रमेश जी का बेटा नितिन बहुत तेज बाइक चलाता था | रमेश जी अक्सर मना करते , ” बेटा इतनी तेज मत चलाया करो कहीं एक्सीडेंट न हो जाए | मेरी तो जान ही तुममें बसी रहती है | बेटा हँस कर उनकी बात टाल देता , ” अरे पिताजी , आप खामखाँ में डरते हैं, अब कोई साइकिल की तरह तो बाइक चलाएगा नहीं | फिर मैं तो सावधानी से चलाता हूँ | तेजी तो हमारी उम्र में होगी ही | अभी १९ का ही तो हूँ आप की तरह कैसे सोच सकता हूँ | रमेश जी उसकी इस बात पर निरुत्तर हो जाते |
एक दिन वही हुआ जिसका डर था | रमेश जी ऑफिस में काम कर रहे थे कि उनके पास वो दुखद फोन आया | फोन हॉस्पिटल से था | बेटे का एक्सीडेंट हो गया था , और वो हॉस्पिटल में भर्ती था | तुरंत ही ऑपरेशन होना जरूरी था | रमेश जी आनन् फानन में हॉस्पिटल भागे | बेटा ऑपरेशन थियेटर में था | अभी ऑपरेशन शुरू नहीं हुआ था क्योंकि हेड डॉक्टर अभी नहीं आये थे | ये सुन कर रमेश जी का दिमाग घूम गया | वो डॉक्टर को गालियाँ बकने लगे | सब डॉक्टर एक जैसे हैं , हराम की कमाई खाते हैं | मरीज का धयान नहीं , जिए या मरे , आप साहब बैठे होंगे क्लब में | अगर अपना बेटा मर रहा होता तो क्या इतनी लापरवाही दिखाते | इंसानियत तो है ही नहीं |
वो बडबडा ही रहा था की हेड डॉक्टर आ गए और तेजी से ऑपरेशन थियेटर में घुस गए | ऑपरेशन चार घंटे चला | नर्स ने आकर खबर दी की ऑपरेशन सफल हुआ आपका बेटा खतरे से बाहर है | रमेश जी जो इतनी देर से भगवान् का नाम जप रहे थे , ने चैन की सांस ली | फिर मन ही मन सोचा कि उस डॉक्टर का धन्यवाद करना चाहिए जिसने उसके बेटे की जान बचायी है | वो बेकार ही उन्हें कोस रहा था |
तभी हेड डॉक्टर ऑपरेशन थियेटर से बाहर निकले | इससे पहले की रमेश उन्हें धन्यवाद दे पाता , तीर की तरह बाहर चले गए | रमेश को उनका ये व्यवहार बहुत अहंकारी लगा | वो नर्स के पास जा कर कहने लगे , ” बड़े घमंडी हैं ये डॉक्टर साहब | माना की अपना काम सही कर दिया पर क्या दो मिनट मरीज के परिवार वालों को सांत्वना नहीं दे सकते थे? अगर अपना बेटा होता तो क्या ऐसे ही करते ?
नर्स रमेश जी की तरफ आश्चर्य से देखते हुए बोली , ” आपको नहीं पता ? आपके बेटे का जिस के साथ एक्सीडेंट हुआ है वो डॉक्टर साहब का ही लड़का है | आप का बेटा तो तेज गाडी चलाने के बाद भी बच गया पर डॉक्टर साहब का लड़का जो उसकी गाडीकी चपेट में आ गया , नहीं बच सका | वो अब उसी का क्रिया कर्म करने जा रहे हैं |
रमेश जी की आँखे छलक गयी और मुंह से बस इतना निकला , ” ओह , डॉक्टर साहब “|
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मित्रों हम अक्सर दूसरों के खिलाफ धरणा बना लेते हैं | पर ये जरूरी नहीं कि वोलोग वैसे ही हों | कभी -कभी मन अपने ही शब्दों के कारण आत्मग्लानी से भर उठता है |
अटूट बंधन परिवार
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