धरा ने है ओढ़ी वसन्ती ये चूनर
नव सुमनों का किनारा टँका है
नवल किसलयों का परिधान पहना
कि फागुन अभी आ रहा , आ रहा है
धरा – – – –
ये पायल की रुनझुन सी भँवरों की गुनगुन
सघन आम्रकुन्जों में कोयल की पंचम
शीतल सुगन्धित मलय को लिए संग
ऋतुराज तो स्वागत को खड़ा है
धरा – – – –
ये पुष्पों के भारों से झुकती लताएँ
विपुल रंगों की इन्द्रधनुषी छटाएँ
ये सौन्दर्य – झरना धरा यौवना का
अनिमेष फागुन ठगा सा खड़ा है
धरा – – – –
उषाअवस्थी
, गोमती नगर
लखनऊ ( उ0प्र0)
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