कहते हैं बेटियां दो कुल की शान होती है। हर माता पिता की ये इच्छा होती है उनकी बेटी खुश
रहे। इसी लिये हर माता अपनी हैसियत से बढकर बेटी की शादी करता है किन्तु फिर भी कई
बार बेटी अपनए ससुराल मे खुश नही रह पाती ये एक चिन्तन का विषय है। कई कारण हो जाते है जिनकी ओर हमारा ध्यान भी नही जा पाता।
ख़राब होते रिश्ते -बहुओं को हो जिम्मेदारी का अहसास
देवर जेठ ननद व सास ससुर को दिल से नही अपना पाती। कही हुई सही बात भी उसे बुरी लग
जाती है। धैर्य के अभाव मे अपनी अकड मरोड के चलते वो भूल जाती है कि उसे ससुराल मे
एडजेस्ट होना है।
बाहर से आयी लडकी सबको अपने हिसाब से नही चला पाती। कितनी बार
ससुराल की छोटी छोटी बातो मे मिल मेख निकाल कर ससुराल की चुगली मायके वालो से कर रसास्वादन तो कर लेती है,,, किन्तु वो भूल जाती है रहना तो उसे ससुराल मे ही
है। इस तरह वो जल मे रह कर मगर से बैर वाली कहावत को चरितार्थ कर देती है।
मायके
संग प्रेम मे वो भूल जाती है कि .परिणाम क्या होगा। उधर आये दिन समधियो की बुराई सुन सुन कर नफरत का ऐसा पुल बन जाता है
जिसे पार कर पाना कढिन हो जाता है। दोनो परिवारो मे मूक जंग सी छिड जाती है। बरसो कि पूंजी ऐसी बहू के हाथ मे देने हेतू सास
ससुर कतराने लगते है। असुरक्षा की भावना घर कर जाती है,,, ना चाहते हुऐ भी बेटे को अपमानित होना पढता है,, मां व पत्नी के बीच की खाई बढने लगती है। दोनो को
न्याय मिले इस बात का बुरा असर बेटे को सहना पढता है।
ख़राब होते रिश्ते -मायका नहीं अब ससुराल है बेटी का घर
फंसाने कि कोशिश करते है। अकारण वर पक्ष को अपमानित करते है तो खामियाजा भी उन्ही
की बेटी को ही भुगतना पढता है। समय समय पर घर पर उत्सव अथवा विवाह समारोह मे शामिल
न होने पर आपस मे तनातनी का मौहोल हो जाता है। खर्चा होगा वधू पक्ष का ये मान बेटी अपने मायके वालो को रोक लेती है।
सामाजिक उपेक्षा के भय से वर पक्ष नाराज हो जाता है इस बात का गहरा असर भी बहू पर पड़ता है। सास बहू के रिशतो मे खटास आना लाजिमी हो जाता है।
मे ससुराल पक्ष का सम्मान बढाये,, अपनी मीठी मीठी बातो
से ससुराल वालो का दिल जीत सकती है। कहते है अति हमेशा बुरी होती है। ज्यादा से
ज्यादा मायके के चक्कर लगाना, मायके के हर काम मे
अपनी उपस्थति दर्ज कराना कंहा उचित है। ससुरालपक्ष को हर काम मे मना करना व मायके
पंहुच जाना ससुराल पक्ष से सहन नही हो पाता। अधिकारो के नाम पर सक्षक्त नारी ये भी
भूल जाती है कि उसका पहला हक कहाँ बनता है?
ख़राब होते रिश्ते- आखिर क्यों टूट रहे हैं परिवार
ये चिन्तन का विषय है कि आज परिवार क्यो टूट रहे है? पहले जहां संयुक्त परिवार मे पांच पांच बहूऐ एक
ही चौके मे काम करती थी आज एक बहू भी नही टिक पाती। माना आजादी सबको प्यारी है
किन्तु सीमा मे रहकर बडो के मान सम्मान को ध्यान मे रख करघर गृहस्थी को सुखद बनाया
जा सकता है। एक बहू, एक नारी अपने अच्छे
कायो से माता पिता व सास ससुर दोनो को संतुष्ट रखकर विवाह जैसे धामिक कर्म को
संपूर्णता प्रदान कर समाज मे एक अच्छी मिसाल कायम की जा सकती है।।।
रीतू गुलाटी
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बहुत बढ़िया लेख रितु जी, एक घर की शान और मान उस घर की महिला पर ही निर्भर करती हैं.