नन्ही श्रेया अपने
बिल्डिंग में नीचे के फ्लोर में रहने वाले श्रीवास्तव जी के घर जाती है और उनका
हाथ पकड़ कर कहती है “अंकल मेरे
घर में चलो , लाइट जला दो ,पंखा चला दो
,गर्मी लग रही है | श्रीवास्तव जी
श्रेया को समझाते हुए कहते हैं “बेटे मम्मी को कहो वो चला
देंगी ,जाओ घर जाओ | नहीं अंकल मम्मी
नहीं चलाएंगी | पापा –मम्मी में बिजली
के बिल को लेकर झगडा चल रहा है | पापा मम्मी को डांट
रहे हैं और मम्मी कह रही हैं ,ठीक है अब पंखा
नहीं चलाऊँगी ,कभी नहीं चलाऊँगी ,मम्मी
रो रही हैं | आप चलो न अंकल ,प्लीज चलो
,मुझे गर्मी लग रही है | पंखा चला दो न
चल के ,प्लीज अंकल |
अध्यापिका के डांटने पर फफक –फफक कर रो पड़ी | मैंम मेरे घर से कोई नहीं आएगा |
न् पापा न मम्मी | पापा तो ऑफिस गए हैं और मम्मी की तबियत खराब है ,कल
पापा ने मारा था | हाथ पैर में चोट लग गयी है | मैं रोज –रोज के झगड़ों की वजह से पढ़ नहीं पाती मैम |
कोई शारीरिक न पाते हुए उसे मनोवैज्ञानिक को दिखाने की सलाह देते हैं | मनोवैज्ञानिक एक लम्बी परिचर्चा के बाद इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं
कि अतुल के न बोल पाने की वजह उसके माता –पिता में होने वाले
अतिशय झगडे हैं | दोनों खुद चिल्लाते हैं और एक दूसरे को चुप
रहने की ताकीद देते हैं | अतुल अपनी बाल बुद्धि से चुप रहने
को ही सही समझता है और बोलने की प्रक्रिया में आगे बढ़ने से इनकार कर
देता है |
बच्चो पर असर डालते हैं माता -पिता के झगडे
स्पष्ट है जब पति –पत्नी
लड़ते हैं तो उसका बहुत ही प्रतिकूल असर बच्चों पर पड़ता है | लड़ते
समय उन्हें ये भी ख़याल नहीं रहता कि आस –पास कौन है |
वे बच्चों के सामने निसंकोच एक दूसरे के चाल –चरित्र
पर लांछन लगाते हैं| एक दूसरे के
माता –पिता व् परिवार वालों को बुरा –भला
कहते हैं | भले ही उनका मकसद लड़ाई जीत कर अपना ईगो सैटिसफेकशन हो |पर उन्हें इस बात का ख्याल ही नहीं रहता कि
जो मासूम बच्चे जो उन्हें अपना आदर्श मानकर हर चीज उन्हीं से सीखते हैं उन पर
कितना विपरीत असर पड़ेगा | कई बार रोज –रोज के झगड़ों को देखकर बच्चे दब्बू बन जाते हैं तो कई बार उनमें विद्रोह
ही भावना आ जाती है | किशोरबच्चो में अपराधिक मानसिकता पनपने का एक कारण यह भी हो सकता है | अक्सर माता –पिता तो लड़ –झगड़कर सुलह कर लेते हैं पर जो नकारात्मक असर बच्चों पर पड़ जाता है उसको बाद में ठीक करना बहुत मुश्किल हो जाता है |
माता-पिता के झगडे और बच्चे: मनोवैज्ञानिकों की राय
अस्वाभाविक नहीं है | कहा भी गया है जहाँ चार बर्तन होंगे
वहां खट्केंगे ही | दो भिन्न
परिवेश में पले लोगों में अलग राय होना आम बात है |
इससे बच्चों को फर्क नहीं पड़ता , फर्क पड़ता है
बात रखने के तरीके से | आये दिन
जोर जोर से चीख चिल्ला कर करे गए झगडे बच्चों पर बहुत ही विपरीत असर डालते हैं |
यहाँ यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि अगर झगड़ों के बाद माता –पिता में अच्छे रिश्ते दिखाई देते हैं तो बच्चे भी झगड़ों को नजर अंदाज कर देते हैं | उन्हें लगता है की उनके माता –पिता में प्रेम तो है
| परन्तु अगर बच्चों को लगता है कि माता-पिता में प्रेम नहीं
है व् साथ रहते हुए भी उनमें दुश्मन हैं तो बच्चे सहम जाते हैं | उन्हें भय उत्पन्न हो जाता
है कि कहीं वो लड़ -झगड़ कर अलग न हो जाएँ और उन्हें वो प्यार मिलना बंद न हो जाए
अपने माता – पिता से मिल रहा है |
वैज्ञानिकों की माने तो इस मानसिक भय के शारीरिक लक्षण अक्सर बच्चों
में प्रकट होने लगते हैं जैसे दिल की धड़कन बढ़ जाना, पेटमें दर्द होना, बेहोशी आना , व् विकास दर में कमी आदि।एक प्रचलित विचारधारा तो यह भी है कि अधिक गंभीरकिस्म की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं मूल रूप में मनोवैज्ञानिक आधार लिये हुये होती हैं।
झगडा होता है जहाँ उनको को ऐसा लगने लगता है की चाहे
अनचाहे वो दोषी है | ऐसा तब होता है जब माता – पिता में से
एक दबंग व् दूसरा दब्बू प्रकृति का होता है | बच्चे को बार –
बार यह अहसास होता है की माता या पिता उसकी वजह से इस ख़राब बंधन में जकड़े हुए हैं |
विश्लेषण से पता चलता है कि हमारे शरीर
में सिम्पैथीटिक व् पैरासिम्पैथीटिक नर्वस सिस्टम होता है |
किसी भावी विपत्ति के समय यही सिस्टम हमारे खून में एड्रीनेलीन नामक ग्लैंड से एड्रीनेलिन हरमों निकाल कर शरीर को खतरे के लिए
तैयार करता है | जिससे दिलकी धड़कन बढ़ जाती है , पाचन क्रिया , एनेर्जी रिलीज सब बढ़ जाती है |
खतरे के लिए तो ये एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है पर जब रोज – रोज के
झगड़ों से बच्चे भावनात्मक खतरा महसूस करते हैं तो यह प्रक्रिया उन्हें नुक्सान
पहुंचाती है व् शारीरिक व् मानसिक विकास को कम करती है |
माता-पिता झगड़ते समय बच्चो के विषय में सोंचे
डाउन होना बिलकुल स्वाभाविक है | विवाहित जोड़ों का आपस में झगड़ना कोई असमान्य प्रक्रिया नहीं है | असमान्य यह है की वो झगडा करते समय अपने बच्चों को
भूल जाते हैं | उस समय उनका धयान पूरी तरह
से तर्क –वितर्क करने और एक दूसरे को
नीचा दिखाने में होता है |जब भी आप अपने पति या पत्नी
से झगडा करने को तत्पर हो यह हमेशा धयान रखे कि आप के बच्चे यह ड्रामा देख रहे हैं
| जो उन्हें भानात्मक रूप से कमजोर बना रहा है | इसका मतलब यह नहीं है की आप माता –पिता हैं तो आप को झगडा करने का या अपनी बात रखने का अधिकार नहीं है | पर आप को अपने वाद विवाद बच्चों के सामने नहीं
करने चाहिए | रोहित और आरती दोनों उच्च
पदों पर है | घर और बाहर के काम का दवाब
उन्हें बेवजह झुनझुलाने पर विवश
कर देता | बात बढ़ जाती फिर एक दूसरे
के परिवार पर आरोप प्रत्यारोप पर समाप्त होती |
दौरान उसका १० वर्षीय पुत्र आगबबूला होकर बोला “ मुझे कहीं और रहने के लिए भेज दो ,मैं तंग आ गया हूँ आप लोगों के रोज़ –रोज़ के झगड़ों से | उस समय आरती और रोहित को अहसास हुआ की छोटे बच्चे
को यह समझाना मुश्किल है कि वो वो झगडे में जो एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए
कहते हैं उससे उनका वास्तव में कोई मतलब नहीं होता |
को समझा दे कि काम की थकान से ऐसा हुआ है| हम, अपने मन का गुबार निकाल रहे हैं | वो इससे ज्यादा परेशान न हों व् दूसरे कमरे में चले जाएँ | सब ठीक हो जायेगा | झगडे में सबसे पहले बच्चों के बारे में सोचना
चाहिए | बच्चो को विश्वास में लेना
व् उन्हें सब नार्मल है का अहसास दिलाना बहुत जरूरी है |
माता-पिता के झगड़ों का बच्चों पर क्या होता है
असर
देते हैं पर अधिकतर माता – पिता के झगड़ों के बच्चों पर
निम्न परिणाम देखे गए हैं |
- असुरक्षा
- अपमान
व् अपराध बोध - आत्मविश्वास
की कमी - किसी
एक का पक्ष लेने का तनाव - पढाई
में पिछड़ना - भावनात्मक
समस्याएं - भविष्य
में उनका स्वयं ख़राब पेरेंट बनना
माता पिता के लिए सलाह
गहरी लकीरे खींच जाती है | अत : आपस में झगड़ने से पहले
निम्न बातों का ध्यान रखे ……..
सोचिये कि आप के माता –पिता झगड़ते तो आप कैसा
महसूस करते |
में घी का काम करता है |
कम प्यार करते हैं |
किसी एक का पक्ष ले |
करे |
अहसास दिला सके कि आप अपने जीवन साथी के साथ पहले की ही तरह प्यार करते हैं |
बच्चे हमारे जीवन के सबसे अनमोल रत्न होते हैं उनको केवल पालना ही
नहीं वरन भावनात्मक रूप से सुरक्षित वातावरण देना हमारा कर्तव्य है |माता -पिता में मतभिन्नता और झगडे होना स्वाभाविक
है | वैसे भी झगडे केवल उन घरों
में नहीं होते जहाँ एक दबंग व् दूसरा दब्बू हो |दब्बू पेरेंट के रोने धोने का भी बच्चों पर बुरा
असर पड़ता है | इसलिए झागना नहीं झगड़ने का
तरीके पर ध्यान देना जरूरी है | और हर झगडे के बाद बच्चों को यह अहसास दिलाना भी की हम झगड़ पड़े पर
अभी भी एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं | जिससे बच्चे उस प्यार को खोने का डर न पालें व्
स्वस्थ और सुरखित बचपन का आनंद लें |
children issues, parent-children relationship
बहुत ही सराहनीय लेख है।आभार इतनी बढ़िया सामग्री उपलब्ध करवाने को।
बहुत बढ़िया लेख, माता पिता के झगड़े से ही नहीं बल्कि हर ऐसी चीजों से बच्चों के कोमल दिल पर असर पड़ता हैं, इसलिए अपने बच्चो को अगर परफेक्ट बनाना हैं तो उसे उसके आसपास का वातावरण अच्छा रखो.