खंडित यक्षिणी

खंडित यक्षिणी
        An emotional story on breast cancer       
प्रिया ने विदेश
में रह रहे अपने पति प्रेम को फोन लगाया और जब प्रेंम
  ने  फोन उठाया तब प्रिया ने कहा –प्रेम तुम अपना  काम ख़त्म करके जल्दी वापस आ जाओ  
प्रेम ने कहा –क्यों क्या हुआ ? तुम्हारी आवाज थोड़ी बुझी -बुझी-सी  लग रही है । तुम ठीक तो हो ,जल्दी बताओ क्या बात है ?
प्रिया ने कहा
-आजकल मेरी तबियत ठीक नहीं रहती
,अक्सर बुखार आता
है और कमजोरी बहुत लग रही है ।
 

प्रेम ने कहा –`बस इतनी सी बात ? तुम जाकर डॉक्टर  दिखा आओ और जैसा
डॉक्टर कहे वैसा करो । तुम्हारी तबियत जल्दी ही ठीक हो जाएगी । हिम्मत रखो । मैं
 काम समय से
 ख़त्म  करने की कोशिश करूँगा  ।  तुम्हे
अपने आप को सम्भालना होगा
,मेरे लिए  । मेरी प्रेरणा और मेरी ऊर्जा
का स्त्रोत तुम्ही तो हो प्लीज अपना विशेष ख्याल रखना । मैं भी  शीघ्र
तुम्हारे पास आना चाहता हूँ पर मजबूरी है काम तो खत्म करना ही पड़ेगा । डॉक्टर को
बताने के बाद मुझे फोन करके बता देना
,मुझे चिन्ता लगी रहेगी । 


 
       
अगले दिन प्रिया लेडी डॉक्टर के पास गई क्योकि उसे अपने स्तन में
कुछ गाँठ सी महसूस हो रही थी । डॉक्टर ने उसे मेमोग्राफी करने की सलाह दी ।
 

प्रिया ने लैब
में जाकर मेमोग्राफी करवा दी और रिपोर्ट मिलने पर डॉक्टर को दिखाने गई ।
 
डॉ रिपोर्ट
देखकर कुछ गंभीर हो गई और चिंतित स्वर में बोली
`तुम्हारे पति कब वापस आयेगे ?
प्रिया ने कहा –
क्या हुआ डॉक्टर
?
क्या कुछ गंभीर
बात है क्या
?
जो आप मुझे नहीं
बता सकती ।
 
डॉकटर ने कहा-` जी हाँ
प्रिया अपने को
सँभालते हुए संयत स्वर में बोली –
डॉक्टर आप मुझे बताइए प्लीज ,मैं सब सुन सकती
हूँ
 

डॉक्टर ने कहा –तुम्हे अपने को सम्भालना होगा तभी मैं बता
सकती हूँ
 
प्रिया और भी
सचेत हो गई और बोली आप बताइए –
मैं सच सुन सकती हूँ  

डॉक्टर ने कहा –प्रिया तुम्हें ब्रेस्ट कैंसर है और तुम्हे
जल्दी से जल्दी ऑपरेशन करवाना होगा नहीं तो तुम्हारी जान को खतरा है
 


प्रिया को बहुत
जोर का झटका  लगा लेकिन प्रत्यक्ष में उसने अपने को संयत कर के
 डॉक्टर से  कहा –डॉक्टर मैं कब तक ऑपरेशन करवा सकती हूँ ? कैंसर कौन से स्टेज में है
डॉक्टर ने कहा –बीमारी एडवांस  स्टेज में है आपको जल्दी
से जल्दी ऑपरेशन करवा लेना चाहिए । जितना लेट करोगी
   खतरा बढ़ता ही जायेगा । 

प्रिया उदास मन
से घर लौट आई
,मन में कई तरह की शंकाएं और प्रश्नों का
सैलाब उठा फिर भी उसने विवेक नहीं खोया और गर्म चाय का प्याला ले प्रश्नो के भंवर
में गोते
 लगाने लगी । बहुत ही पशोपेश में थी कि यह सच  प्रेम को कैसे बताए ?

`क्या वह इसे सहजता से लेगा ,उसकी क्या प्रतिक्रिया होगी ? वह काम छोड़ कर आ पायेगा ?  उसका शारीरिक सौंदर्य ख़त्म होने के बाद भी
क्या वह उसे उतना ही प्यार करेगा
? क्या उसका जीवन ऐसे ही  सुखमय चलेगा या कैंसर रुपी तूफ़ान उसके जीवन की दशा -दिशा बदल देगा ? ऐसे ही प्रश्नों के चक्रव्यूह में उलझती उसकी
आँख कब लग गई उसे पता ही नहीं चला  
,आँख तो तब खुली जब उसकी पड़ोसन शारदा  
ने दरवाजे की
घंटी बजाई । उठकर दरवाजा खोला तो देखा शारदा मुस्कराती हुई खड़ी  थी
,उसको उनींदा देख कर पूछ ही लिया –`क्या हुआ तुम इस वक़्त सो रही थी ,तबियत तो ठीक है न  

उसने अपने को
संयत कर उत्तर दिया
`
हाँ मैं ठीक हूँ
थोड़ा तबियत सुस्त है तो झपकी लग
  गई थी ।  
शारदा ने कहा –
एक दो दिन से तुम बाहर नहीं दिखी इसलिए तुम्हारा हाल चाल जानने आ गई । सब ठीक है न
?
मैंने उत्तर
दिया हाँ
 सब ठीक है । थोड़ी देर बैठ कर शारदा चली गई । 

मन में फिर वही
प्रश्न जैसे मेरे अस्तित्व को
  लीलने के लिए  मुँह उठाए  खड़े थे । बहुत अंतर्द्वंद के पश्चात प्रिया
ने तै किया कि वह प्रेम को सच -सच बता देगी
,वह उससे बहुत प्यार करता है ,वह उसका इलाज
करवाएगा और उसका ख्याल रखेगा
,वह उसे यूँ ही
टूटने –
 बिखरने नहीं देगा । उसने अपने प्यार का
आश्वासन
  कई-कई  बार दोहराया है ,वह उसका साथ अवश्य देगा । आज ही मैं उसे फोन
करके सब सच- सच बता दूँगी ।
 
प्रिया ने
 आकर प्रेम को फोन किया -प्रेम ने फोन उठाते ही पूछा डॉक्टर ने क्या कहा
?

प्रिया फिर
असमंजस में पड़
 
गई कि  सच
बताये या नहीं
?क्या उसे सच बताना चाहिए अभी क्योंकि वह बहुत
दूर है
,यह जानकर उसके दिल में क्या बीतेगी । इसी
अंतरद्वंद में उलझी  वह
 कुछ समय तक कुछ बोल नहीं पाई । कंठ अवरुद्ध हो रहा था ,कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे ? बताए या न बताए ,अत्यधिक दुविधा में उलझी थी तभी  प्रेम
ने उधर से हेलो हेलो कहा
,,,क्या हुआ तुम कुछ बोल क्यों  नहीं रहीं हो ,,,,जल्दी बताओ मुझे चिंता हो रही  है । 

 प्रेम की बेचैनी सुनकर प्रिया ने   हिम्मत जुटा कर कहा `प्रेम तुम शीघ्र वापस आ जाओ मुझे तुम्हारी
बहुत जरुरत है
 
प्रेम ने कहा –`ऐसा क्या हो गया
तुमको जो मेरे आए बिना ठीक नहीं हो सकता
?
प्रिया ने
अस्फुट शब्दों में
  कहा –मुझे स्तन कैंसर है और अगर शीघ्राति शीघ्र आपरेशन नहीं करवाया गया तो मेरी जान
को खतरा है

।  
उधर से प्रेम का
कोई उत्तर न पाकर उसने हेलो
,,,,,,,हेलो ,,,,,,हेलो कई बार कहा  ,,,सुन रहे हो न प्रेम ?  
प्रेम को प्रिया
की कैंसर की बात सुनकर जैसे लकवा मार गया हो
,तुरंत कुछ उत्तर न दे सका । 
 प्रिया  को लगा जैसे फोन कट गया हो ,और वह बार -बार  रिसीवर को कान  में लगाकर देखती कि  डायल टोन  आ रही है या नहीं ।
 डायल टोन  आ रही थी इसलिए वह
  लगभग चिल्लाते हुए बोली  हेलो,,,हेलो ,,,हेलो 
`
प्रेम तुम  सुन रहे हो न ,तुम उधर हो न। …. कुछ तो बोलो प्रेम ?  क्या हुआ तुम ठीक तो हो न  ?’ 

बहुत मुश्किल से
प्रेम ने अस्फुट शब्दों में
  इतना ही कहा `ऐसा कैसे हो सकता है ? देखता हूँ ,  मैं क्या कर सकता हूँ ? काम बहुत है ,आ पाना बहुत मुश्किल है ,,,,,, इतना कह कर उसने  फोन काट दिया
 

 
काम बहुत है ,आ पाना बहुत मुश्किल है ???  ये शब्द प्रिया को  ऐसे लगे जैसे किसी  ने कान में गर्म पिघलता शीशा डाल दिया हो ।
वह छटपटा उठी कि क्या काम मेरी जान से भी ज्यादा जरुरी है
? प्रेम के कहे शब्द उसके दिलो दिमाग में हथौड़े
मार रहे थे
,उसे विश्वास ही नहीं हो रहा कि उसका प्रेम
ऐसा कह सकता है
?
उसने अपने मन को
बार -बार समझाया कि  
 अत्यधिक पीड़ा के कारण ऐसा बोल दिया होगा लेकिन जब मन शांत होगा उसे अपनी गलती
का अहसास जरूर होगा । इसी उम्मीद में  दिन -रत निकलने लगे
,वह प्रेम के फ़ोन का इंतज़ार करने लगी लेकिन इस
घटना के हफ्ते बाद भी जब
  प्रेम का कोई फोन नहीं आया ,तब प्रिया को बहुत चिंता होने लगी कि  वह वहां
पर
 ठीक तो है न । उसने कई बार फोन मिलाया लेकिन
प्रेम
  ने फोन नहीं उठाया । वह रोज कई बार फोन करती ,मेल भेजती लेकिन कोई उत्तर नहीं मिलता । न
जाने कैसे प्रेम ने एक दिन फोन उठाया तो उसने पूछा प्रेम तुम कैसे हो
?  कब आ रहे हो

तब प्रेम ने
गुस्से से उत्तर दिया
मैं  आकर क्या करूँगा  ,मेरा काम बहुत है ,मेरा आ पाना बिलकुल सम्भव नहीं है ।
“  तुम अपना इलाज करवाओ और अपनी माँ  के पास चली जाओ । मैं  अभी नहीं आ
पाऊँगा
”? 
प्रिया
 प्रेम का उत्तर सुनकर अवाक रह गई
,उसके मन को  बहुत जोर का धक्का लगा और वह गिरते -गिरते
बची ।शरीर कांपने लगा
,हाथ से रिसीवर छूट गया दुःख और क्षोभ में   वह कुछ बोल न सकी बस सोचने लगी कि उसका
 प्रेम
 
यह क्या कह रहा
है और क्यों कह रहा हैं
?
उसकी आँखों में
अतीत  की घटनाएं
 चलचित्र की भांति घूमने लगीं । 

कैसे वे दोनों
इंजीरिंग की पढ़ाई करते समय  मिले थे और प्रेम उससे मिलने के लिए कितना बेचैन
रहता था ।
  दोनों ने अपनी गहरी दोस्ती को आधार बनाकर ही
तो प्रेम विवाह किया था ।
 शादी के बाद मुन्नार की खूबसूरत  वादियों में हनीमून मनाने गए थे । वहां के
हरे -भरे खूबसूरत
 चाय बागानों में बाहों में बांहे डाल हँसते
-खिलखिलाते गुनगुनाते
  हुए चप्पा -चप्पा  घूमें थे । इको पॉइंट
में जाकर एक दूसरे का नाम पुकारा था और
` आई लव यु ‘ कहा था अपने ही उच्चारण की प्रतिध्वनि सुन कर बच्चों -सा खुश हुए थे और
यहां की प्रकृति की खूबसूरत वादियों में
 अपने प्यार की छाप जैसे हमेशा के लिए अंकित
कर दिए थे ।
  झील के किनारे खड़े होकर न जाने कितने प्रेम
से अभिसिक्त मुद्रा में चित्र खिंचवाए थे । हमारी ख़ुशी देख कर लोग अचम्भित हो
हमारी ओर
  देखते और सोचते यह नव विवाहित जोड़ा कितना खुश
है जैसे विश्व विजय करके लौटा हो
 
 और सच ही तो था `अपने प्यार को हमेशा के लिए पा जाना किसी
विश्व विजय से कम तो नहीं होता
  ‘  

 दोनों की जोड़ी देख कर लोग कहते` ये दोनों एक दूसरे के लिए  ही बने हैं ।
कितना प्यार है दोनों के बीच
,दोनों कितना एक
दूसरे का ख्याल रखते हैं
‘? 


प्रेम ने ही उससे कहा था कि तुम किसी और की नौकरी नहीं करके सिर्फ मेरी
खुशियों का ख्याल रखना
,मैं कमाऊँगा और तुम घर और मुझे  सम्भालना । उसके कहने पर ही तो
उसने नौकरी नहीं की
लेकिन वह घर से ही  ऑनलाइन काम करती थी  और पर्याप्त कमा  लेती थी ताकि वह आर्थिक रूप
से भी अपना योगदान दे सके और प्रेम के ऊपर अतिरिक्त आर्थिक दबाव न पड़े ।
 



क्या यह वही
प्रेम है
?  जो थका हारा  ऑफिस से आकर उसके उन्नत
सुडौल उरोजों से शिशु की भाँति
  खेलता और कहता
कि कितना सुकून मिलता है तुम्हारे वक्ष  से लिपटकर सोना ।
  
मुझे कभी इस सुख
से वंचित न करना और वह उसे आश्वस्त करती कि जीवित रहते ऐसा कभी नहीं होगा । ज़िंदगी
के संघर्षों  से पराजित हो जब वह उसकी गोद में सर रखकर लेटता तब वह उसके
बालों को सहलाती और वह उसके सीने से लग सुकून से सो जाता और हमेशा यही कहता कि
तुम्हारे वक्ष से लगकर मुझे जीवन के हर संघर्ष से लड़ने की
  ऊर्जा प्राप्त
होती है और हर समस्या का समाधान ढूंढने की ताकत
  भी ,,,,जब -जब
 तुम्हारे वक्ष पर सर रख कर सोया ऐसा अहसास
  हुआ जैसे मासूम
बच्चा अपनी माँ की गोद
  में सुकून से
सोया हो और तुम अपने आँचल का वितान तान देती हो जैसे तुम मुझे संघर्षो के हर तूफ़ान
से बचा लोगी । जब -जब मैं थका -हांरा – पराजित और खुद को
 असहाय महसूसता
हुआ तुम्हारे सीने से लगकर विलख कर रोना चाहा तब -तब
  तुम न जाने कैसे
बिन बताए ही
  जान जाती हो  और तुमने  कभी मुझे रोने
नही दिया और मेरे आंसुओं को अपने स्नेह चुम्बन से आँखों में ही सुखा दिया ।
तुम्हारे
 
उन्नत उरोज  मेरे लिए उत्थान
-विजय का जैसे समुन्नत शिखर
  हो और मैं
हिमालय की सबसे ऊंची चोटी  एवरेस्ट पर विजय पताका फहराता हुआ विजेता अपने आप
को समझता । तुम एक ही समय में
  माँ ,पत्नी ,बहिनप्रेमिका ,
हमजोली
 कैसे
 बन जाती हो ? 

प्रेम हमेशा यही
कहा करता था
`मेघदूत की यक्षिणी सा तुम्हारा संगमरमरी
 अनुपातिक सुगठित
 देह सौंदर्य  और तुम्हारे सुडौल उन्नत
उरोज अप्रतिम हैं
,अद्वितीय हैं ।


तुम रूप और प्रेम की देवी हो और मैं तुम्हारा प्रेम पुजारी । मैं तुम्हें कभी भी खोना नहीं
चाहूंगा । तुम सिर्फ और सिर्फ मेरी हो और मेरे लिए ही ईश्वर ने तुम्हें तराशा
  है । अब तो ईश्वर को भी मेरे भाग्य पर रस्क
होता होगा  कि क्या यह अप्रतिम सौंदर्य की जीवंत
 मूर्ति उसी ने गढ़ी है ?  

ओह प्रिया !
मुझे खुद पर बहुत
  गर्व है कि तुम मेरा प्यार हो  और तुम -सा प्यार करने वाली औरत इस धरती पर
दूसरी
 कोई  नहीं है । तुम से कितना कुछ पाता  हूँ बदले में तुम्हें कुछ नहीं दे  पाता हूँ ,,तुम्हारे अगाध स्नेह के  समकक्ष खुद को बहुत दरिद्र और  बौना महसूस करता हूँ । मैं  कई -कई जन्म लेकर भी तुम्हारे प्यार का ऋण
नहीं चुका पाऊंगा प्रिये ।
  अब तो बस एक ही इच्छा है कि मेरा अगला जन्म
तुम्हारी कोख से हो ताकि मैं तुम्हारे अंतस के सम्पूर्ण अस्तित्व की यात्रा कर
सकूँ
,तुम्हें जान -समझ सकूँ तब शायद मैं तुम्हारा
पुत्र बन कर
 तुम्हारे ऋण  को चुका सकूँ  मेरी
प्रिया

!
कितनी देर तक वह
अचेतावस्था में सोचती रही
,अतीत की समग्र  सुखद स्मृतियाँ   चलचित्र की तरह चलती रहीं और फिर एक बिंदु पर
आकर उनका भी पटाक्षेप हो गया । वह अपने आसुंओं को पोछ कर सयंत हो उठ खड़ी
  हुई । उसका आत्मविश्वास
जाग्रत हो गया और
  उसने मन को दृढ़ करके संकल्प लिया कि वह अपनी इस परिस्थिति से अवश्य लड़ेगी ।
उसने अपनी बहुत ही गहरी सहेली से

अपनी समस्या बता कर
मदद मांगी और वह तैयार भी हो गई ।
        
डॉक्टर ने
ऑपरेशन की तारीख बता दी थी । प्रिया मानसिक रूप से अपने को इस ऑपरेशन के लिए तैयार
कर रही थी । ऑपरेशन की पूर्व संध्या पर एक बार वह दर्पण के सामने
  खड़ी  होकर निर्विकार ,मूर्तिवत  अपने नग्न स्तनों के सौंदर्य को निहारती
 है
  और अतीत का प्रेम पगे  शब्दों का संगीत
उसके कानों
 
में गूंजता  है और फिर वह प्रेम संगीत धीरे-धीरे तिरोहित
होने लगता है बस एक क्षीण सी  उम्मीद की
 रेखा  बची है कि शायद तुम अभी भी तुम
 अपने सीने से लगा कर ढाढस बंधा कर कह दोगे
तुम्हें कुछ नहीं होगा ,मैं हूँ न ,मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा …… लेकिन यह उसके  मन का भ्रम ही था। ऐसा कुछ न होना था न  कुछ हुआ ,,,उसका 
संयम टूट रहा है
,,,,,लेकिन तुम्हारा टका  सा जवाब याद आ कर कानों में पिघलता शीशा पड़ने
जैसी
 
असह्य पीड़ा दे रहा है। और आँखों से अविरल अश्रु बह रहे हैं । 

थोड़े
समय तक वह
 
रोती रही फिर
उसने अपने आंसुओं को पोछ डाला और
  अपने मन को दृढ़ता से  समझाया मैंने कि जिस देह सौंर्दय से तुम्हें
प्यार था वो अब मेरे पास
 कहाँ बचा है ,,वो तो खंडित हो चुका है, कल ऑपरेशन के बाद मेरा एक स्तन हमेशा -हमेशा के लिए ख़त्म हो जायेगा और साथ ही
नारी सौंदर्य भी  
,मैं सौंदर्य की,प्रेमकी   देवी नहीं रहूंगी ।मेरे अस्तित्व की खुदाई में मेरा अंगभंग हो
जायेगा या यह भी हो सकता है मेरा अस्तित्व ही मिट जाए ।
  अब तुम मेरे देह सौंदर्य पर प्यार के कशीदे
कैसे काढोगे
?
क्योकिं
तुम्हारे लिए मेरे उन्नत उरोज ही सब कुछ थे और मेरा अस्तित्व भी तभी तक था
,जो सौंदर्य की यक्षिणी तुम्हारे मन में बसी
थी उसे तो ईश्वर ने खंडित कर दिया 


लेकिन मेरे मन में जीने की  अदम्य
 लालसा
 
अभी भी बाकी  है । मैं अपना अस्तित्व इतनी आसानी से कभी भी
नहीं खो सकती । 



मैं सिर्फ तुम्हारी प्रेमिका ही नहीं  बल्कि मैं वह आदिशक्ति
हूँ जिस  शक्ति के समक्ष त्रिदेव भी पराजित हो शिशु बन गए थे और मेरी क्षमा
और दया के बिना वो भी
 ईशरत्व  प्राप्त नहीं कर सके थे । मेरा सौंर्दय दीदारगंज की यक्षिणी -सा खंडित
ही सही पर मैं युग -युगों तक अपनी अदम्य
  जिजीविषा को कभी मिटने नहीं दूंगी । शक्ति
में समाहित हुए
  बिना तो शिव भी शव के समान  हैं और  सत्य रहित शिव  कभी   भी  सुन्दरम्   नहीं बन  सकता ।  क्या हुआ अगर तुम और तुम्हारा छद्म  प्रेम  मेरे साथ नहीं है ।मैंशक्ति पुंज हूँ और मैं  अपने  अस्तित्व को यूँ ही टूटने बिखरने
और मिटने
 नहीं दूंगी । 


 
हाँ !  मैं
स्तनहींन
 
औरत  हूँ  पर अभी तक मैं  जिन्दा हूँ और ज़िंदा   रहूंगी । 
डॉ रमा द्विवेदी  

लेखिका

      डॉ. रमा द्विवेदी – परिचय 
 डॉ. रमा द्विवेदी  का जन्म 1 जुलाई 1953 में हुआ । हिंदी में पी एच डी  तथा अवकाश प्राप्त व्याख्याता है । दे दो आकाश (2005 ,काव्यसंग्रह ),रेत का समंदर (2010 काव्यसंग्रह )तथा साँसों की सरगम (2013 ,हाइकु संग्रह ) तीन संग्रह  प्रकाशित तथा `भाव कलश ‘ताँका संकलन में ताँका संकलित (संपादन ,रामेश्वर काम्बोज `हिमांशु’,डॉ भावना कुँवर ),`यादों के पाखी ‘ हाइकु संकलन में हाइकु संकलित  (संपादन -रामेश्वर काम्बोज `हिमांशु’, डॉ .भावना कुंवर ,डॉ हरदीप  संधु ,`आधी आबादी का आकाश ‘ हाइकु संकलन में हाइकु संकलित , संपादक डॉ अनीता कपूर ,`शब्दों के अरण्य में ‘ कविता संकलन में कविता संकलित ,संपादक -रश्मि प्रभा, `हिन्दी हाइगा ‘   संकलन ,संपादक – ऋता शेखर मधु ,`सरस्वती सुमन’ ‘क्षणिका विशेषांक में क्षणिकाएँ संकलित ,(संपादक -डॉ .आनंद सुमन /अतिथि संपादक -हरकीरत हीर)  ,`अभिनव इमरोज’ हाइकु विशेषांक में हाइकु  संकलित ,अतिथि संपादक -डॉ मिथिलेश दीक्षित ,`काव्यशाला ‘कविता संकलन  में कविता संकलित ,संपादक -श्री पवन जैन ,`सरस्वती सुमन ‘हाइकु विशेषांक में हाइकु संकलित, अतिथि संपादक`-श्री रामेश्वर काम्बोज `हिमांशु ,पुष्पक ‘साहित्यिक पत्रिका की संपादक तथा `पुष्पक ‘ के 25  अंको पर एम फिल शोध कार्य संपन्न। महासचिव :साहित्य गरिमा पुरस्कार समिति ,हैदराबाद। देश -विदेश की स्तरीय  पत्र -पत्रिकाओं ,कविताकोश एवं कई  अंतरजाल में रचनाएँ निरंतर प्रकाशित । दूरदर्शन ,राष्ट्रीय -अंतरराष्ट्रीय  मंचों  से काव्यपाठ एवं आकाशवाणी ,हैदराबाद से रचनाएँ प्रसारित ।साहित्य गरिमा पुरस्कार  के साथ कई सम्मानों से सम्मानित ।  सर्वे में चयनित -`द सन्डे इंडियंस ‘ साप्ताहिक पत्रिका के  111 श्रेष्ठ महिला लेखिकाओं में चयनित । 
  

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