआ |

आध्यात्म और 16 कलाएं

 आध्यात्म के
अनुसार मन को चंद्रमा के सामान माना गया है | उसका अपना एक प्रकाश होता है | हम
मानव जीवन की तीन अवस्थाएं जानते हैं | इन अवस्थाओ से इतर जब मनुष्य सोलह कलाओं से
युक्त हो जाता है तब उसमें ईश्वरीय गुण आ जाते हैं | मन पूर्ण रूप से प्रकाशित हो
जाता है |यानी मन और बुद्धि के परे स्वयं का बोध हो जाता है | अमावस्या पूर्ण
अज्ञान की व् पूर्णिमा पूर्ण ज्ञान की अवस्था है |


शरद पूर्णिमा के चाँद से झरता है अमृत


शरद पूर्णिमा को कौमुदी पूर्णिमा व् कोजागिरी पूर्णिमा भी कहते हैं
|मान्यता है की प्रभु श्री कृष्ण ने इसी दिन महा रास रचाया था | कहते हैं इस दिन
चंद्रमा की किरणों से अमृत झरता है | यह अमृत आध्यात्मिक महत्व वाला तो हैं ही
मनष्य के लौकिक जीवन के दो स्तम्भ स्वास्थ्य व् रिश्तों पर विशेष प्रभावशाली है
|जो जोड़े इस दिन चंद्रमा की चाँदनी का स्नान करते है वो “ अटूट बंधन “ में बंध  जाते हैं |

इसके अतरिक्त चंद्रमा की चांदनी में रखी हुई खीर सुबह खाने पर अनेकों
रोगों का नाश होता है | उत्तर भारत में इस दिन खीर बना कर चांदनी में रखने की परंपरा
है | जिसे सुबह प्रसाद के रूप में खाया जाता है |


शरद पूर्णिमा का धार्मिक महत्व


*मान्यता है की शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी का जन्म हुआ था | इस
कारण उनका विशेष पूजन अर्चन किया जाता है | इस दिन खरीदारी करने की भी परंपरा रही
है |

*कहते हैं की द्वापर युग में जब प्रभु श्री कृष्ण ने अवतार लिया था |
तब माँ लक्ष्मी ने राधा के रूप में अवतार लिया था | इसी दिन दोनों ने महारास रचाया
था और अपने अटूट बंधन को पहचाना था |
*मान्यता है की शिव पार्वती के पुत्र कुमार कार्तिकेय कास जन्म इसी
दिन हुआ था | शैव भक्त इसे कुमार पूर्णिमा भी कहते हैं |
* पश्चिमी बंगाल में कन्याएं आज के दिन सुबह नहा धो कर सूर्य चन्द्र
का पूजन करती हैं | व् सुयोग्य वर की प्रार्थना करती हैं |
* मान्यता ये भी है की शरद पूर्णिमा का व्रत पूजन करने से संतान
निरोगी व् दीर्घायु होती है |
* कहते है रावण भी शरद पूर्णिमा के दिन अपनी नाभि में चांदनी ग्रहण
करता था | जिसके कारण उसे अमर तत्व प्राप्त था |


शरद पूर्णिमा का वैज्ञानिक महत्व


विज्ञान के अनुसार शरद पूर्णिमा की चांदनी में वनस्पतियों व् औषधियों  की स्पंदन
क्षमता बढ़ जाती है | इसकी किरने भी विशेष आरोग्य दायक होती है | अत : व्यक्ति को
कम कपडे पहन कर चन्द्र स्नान अवश्य करना चाहिए |
शरद पूर्णिमा में क्यों खीर बनती है अमृत

             
शरद पूर्णिमा में खीर  खाने का विशेष महत्व हैं |कहते हैं की इस दिन
खीर अमृत बन जाती है | उसे रात्रि  10 से बारह बजे के बीच चांदनी में अवश्य रखना
चाहिए | दरसल दूध के लैक्टिक एसिड में चांदनी को ग्रह करने की क्षमता होती है | व्
चांदी
 के पात्र में रखने के कारण इसके कीटाणु
भी मर जाते हैं |
  इसे खाना इसलिए भी
जरूरी समझा गया क्योंकि ये खीर एक प्रतीक है की अब मौसम बदल रहा है ठंडी चीजें छोड़
कर गर्म चीजें खानी हैं | इसका एक कारण और भी है | शरद ऋतु  और वर्षा ऋतु के
संधिकाल में पित्त कुपित होता
 है | ठंडी  खीर पित्त को शांत करती है व् मौसमी रोगों से बचाती भी हैं |


शरद पूर्णिमा की पौराणिक व्रत कथा

शरद पूर्णिमा की व्रत कथा के अनुसार एक साहूकार था | उसके दो बेटियाँ
थी | दोनों बेटियों के
 बड़ी होने पर उसने दोनों
का विवाह कर दिया | विवाह के समय ही उसने दोनों बेटियों को समझाया की शरद पूर्णिमा
का व्रत लिया करो | दोनों बेटियों ने पिता की बात मानते हुए व्रत करना शुरू कर
दिया | जहाँ बड़ी बेटी पूरी श्रद्धा के साथ व्रत करती | छोटी व्रत शुरू तो करती पर
आधा ही छोड़ देती | समय बीतने लगा दोनों बेटियों के बच्चे हुए | बड़ी बेटी का परिवार
तो हंसी ख़ुशी से भर गया | पर छोटी बेटी के संतान होते ही मर जाती | वो दुखी रहने
लगी |


पिताजी को भी दुःख हुआ | वो बेटी की कुंडली पुरोहित को दिखाने ले गए |
पुरोहित ने कहा कि आपकी बेटी व्रत आधा छोड़ देती है इस कारण संतान जन्म लेते ही मर
जाती है | उन्होंने बेटी को पूरा व्रत करने को कहा | उस साल की शरद पूर्णिमा पर
छोटी बेटी ने व्रत रखा | व् पूरा पूजन कर के व्रत खोला | कुछ दिन बाद उसके बेटा
हुआ | पर वो भी जन्म लेते ही मर गया | छोटी बेटी बड़ी दुखी हुई |

उसने बच्चे की देह को कपडे से लपेट कर पाटे  पर रख दिया | बाहर से
देखने पर वो पाटे  पर रखा कुशन लग रहा था | फिर उसने अपनी बड़ी बहन को अपने घर खाने
पर बुलाया | बड़ी बहन उस पाटे
 पर बैठने ही
वाली थी की उसका घाघरा बच्चे से छू गया | बच्चा जीवित हो कर रोने लगा | बड़ी बहन ने
बच्चे को देखा तो छोटी से बोली ,” री पगली टू मुझसे इतन बड़ा पाप करवाने जा रही थी
| कहीं बच्चा मर जाता तो ? छोटी बहन बोली ,” नहीं दीदी ये तो मरा हुआ ही पैदा हुआ
था | आपके पुन्य के प्रताप से जीवित हो गया |
उसी समय आकाश वाणी हुई की जो कोई शरद पूर्णिमा का विधि पूर्वक व्रत
करेगा व् कथा सुनेगा उसके धन – धान्य , संतान की रक्षा होगी |
                     

शरद पूर्णिमा का धार्मिक ,
आध्यात्मिक व् वैज्ञानिक महत्व होने के साथ – साथ यह अप्रतिम सौन्दर्य के मनोहारी
छठा भी उत्पन्न करती हैं | जिसको देखना , अपनी समस्त इन्द्रियों के साथ महसूस करना
एक बड़ा ही अद्भुत अनुभव है |

ये था शरद पूर्णिमा पर निबंध : १६ कलाओं से युक्त चाँद जो बरसाता है
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