किसान और शिवजी का वरदान /kisan aur shivji ka vardan

                                           

किसान और शिवजी का वरदान

 एक किसान था | वो बड़ी मेहनत से खेती करता पर फसल उसकी इच्छा के अनुरूप  नहीं होती थी | कभी बारिश कम होती , कभी ज्यादा , कभी गर्मी ज्यादा कभी कम | किसान परेशांन रहता | एक दिन उसने सोचा कि अपनी शिकायत भगवान् शिव से की जाए | आखिर ये दुनिया वही  तो चला रहे हैं , फिर उन्हें इतनी समझ नहीं आई कि प्रकृति किसान के अनुसार होनी चाहिए आखिर किसान खेती करते हैं उन्हें फसल उगानी होती है तो धूप  , पानी , बादल किसान की मर्जी पर चलने चाहिए |

ऐसा सोच कर वो भगवान् शिव के पास गया | उसने भगवान् से कहा ,” प्रभु आप तो साधू सन्यासी आदमी , आप को क्या पता की  खेती कैसे करते हैं , ये तो किसानों को पता है | फिर भी आप ने प्रकृति का सारा उत्तरदायित्व अपने हाथ में ले लिया है | उससे ही सब गड़बड़ हो गयी | जब हमें धूप  चाहिए होती है तो बादल बरसते हैं और जब बादल चाहिए होते हैं तो धूप  खिल जाती है | ऐसे तो हमारा खेती करना मुश्किल हो रहा है | ऐसा करिए आप  प्रकृति का नियंत्रण हमारे हाथ में दे दीजिये |

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भगवान् शिव उस समय खुश थे | उन्होंने कहा ,  ” तथास्तु |

किसान ख़ुशी ख़ुशी घर आया |  अगले दिन वो खेत पर गया | उसने बादलों को बुला कर कहा ,  ” बरसो “

बादल बरसने लगे |

किसान ने जब देखा की जमीन में पर्याप्त पानी भर गया है तो उसने बादलों को कहा , ” रुको , बादलों ने बरसना बंद कर दिया |

अब किसान ने खेत की जुताई की | बीज बोये | किसान ने कहा धूप  और सूरज चमक उठा |

अगले दिन किसान खेत देखने गया | बहुत तेज धूप खिली हुई थी | किसान को कुछ असुविधा हुई , उसने कहा बादल और बादल छा गए उसने आराम से खेत में काम किया | कहने का मतलब ये था कि वो आराम से अपनी मर्जी के अनुसार धूप और पानी को लाता |

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उस साल उसकी मक्के की फसल बहुत अच्छी हुई | खूब ऊँचे – ऊँचे पेड़ पर मक्के भी बहुत लगे थे | किसान बहुत खुश था | वो मन ही मन सोचता देखा , भगवान् ही सब गड़बड़ कर रहे थे | मेरे हिसाब से प्रकृति चली तो सब ठीक हो गया | फसल भी अच्छी हुई |

जिस दिन फसल काटने का समय था | किसान नहा धो कर केट पर पहुँचा | उसने भुट्टे को देखा , उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा | उसमें सारे दाने छोटे व् अविकसित थे | किसान का सर चकरा गया  | ये कैसे हो सकता है | बादल , वर्षा धूप सब तो उसके नियंत्रण में थी , फिर दाने अविकसित कैसे रह गए |

किसान ने निश्चय किया कि वो अपने प्रश्न का उत्तर ईश्वर से अवश्य लेगा | वो भगवान् शिव के पास पहुंचा | शिव जी उस समय समाधी लगाये हुए थे | किसान ने वहीँ रुक कर इंतज़ार करने का निश्चय किया |आखिर उसे अपने प्रश्न  का उत्तर तो चाहिए ही था |  वर्षों बीत गए | किसान के खेत भी सूख गए पर वो वही अपने प्रश्न के उत्तर का इंतज़ार करता रहा |

आखिरकार भगवान् शिव ने आँखें खोली | उसके वहां आने का प्रयोजन पूंछा | किसान ने साड़ी बात कह दी |

भगवान् शिव मुस्कुरा कर बोले ,” तुम्हारे हाथ में प्रकृति थी | तुमने उतनी ही धूप , वर्षा , छाया की जितनी पौधों को जरूरत थी | पौधे निश्चिन्त हो गए | उन्हें लगा उन्हें तो पानी आसानी से मिल रहा है तो जड़ों को नीचे और नीचे ले जाने की मेहनत क्यों की जाए | उसी वजह से पौधों को पोषक तत्व कम मिल पाए और उनके दाने अविकसित ही रह गए |

मित्रों , जीवन की कठनाइयां जीवन को बेहतर बनाने के लिए होती है | कठनाई रहित जीवन हमें कहीं सुविधायें तो देता है पर हमारा विकास रोक देता है

अटूट बंधन परिवार

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