शुक्र मनाओ

शुक्र मनाओ

शुक्र मनाओ
शुक्र मनाओ कि आज तुम्हारी पूजा सफल हुई
बेटी लौट आई है
स्कूल से
जहाँ टाफी -चॉकलेट का लालच देकर
अ आ … इ ई सिखाते हुए
किसी टीचर ने नहीं खेला
उसके साथ बड़ों वाला ‘खेल ‘
नहीं लगाये हाथ
उसको यहाँ -वहाँ
शुक्र मानों की वो खेल रही है
आज भी गुडिया से

शुक्र मनाओ तुम भी
कि तुम्हारी बेटी लौट आई है
खेल के मैदान से
नहीं खींची गयी है
किसी झड़ी के पीछे
न ही उसने देखे हैं
बिना सींग वाले राक्षस
शुक्र मनाओ कि वो आज भी  खेल रही है
मिटटी के चूल्हे से

शुक्र मनाओ
हर सुबह की तुम्हारी बेटी
कर रही है स्कूल जाने की तैयारी
 इठला कर डाल रही है बस्ते  में किताबें
कि आज भी
उसे मामा , चाचा , भैया
लगते हैं
मामा ,चाचा , भैया
आज भी सलामत हैं उसके रिश्तों की परिभाषाएं
शुक्र मनाओ कि वो आज भी खेल रही है
घर -घर

शुक्र मनाओ
कि तुम आज भी जोड़ रही हो हाथ
बेटी की हिफाजत के लिए ईश्वर के आगे
जबकि कितनी माएं चीख  रहीं है
बेटी के क्षत -विक्षत शव के आगे
जो मिले हैं
कहीं खेत में , झड़ी के पीछे , मंदिर में
लहुलुहान से
जिन्हें वो प्यार से कहती थी बेटियाँ
दरिंदों को नज़र आई सिर्फ योनियाँ
खैर तुम शुक्र मनाओ ,
शुक्र मनाओ
शुक्र मनाओ
जब तक मन सकती हो बस तब तक
शुक्र मनाओ

सरबानी सेन गुप्ता 

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