जल दिवस के उपलक्ष्य मे माँ गंगा की पीड़ा पर लिखी कविता——–
कविता – माँ गंगा
माँ गंगा———-
अब धरती पे रो रही है!
इसके बेवफ़ा बेटो मे अब,
भगीरथ का किरदार न रहा,
रोज शहर और घर के मैलो से पाट रहे,
उफ!अब गंगा अपने बेटो का प्यार नही,
बल्कि उनके हाथो मिला जहर———-
अपने अंदर समो रही है,
माँ गंगा———–
अब धरती पे रो रही है।
देखो इसी का असर है कि,
इसके पानी का पूरा बदन,
जहर से नीला पड़ता जा रहा,
तड़पती गंगा माँ,
अब बह नही रही———-
बल्कि अपनी लाश को बस ढो रही है।
माँ गंगा———-
अब धरती पे रो रही है।
@@@रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी।
जज कालोनी,मियाँपुर
जौनपुर —222002
(उत्तर–प्रदेश)।
पढ़िए एक से बढाकर एक कवितायें काव्य जगत में
आपको कविता “ “माँ गंगा “कैसी लगी | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट पोस्ट सीधे आपके email पर भेज सकें