यूँ तो चौराहे थोड़ी- थोड़ी दूर पर मिल ही जाते हैं | जहाँ चार राहे मिलती हैं , वहीँ चौराहा बन जाता है , इसमें खास क्या है , जो इस पर कुछ कहा जाए | जरूर आप यही सोंच रहे होंगे| मैं भी ऐसा ही सोंचती थी , जब तक थोड़ी देर ठहर कर किसी चौराहे पर इंतज़ार करने की विवशता नहीं आ गई |
कितना कुछ सिखाता है जिंदगी का चौराहा
वाकया अभी थोड़े दिन पहले का है , बेटे को कोई एग्जाम दिलाने जाना था | दो घंटे का समय था , मैंने सोंचा इंतज़ार कर लेते हैं , साथ ही वापस चले जायेंगे| पर सेंटर के पास बहुटी ठण्ड थी , सुबह का समय था , तो प्रकोप भी कुछ ज्यादा था | आस -पास नज़र दौड़ाई , थोड़ी दूर पर एक चौराहा था , जहाँ धूप ने झाँकना शुरू कर दिया था | धूप देखते ही मैं उस तरफ ऐसे बढ़ी जैसे गुड़ को देखकर मक्खी बढती है |खैर वाहन से चौराहे की चारों राहों का नज़ारा साफ़ – साफ़ दिख रहा था |
जीवन क्षण प्रतिक्षण कैसे बदलता है | इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अगर देखना हो तो चौराहा सबसे मुफीद जगह है | हर पल चारों दिशाओं में भागते लोग, कितनी ख़ूबसूरती से कह जाते हैं कि हर किसी की मंजिल एक नहीं है , जो किसी ने छोड़ा है वही दूसरे के लिए सबसे सही चुनाव हैं | हम सबको चुनने का मौका है| यहाँ हर कोई चुनता है और आगे बढ़ता है| यहाँ कोई शिकायत नहीं होती, मैंने ये क्यों चुना , उसने वो क्यों चुना , शिकायत चुनाव के बाद होती है , जब अपने द्वारा चुने गए रास्ते से बेहतर दूसरे का रास्ता लगता है| क्यों जिंदगी के हर चौराहे पर हम जरा ठहर कर चुनाव नहीं करते | काश ऐसा कर पाते तो सब अपनी जिन्दगी उसी तरह से जी पाते जैसी जीना चाहते हैं |
चौराहे पर गाड़ियों और लोगों की भागदौड़ में एक संतरे वाला उधर से निकला , एक संतरा जिसमें उसने बड़े ही कलात्मक ढंग से एक फूल लगाया हुआ था , ठेले से निकल कर गिर गया , उसने उठा कर रख लिया | आगे बढ़ने पर वो दोबारा गिर गया , उसने फिर उठा कर रख लिया | तभी किसी ने उसे आवाज़ दी , वो आवाज़ की दिशा में चला , तो वो संतरा फिर गिर गया , इस बार उसका ध्यान नहीं गया , वो आगे बढ़ गया , वह फूल लगा संतरा वहीँ पड़ा रह गया | कितना सच है , जिसको हमसे मिलना होता है और जिसको बिछड़ना दोनों को कितना भी प्रयास कर लो,रोका नहीं जा सकता |
परन्तु संतरे का भाग्य को क्या कहें , जो यूँ ही चौराहे पर किनारे पड़ा हुआ था | उसे कोई उठा कर ले नहीं रहा था | लोग आते उससे बच कर निकल जाते , कारण समझ नहीं आ रहा था| कारण समझ आया,जब एक छोटा बच्चा जो अपनी माँ के साथ जा रहा था , उसने संतरे को पैर से ठोकर मार दी | उसकी माँ ने यह देख कर बच्चे को चपत लगायी ,फिर डांटते हुए बोली, ” अरे बीच चौराहे पर किसने जाने कौन सा मन्त्र करके डाल दिया होगा | कितनी बार मना किया है कि चौराहे पर पड़ी चीज को नहीं छूते, पता नहीं कौन सी अलाय-बाले ले कर आ जाएगा| भाग्य केवल मनुष्यों का ही नहीं होता, मेरी आँखों के सामने चौराहे पर गिर पड़ा वो संतरा मनहूस घोषित हो चुका था | हम सब अपने भविष्य से कितना डरे रहते हैं, हर चौराहा इसका प्रमाण है|
वही पास कुछ कबूतर दाने चुगने में लगे थे| सब साथ- साथ खा रहे थे| किसी को परवाह नहीं कौन हिन्दू है, कौन मुसलमान, कौन अमीर ,गरीब , कौन बड़ी जाति का, कौन छोटी जाति का| काश ये गुण हम कबूतरों से सीख सकते| ये धर्म ये जातियाँ हमें कितना जुदा कर देती हैं | एक खास नाम एक खास पहचान से जुड़ कर हम भले ही कुछ खास हो जाते हों , पर इंसान नहीं रह जाते| उन्हीं कबूतरों में से एक कबूतर का दाना चुगने में कोई इंटरेस्ट नहीं था , वो लगा था तिनका बीनने में … उसे नन्हे मेहमान के आने से पहले अपना घोंसला बनाना था | एक सुखद भविष्य की कल्पना ही शयद इतनी मेहनत करने की प्रेरणा देती है| शायद इसी आशा से पान वाला अपनी गुमटी लगा रहा .. आज ज्यादा पान बिकेंगे , फिर ..
अरररे … ये क्या? एक साइकिल वाले की साइकिल कार से जरा छू गयी , छोटा सा स्क्रेच आ गया| कार वाले ने आव- देखा न ताव , झट से गाडी से उतर दो झापड़ लगा दिए | इतने पर भी संतोष नहीं हुआ उसे माँ -बहन की तमाम गालियाँ देता हुआ गाडी ले कर चला गया| अब साईकिल वाले ने अपनी साइकिल उठायी , इधर -उधर देखा फिर उस कार वाले को माँ -बहन के तामाम् गालियाँ देता हुआ विजयी भाव से चला गया | भले ही कार वाले ने न सुना हो , पर ये चौराहा साक्षी था , ये कबूतर साक्षी थे , हवा साक्षी थी , सूरज साक्षी था , कि उसने अपने अपमान का बदला ले लिया है| गरीब हो या अमीर , अहंकार पर चोट कौन सह सकता है? और मैं एक बार फिर साक्षी बनी कि पुरुषों की लड़ाई में महिलाएं अपमानित होती रही हैं … होती रहेंगी | हर चौराहे पर सबकी माँ बहने हैं अदृश्य … अपमानित |
तभी एक झाड़ू वाला आया , वो अपनी लम्बी झाड़ू से सब कुछ साफ़ कर देता है | वो चौराहा अब भी वही है बस पहले की धूल साफ़ हो गयी , अब वो फिर से तैयार है कुछ नया लिखने को , मौका दे रहा है हमें एक बार फिर से अपनी राह चुनने को | मैं सोंचती हूँ ये झाड़ू वाला कौन है अवसर , भाग्य या अगला जन्म …
हम सब एक चौराहे पर खड़े हैं , |जिंदगी के चौराहे पर , बेतहाशा भागते दौड़ते , आगे जाने की जिद के साथ , कुछ अलग करना है , कुछ अलग रचना है , इतिहास बनाना है , इस जद्दोजहद में कहाँ देख पाते हैं उन कबूतरों को , जो कहते हैं , ” आओ साथ में , प्यार से दाना चुगे … मिटा दो ये भेद , मिटा दो ये जीत की रट कि ये चौराहे रहेंगे , ये दौड़ जारी रहेगी , नहीं रह जाएगा तो बस इस पल का आनंद , साथ में दाना चुगने का समय | ये चौराहा कहता है भविष्य से डर कर बाख कर मत चलो , गले लगा लो उसको जो आज अपनों से जुदा हो कर रास्ते में पड़ा है … वो मनहूस नहीं है, भाग्य का मारा है | ये कहता है कि किसी की माँ -बहन के प्रति अपशब्द निकालने से पहले ठहरो , सोंचो, क्योंकि तुम्हारी भी खड़ी कर दी जायेगीं बीच चौराहे पर …अदृश्य ही सही | ये कहता है राह चुनने से पहले जरा ठहर कर सोंच लेना , भाग्य को दोष न देना
ये जिन्दगी का चौराहा … जहाँ बचपन है , युवावस्था , अधेड़ावस्था और वृद्धावस्था | हर मोड़ पर अतीत के दर्द हैं भविष्य के सपने | हर दिन सूरज आता है और हमें मौका देता है धूल झाड कर उठ खड़े होने को , कुछ नया रचने का , कुछ नया करने का | हमें न जाने कितने मोड़ों पर चौराहे मिलते हैं , मिलेंगे … जरूरत है उन्हें समझने की |
वंदना बाजपेयी
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इतना प्रैक्टिकल होना भी सही नहीं
13 फरवरी 2006
बीस पैसा
वंदना जी, एक चौराहा भी इतना कुछ सीखा सकता हैं यह आपकी लेखनी से पता चला। बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति।
धन्यवाद ज्योति जी
Bohat hi badhiya kahani hai. Bohat hi Motivational story hai. Padhkar accha laga. Thank you
Nice Story.Bohat hi accha blog
hai.
Bahut hi badhiya Post likha hai aapne. Interesting