समय पर निर्णय का महत्व

                         

समय पर निर्णय का महत्व

क्या आप के साथ ऐसा होता है कि आप समझ रहे हैं की आप का वजन बढ़ रहा है पर आप ऑयली डाईट से हेल्दी डाईट पर शिफ्ट नहीं हो पा रहे हैं | आप का कोई रिश्ता इस लायक नहीं है कि उसे झेला जाए पर आप उसे झेल रहे हैं जबकि आप का मानसिक स्वास्थ्य रोज बिगड़ रहा है | आप को कोई जरूरी काम करना है पर आप आज कल पर टाल रहे हैं |  जब आप कहते हैं अब  बस … बहुत हुआ अब सही समय पर सब काम करेंगे तब तक बहुत देर हो चुकी होती है |

समय पर निर्णय का महत्व 

एक बार की बात है एक गैस के बर्नर पर एक बहुत बड़ा पानी से भरा भगौना रखा था |एक मेंढक जो किचन के पास लॉन में फुदक रहा था | फुदकते -फुदकते किचन में चला आया | किचन में वो उस पानी के भगौने में कूद गया जो गैस बर्नर पर रखा था | मेंढक को पानी में छप -छप करने में बहुत मज़ा आ रहा था | वो काफी देर तक खेलता रहा , फिर उसे हल्की सीझपकी आ गयी |

तभी किचन में रसोइया आया उसने मेंढक को देखे बिना ही गैस का बर्नर धीमी आंच पर ऑन कर दिया और दूसरे कामों के लिए किचन से बाहर चला गया | मेंढक को बढ़ते तापमान का अंदाजा हुआ तो उसने अपने शरीर के तापमान को भी उसके अनुसार बढ़ा लिया | थोड़ी देर में तापमान और बढ़ा , मेंढक ने फिर अपना तापमान बढ़ा लिया और पानी के तापमान से अनकुलन कर लिया , उससे सोचा सब ठीक है अब वो इस पानी में आराम से रह सकता है |

क्या आप घर से काम करते हैं

जब तापमान और बढ़ा तो भी मेंढक ने बाहर निकलने के स्थान पर अपना शारीरिक तापमान उसी बर्तन के पानी के तापमान के  अनुकूल कर लिया और आराम से पानी में तैरता रहा |

एक समय ऐसा आया कि तापमान इतना बढ़ गया कि वो अपने शरीर का तापमान उसके अनुकूल नहीं कर सकता था | लिहाज़ा उसने भगौने को छोड़ कर बाहर कूदने का प्रयास किया | परन्तु वो अपने प्रयास में असफल रहा क्योंकि उसने अपनी सारी ताकत  अपने शरीर का तापमान पानी के तापमान के अनुकूल बनाने में लगा दी थी | बाहर निकलने के लिए जिस ताकत की जरूरत थी अब वो उसमें नहीं थी | वो अपने प्रयास में विफल होता गया और पानी काताप्मान बढ़ता गया | एक समय ऐसा आया कि पानी का तापमान इतना बढ़ गया कि वो उसे सहन नहीं कर पाया और उसकी मृत्यु हो गयी |

काश उसने समय कर पानी से बाहर निकलने का निर्णय ले लिया होता |

मित्रों ये सिर्फ उस मेंढक के साथ ही नहीं हुआ | हम सब जहाँ जिस परिस्थिति में हैं , ये समझते हुए भी कि आगे खतरा आ सकता है उसी में फंसे रहते हैं | बाहर निकलने का निर्णय नहीं लेते | धीरे -धीरे परिस्थितियाँ इतनी खराब हो जाती हैं  पर अब हम उन्हीं में फंस कर रह जाते हैं , बाहर निकल ही नहीं सकते व् वहीँ घुटते रहने को विवश होते हैं |

1) नीलम को मेडिकल की पढाई करने का मन नहीं था , पर पापा की इच्छा को ध्यान में रखते हुए उसने मेडिकल एंट्रेंस की तैयारी शुरू की | वो बहुत कोशिश करती रही कि उसका पढने में मन लगे , पर सेल्फ मोटिवेशन के आभाव में वो लगातार पिछडती ही रही | १२ के बोर्ड एग्जाम तक नौबत ये आई कि उसने एंट्रेंस देने से मना  किया , उसने कहा कि अब मैं एंट्रेंस नहीं दूँगी मैं सिर्फ १२ th तक की पढाई करुँगी ताकि मेरे १२ th बोर्ड में अच्छे नंबर आ जाएँ | तब तक उसके पिता के बहुत पैसे लग गए थे | उनको बहुत निराशा हुई , उनकी निराशा देख कर नीलम ने फिर फैसला बदला | लिहाज़ा उसके बोर्ड में बहुत कम नंबर आये और मेडिकल में भी सेलेक्शन नहीं हुआ , जिस कारण उसका कॉलेज में एडमिशन भी नहीं हो पाया | अगर वो पहले बता देते तो कम से कम वो किसी अच्छे कॉलेज से पढ़कर अपना ड्रीम जॉब टीचिंग पा सकती थी |

टेंशन को न दें अटेंशन

2)मृदुल जी के चेहरे पर छोटी सी गांठ उभर आई थी | वो तम्बाकू भी खाते थे इसलिए परिवार वालों ने उन्हें डॉक्टर को दिखाने  को कहा | मृदुल जी ने मना  कर दिया | उन्होंने कहा ,” देखो मैं हट्टा -कट्टा हूँ | एक गाँठ मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती | धीरे -धीरे गांठ थोड़ी बड़ी होती गयी , और मृदुल जी उसके साथ  अपने दैनिक स्वास्थ्य की तुलना करके उसकी अवहेलना करते रहे | बाद में अचानक गांठ इतनी तेजी से बढ़ी की डॉक्टर के पास जाने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं बचा | डॉक्टर ने टर्मिनल स्टेज कैंसर बताया | उसके ठीक दस दिन बाद उनकी मृत्यु हो गयी | अगर वो गाँठ के पड़ते ही डॉक्टर को दिखा लेते तो आज वह अपने परिवार के बीच होते |

3) कुछ लोग ख़राब शादी में केवल ये सोच कर टिके रहते हैं कि एक दिन सब अच्छा हो जाएगा | परन्तु परिस्थितियाँ बिगडती जाती हैं | जैसी रीना जी शुरू से ही समझ गयी थी कि शक्की पति के साथ निभाना मुश्किल है परन्तु वो इस  बात का इंतज़ार कर सहती रहीं की सब कुछ ठीक होगा | उन्होंने घर में खुद को कैद कर लिया पर पति का शक फिर भी नहीं गया | एक दिन पति ने शक के कारण उनकी हत्या कर दी | पति को जेल हो गयी व् दोनों बच्चे अनाथ हो कर सड़क पर आ गए |ये सच है की माता -पिता का तलाक होना बच्चों के लिए बुरा है पर उनका भयानक लड़ते झगड़ते रिश्ते में बने रहना और भी बुरा है | कई बार लोग खराब शादी से सिर्फ इसलिए नहीं निकलते कि बच्चों पर ख़राब असर पड़ेगा परन्तु स्थितियां इतनी ज्यादा बिगडती हैं कि बच्चों पर और भी ज्यादा बुरा असर पड़ता है |

                        कारण  बहुत से हो सकते हैं लेकिन परिणाम सबके दुखद ही होते हैं | ऐसा हमारे द्वारा बनायीं गयी लकीर या हमारे कम्फर्ट जोन के कारण होता है | जानते बूझते हुए भी जिसके बाहर हम निकलना ही  नहीं चाहते , और स्थिति बिगड़ जाती है | इसलिए  बेहतर है कि कोई भी निर्णय समय रहते लिया जाए , तभी उसका महत्व है |

ज्योति पाठक

यह भी पढ़ें …

संकल्प लो तो विकल्प न छोड़ो




समय पर काम शुरू करने के लिए अपनाइए 5 second rule


खुद को अतिव्यस्त दिखाने का मनोरोग


क्या आप अपनी मेंटल हेल्थ का ध्यान रखते हैं


आपको “समय पर निर्णय का महत्वकैसे लगा  अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको अटूट बंधन  की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम अटूट बंधनकी लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |

filed under- decision, right decision, decision on right time, comfort zone

1 thought on “समय पर निर्णय का महत्व”

  1. बहुत सुंदर और शिक्षाप्रद लेख और इसमें की सभी कहानीया बहुत सुंदर. समय निर्णय लेने की क्षमता हर किसी में होनी चाहियें वरना समय गुजरने के बाद पछताना पड़ता हैं.

    Reply

Leave a Comment