क्या हम बच्चों में रचनात्मकता विकसित कर रहे हैं ?

क्या हम अपने बच्चों में रचनात्मकता विकसित कर रहे हैं ?

अभी कुछ दिन पहले एप्पल के co-founder Wozniak ने भारत के बारे में ट्वीट  किया कि भारत में सफलता का पैमाना ही एक अच्छी नौकरी है | हर भारतीय की कोशिश
रहती है कि वो पढाई करे MBA करें और एक अच्छी से नौकरी प्राप्त करे , जिससे हो सके
तो वो अच्छा घर या ज्यादा  से ज्यादा मर्सिडीज खरीद सके | उनमें Creativity का आभाव है | तुरंत ही
इस बात पर ट्विटर वॉर “ छिड गया जिसमें टॉप इंडियन लोगों ने रिप्लाई किया | इसमें Wozniak ने अपने कथन से आगे बढ़ कर यह भी कह दिया कि इंडिया में इनोवेशन हो ही नहीं
सकता | यहाँ तक की इनफ़ोसिस भी एक सीमा से आगे नहीं जा सकती | आनंद महिंद्रा ने
इसका उत्तर दिया कि आप अगली बार आइये सुर बदले हुए मिलेंगे |

क्या हम बच्चों को रचनात्मक शिक्षा दे रहे हैं ? 

          
                    आनंद महिंद्रा का
उत्तर हम भारतीयों के आहत स्वाभिमान पर मलहम तो लगता है | पर क्या सच में सुर बदले
हुए मिलेंगे ? क्या हम अपने बच्चों को ऐसी शिक्षा दे रहे हैं जहाँ रचनात्मक
स्वतंत्रता हो |मेरे आश्चर्य की सीमा नहीं रही जब एक शिक्षिका ने मुझसे कहा कि कला
साहित्य में जाने वाले बच्चों में रचनात्मकता होती है गणित और विज्ञान की और जाने
वाले बच्चों रचनात्मकता नहीं होती | अफ़सोस की ज्यादातर लोगों की रचनात्मकता की
परिभाषा ही हिली हुई है | जब कोई ड्रेस डिजाइनर कोई नयी डिजाइन बनता है तो हम उसे
रचनात्मकता मान लेते हैं पर जब कोई मोबाइल में कोई नया एप बनता है तो हम उसको
क्रीएटीव नहीं मानते | हम नहीं मानते की वो वो विज्ञानं के क्षेत्र में की गयी
रचनात्मकता है | एक कल्पना और उसको साकार रूप में बदलने में किया गया प्रयास | इसी
कारण  हम अपने बच्चों को , छोटे पर , जब वो कोई खिलौना तोड़ कर कुछ सीखने का प्रयास
कर रहा होता है उसकी पिटाई कर देते हैं | हम वैज्ञानिक रचनात्मकता को सिरे से नकार
देते हैं |


  
स्कूल में एक –एक नंबर के चलते युद्ध में दो –चार
नंबर कम लाने पर बच्चों को सरेआम अपमानित तो कर दिया जाता है , पर क्या कभी कुछ
अलग हट के उत्तर लिखने वाले बच्चों को सम्मानित किया जाता है | कई स्कूल में तो
टीचर का सख्त आदेश होता है कि जो मैंने उत्तर लिखवाया है वही लिखना है , अगर उससे
हट कर लिखा तो नंबर कट जायेंगे | तो बच्चों पर दवाब होता है कि वो वही उत्तर लिखे
, क्योंकि अगर नंबर कम आये तो उन्हें सरेआम बेइज्जत होना पड़ेगा | चाहते न चाहते हर
बच्चा “ याद करने की क्षमता “ की परीक्षा देता है “ समझ दारी की नहीं |


 अपनी एक सहेली का उदाहरण याद आ रहा है | बात तब की है जब हम B.SC.part
-1 में थे | मेरी केमिस्ट्री की टीचर कुछ पढ़ा रहीं थी | उनके किसी प्रश्न पर मेरी
सहेली ने एक डिटेल उत्तर दिया |
  टीचर ने
उसे
  कुछ अलग हट कर सोचने के लिए
प्रोत्साहित करने के स्थान पर उससे
  कहा ,
आपको बहुत ज्यादा आता है , मुझसे भी ज्यादा आता है, तो मेरे स्थान पर आ कर दिखाना
… वो सहेली आज डिग्री कॉलेज में पढ़ाती है | यकीनन वो उनके स्थान पर आ गयी है ,
क्योंकि वो भी नए उत्तरों को प्रोत्साहित नहीं करती है |
 

केवल पुस्तकीय ज्ञान से नहीं होगा बच्चे का सम्पूर्ण विकास 

  
हम अपने बच्चों को याद करने और नंबर लाने में इतना उलझा देते
हैं कि १२ th तक बच्चों ने बैंक नहीं देखा , उन्हें बीज बोना , पौधे उगाना नहीं
आता , दुकान पर जा कर सामान  खरीदना नहीं आता | इसे बच्चों का सर्वांगीण विकास
 नहीं कह सकते | कुछ माता –पिता जो ये सब सिखाते
है उन्होंने भी पढाई का प्रेशर कम नहीं किया है | उन्हें लगता है कि बच्चा ये सब
सीखने के साथ एक –एक लाइन रटा हुआ उत्तर भी दे , ऐसे में बच्चे खुद को मशीन सा
अनुभव करने लगते हैं |जो उनके शारीरिक स्वास्थ्य पर असर डालता है|

 छोटे शहरों में हालत बहुत ख़राब है | अंग्रेजी का भूत वहां लोगों के सर
पर सवार है | वो अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों  में पढाना  चाहते हैं , उसके लिए वो
मोटी फीस भी दे रहे हैं पर दुर्भाग्य से ज्यादातर टीचर्स को स्वयं ही अंग्रेजी
नहीं आती | वो बच्चों को गलत अंग्रेजी पढ़ा रहे हैं | छोटे शहरों के बच्चे हिंदी को
छोटी नज़र से देखने के सामाजिक दवाब के कारण न तो सही हिंदी सीख पा रहे हैं न सहीं
अंग्रेजी … यानी हम अभी भी भारत को क्लर्कों का देश बनाने पर तुले हुए हैं |

माता -पिता कर रहे हैं बच्चों का क्राफ्ट वर्क  


अगर आप का बच्चा स्कूल में पढता है तो आप को पता होगा कि ज्यादतर  बच्चों का क्राफ्ट का वर्क कौन करता है ? ज्यादातर बच्चों का क्राफ्ट
का वर्क उनके माता –पिता या बड़े भाई बहन करते हैं | अगर ये न कर सके तो हर शहर में
ऐसे दुकाने खुली हैं जो बच्चों के
  क्राफ्ट
वर्क पैसे ले कर तैयार कर देते हैं | आखिर क्यों ऐसा होता है ? उत्तर साफ है …
बच्चों की अनगढ़ कलात्मकता स्कूलों में नहीं चलेगी | नर्सरी के बच्चे से परफेक्ट
डिजाइन की उम्मीद है ताकि टीचर और स्कूल की वाहवाही हो , बच्चे की कलात्मक
रचनात्मकता शैशव अवस्था में ही दम तोड़ दे तो क्या फर्क  पड़ता है |

हम विकास में क्यों पिछड़ रहे हैं ?

एक आम अमेरिकन बच्चा अपने कपडे धो लेता हैं , फील्ड वर्क कर लेता है
,मशीन सुधार लेता है , बागवानी कर लेता है | जबकि आम भारतीय बच्चा सिर्फ पढता है |
ये सारे काम घर वाले उसके लिए कर देते हैं | कुछ नया घर वाले नहीं सीखने देते ,
स्कूल वाले  सीखने नहीं देते , फिर बच्चा सीखे  कहाँ से ? धीरे –धीरे उसमें कुछ नया
करने की सीखने की इच्छा हही खत्म हो  जाती है | अगर कहा जाए कि घर और स्कूल दोनों मिल कर बच्चे की
रचनात्मकता का कत्ल कर रहे हैं तो अतिश्योक्ति नहीं होगी |

दुर्भाग्य की बात है की हमारी शिक्षा केवल पढ़े लिखे बेरोजगार तैयार कर रही है | अभी कुछ समय
पहले एक चपरासी की नौकरी निकली थी  उसका फॉर्म भरने वाले में पी एच डी और एम बी ए
भी थे | एक तो वैसे रोजगार कम हैं  … उस पर भी सब को सरकारी नौकरी चाहिए | इसका कारण देश सेवा नहीं रचनात्मकता का आभाव है | सरकारी नौकरी पाने के बाद कुछ नया सीखने की जरूरत ही खत्म हो जाती है | लकीर पर चलना है क्योंकि फ़ाइल यहाँ से वहाँ -वहाँ से वहाँ जानी है | अगर किसी ने कुछ अलग हट कर करने की कोशिश की तो वही  बचपन वाला हाल …” खुद को बहुत जयादा होशियार समझते हो “फर्क बस इतना है कि  पहले ये बात टीचर ने कही थी अब बॉस कह रहा है | प्राइवेट सेक्टर में भी  हमारे डिग्री धारकों  को
 नौकरी की कमी है क्योंकि हमारे  पप्पू के पास डिग्री है  पर उसे एप्लीकेशन लिखना नहीं आता , ठीक से फॉर्म भरना नहीं आता , हिंदी शुद्ध  नहीं है , अंग्रेजी अधकचरी है | इसी कारण डिग्री धारी  बेरोजगारों का प्रतिशत बढ़ता जाता है | 

इससे बेहतर थी गुरुकुल प्रणाली 


                          अगर हम प्राचीन भारत की गुरुकुल प्रणाली की आज की शिक्षा से तुलना करें तो वह इससे बेहतर थी | क्योंकि तब बच्चों को शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्रों की शिक्षा भी दी जाती थी , उनका आध्यात्मिक विकास  भी कराया जाता था , उनको पेड़ लगाना , खेती करना भी सिखाया जाता था , पशु पालना दूध दुहना भी सिखाया जाता था व् उनके शारीर को भी योग व् व्यायाम द्वारा मजबूत किया जाता था | जब बच्चा गुरुकुल से पढ़कर निकलता था तो वो आज के बच्चे की तुलना में हर क्षेत्र में ज्यादा ज्ञान रखता था | 

                 अंत में  बच्चे हमारे हैं और उनके बारे में सोचना भी हमारा ही काम है | एप्पल के co-founder Wozniak की बात भले ही बुरी लग रही हो पर उस पर आँख मूँद कर उसे नकार देने से समस्या तो खत्म नहीं हो जायेगी | अगर हम चाहते हैं कि हमारे बच्चों की रचनात्मकता का विकास हो तो ये पहल हमें स्कूलों के साथ मिल कर करनी होगी तभी हम दावे से कह पायेंगे Wozniak जी अबकी जब आप भारत आयेंगे तो आप को सुर बदले हुए मिलेंगे | 

वंदना बाजपेयी 



खराब रिजल्ट आने पर बच्चों को कैसे रखे पॉजिटिव


आपको आपको  लेख  क्या हम  बच्चों में रचनात्मकता विकसित कर रहे हैं ? कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |   
filed under- creativity, creativity in children, developing  creativity

2 thoughts on “क्या हम बच्चों में रचनात्मकता विकसित कर रहे हैं ?”

  1. वंदना जी,सच्चाई यहीं है कि आज हमारे बच्चे सिर्फ मार्क्स और डिग्री के लिए पढ़ रहे हैं। ऐसा लगता हैं कि असल में पढ़ाई कोई करना ही नहीं चाहता। विचारणीय आलेख।

    Reply

Leave a Comment