रिश्ते और आध्यात्म – जुड़ाव क्यों बन जाता है उलझन

रिश्ते और आध्यात्म  - जुड़ाव क्यों बन जाता है उलझन

                                   नीता , मीरा , मुक्ता  व् श्रेया सब एक सहेलियां एक ग्रुप में रहती थी | जब निधि ने कॉलेज ज्वाइन किया |वो भी उन्हीं के ग्रुप में शामिल हो गयी | निधि बहुत जीजिविषा से भरपूर लड़की थी | जल्द ही वो सबसे घुल मिल गयी | कभी बैडमिन्टन खेलती कभी , डांस कभी पढाई तो कभी बागवानी तो कभी गायन या सिलाई  | ऐसा क्या था जो वो न करती हो | या दूसरों से बेहतर न करती हो | ग्रुप की सभी लडकियां उसे बेहद पसंद करती | सब उसके साथ ज्यादा समय बिताना चाहती | पर कहीं न कहीं ये बात मीरा को बुरी लगती क्योंकि वो निधि पर अपना एकाधिकार समझने लगी थी | निधि से सबसे पहले दोस्ती भी तो उसी की हुई थी | फिर डांस , पढाई व् बागवानी में वो उसके साथ ही होती | इस्सिलिये जब निधि दूसरी लड़कियों के साथ होती तो उसे जलन या इर्ष्या होती | ये बात ग्रुप  अन्य लडकियां व् निधि भी धीरे – धीरे समझने लगी | इस कारण वो मीरा से काटने लगी | क्योंकि वो सबसे बराबर की दोस्ती रखना चाहती थी | पर मीरा ऐसा होने नहीं देना चाहती थी | धीरे – धीरे अच्छी सहेलियों का वो ग्रुप उलझन भरे रिश्तों में बदल गया | सहेलियों का वो ग्रुप हो या एक परिवार की बहुएं , या ऑफिस के सहकर्मी ये जुड़ाव क्यों उलझाव में बदल जाता है |

जुड़ाव क्यों बन जाता है उलझन 

हम सब के जीवन में ये समस्या कभी न कभी आती है | किसी रिश्ते से जुड़ाव उलझन बन जाता है | इसके कारण को समझने के लिए रिश्तों की गहराई का बारीकी से विश्लेष्ण करना होगा |

हर व्यक्ति में बहुत सारे गुण होते हैं | या यूँ कहे की हर व्यक्ति दिन भर में अनेक क्रियाओं को करता है | उस क्रिया के अनुरूप वो उसमें रूचि रखने वाले को चुनता है | ताकि उस काम को करने में मजा आये | जैसे किसी खास मित्र के साथ मूवी देखने में , किसी के साथ पढाई करने में , किसी के साथ नृत्य या सिलाई करने में मज़ा आता है | हम उन क्रियाओं के सहयोगी के रूप में अनेक लोगों से दोस्ती करते हैं व् उनका साथ चाहते हैं | दिक्कत तब आती है जब कोई एक व्यक्ति  हमारा हर समय साथ चाहे या हम किसी एक व्यक्ति का हर समय साथ चाहें | ये अत्यधिक जुड़ाव की आकांक्षा रखना ही रिश्तों में उलझन का कारण हैं |

पसंद और अत्यधिक जुड़ाव में अंतर हैं 

जब आप किसी के साथ इस हद तक जुड़ाव चाहते हैं की वो सिर्फ आपका ही हो तो उलझन स्वाभाविक है |आप स्वयं ये बोझ नहीं धो पायेंगे | जरा सोच कर देखिये अगर आप ग्लू या गोंद के बने हों | ये गोंद ऐसी हो की जिस चीज को आप पसंद करें वो आपसे चिपक जाए | अब जब आप घर से बाहर निकलेंगे | आपको  सामने बैठी चिड़िया अच्छी लगी वो आपसे चिपक गयी | फूल या पत्ती अच्छी लगी  वो आपसे चिपक गयी | सब्जी अच्छी लगी वो आपसे चिपक गयी | वृद्ध महिला अच्छी लगी वो आपसे चिपक गयी | पेड़ अच्छा लगा वो भी आपसे चिपक गया | आधे घंटे के अन्दर आपसे इतनी चीजे चिपक जायेंगी कि आपका सांस लेना भी दूभर हो जाएगा |
चलना तो दूर की बात हैं | अत्यधिक जुड़ाव या एकाधिकार चाहना किसी के गले पड़ना या यूँ चिपक जाने के सामान ही है | जहाँ रिश्तों में घुटन होगी प्रेम नहीं |

जुड़ाव केवल इंसानों से नहीं चीजों से भी होता है 

           जुड़ाव की अधिकता केवल इंसानों से नहीं चीजों से भी होती है |मान लीजिये आप किसी पार्क में आज पहली बार गए हैं | आप एक बेंच पर बैठते हैं |  संयोग से कल भी उसी बेंच पर बैठते हैं | तीसरे दिन से आप पार्क में उसी बेंच को ढूंढेगे |चाहे पार्क की साड़ी बेंचे खालीही क्यों न पड़ी हों | बेड के उसी सिरे पर लेटने से नींद आएगी | डाईनिंग टेबल की वही कुर्सी मुफीद लगेगी | कभी सोंचा है ऐसा क्यों है की इन बेजान चीजों से भी हमें लगाव हो जाता है | इसका कारण है हमारी यादाश्त जो चीजों को वैसे ही करने या होने में विश्वास करती है | तभी तो आँखे बंद हों पर घर का कोई सदस्य कमरे में आये तो पता चल जाता है की  कौन आया था | ये सब यादाश्त के कारण होता है |जन हम किसी के साथ किसी क्रिया में समानता या सामान रूप से उत्साहित होने के कारण ज्यादा समय बाँटने लगते हैं तो यादाश्त उस समय को  अपने जरूरी हिस्से के सामान लेने लगती है | फिर उसे किसी से शेयर करना उसे नहीं पसंद आता है | यही उलझन का कारण है |

चीजों से जुड़ाव एक तरफा होता है इसलिए उलझन नहीं होती 

                                                जब आप किसी चेज से प्यार करते हैं या जुड़ाव महसूस करते हैं तो आप जानते हैं की ये केवल आप की तरफ से हैं | आप उसे बाँध नहीं सकते हैं | जैसे आप किसी पेड़ को रोज गले लगाइए | आप जुड़ाव महसूस करेंगे पर पेड़ आप को बंधेगा नहीं | न ही आप अपने ऊपर  किसी प्रकार का बंधन अनुभव करेंगे | जिस कारण उलझन या तकलीफ होने की सम्भावना नहीं है | ईश्वर या गुरु के प्रति जुड़ाव भी ऐसा ही है | जहाँ एक तरफ़ा जुड़ाव है | बंधन कोई नहीं अपेक्षा  कोई नहीं | तो फिर उलझन भी कोई नहीं |

कैसे आध्यात्म  दूर करता है उलझन 

                                            जैसा की मैंने पहले ग्लू का उदाहरण दिया था | तो आप मान लीजिये की आध्यात्म साल्वेंट की तरह हैं | जब आप आध्यात्मिक हो जाते हैं तो जैसे ही आप किसी वास्तु या व्यक्ति से अत्याधिक जुड़ाव महसूस करते हैं तो आध्यात्म का साल्वेंट उस ग्लू को धो डालता है |यानी अब आप शुद्ध प्रेम तो करेंगे पर एकाधिकार या अत्यधिक जुड़ाव से उत्पन्न असुरक्षा से दूर रहेंगे | जिस कान रिश्तों में होते हुए भी बंधन मुक्त रहेंगे |

सरिता जैन

लेखिका

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3 thoughts on “रिश्ते और आध्यात्म – जुड़ाव क्यों बन जाता है उलझन”

  1. बहुत ही सुन्दर सार्थक तथा शिक्षाप्रद आलेख….. रिश्तों में स्पेश चाहिये ही

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