टूटती गृहस्थी की गूँज

दो लोग विवाह के बंधन में बंध एक प्यार भरी गृहस्थी की शुरुआत करते हैं | उनकी बगिया में उगा एक नन्हा फूल उन्हें और करीब ले आता है | फिर ऐसा क्या हो जाता है कि दूरियाँ बढ़ने लगती है | बसी -बसायी गृहस्थी टूटने लगती है … जिसकी गूँज दूर -दूर तक सुनाई पड़ने लगती है |




टूटती गृहस्थी की गूँज







टूटती गृहस्थी की गूँज

गुलाब एक मल्टीनेशनल कंम्पनी मे इंजीनियर के पद पर था। अच्छा पैकेज था। सब ओर खुशहाली थी। एकाएक कम्पनी ने छंटनी करनी शुरू कर दी। गुलाब भी इससे अछूता ना रह सका। तजुर्बेकार इंजीनियरो को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। गुलाब की गृहस्थी मे तूफान आ गया था। सब गडबडा गया था। नयी नौकरी मिलनी आसान नही थी वो भी मनपसन्द।। इन्टव्यू देता गुलाब पर कोई ना कोई कमी निकल आती। यूं ही हर दम खाली आते आते वह नकारात्मकता से घिरने लगा था। एक डर सा बैठने लगा था। प्रतिभाशाली होते हुऐ भी उसके भीतर एक डर घर कर गया था। दोस्तो की राय भी निराधार साबित हो रही थी। भगवान का ध्यान करता। पर चैन नही मिल रहा था। हर दम परेशान रहने लगा। खाने मे भी कुछ ना भाता,,, हां गुस्सा बढ चला था।। हरदम चिडचिडा सा रहता। अवसाद मे पडा पडा बुरा ही सोचता।




जब से कम्पनी ने रिलीव करदिया तब तो बस घर जाने की सोचता कम्पनी मे काम के वास्ते वो अपने घर से 200 किलोमीटर की दूरी पर किराये के मकान मे रह रहा था। अब कया करे? अब तो उसने अपना बैग उठाया और घर आ गया। जिन माता पिता को वो मिस कर रहा था उनसे मिलकर अपनी व्यथा बताकुछ सुकून पा गया था। इधर पत्नी अपनी नौकरी हेतु अपने मायके जाकर जम गयी थी। छह माह की छोटी बेटी इन दोनो सेअलग थलग पड़ गयी थी। वो दोनो की आंख की तारा थी पर इन हालातो मे वो नानी की गोद मे थी। चूकि पत्नी का मायका बीच शहर मे था। इसीलिये पत्नी को ज्यादा परेशानी नही थी। पर बिना नोकरी गुलाब क्या करता उस शहर मे? उसने पत्नी को भी अपने संग ले जाना चाहा पर ये क्या।,,,, उसने एक दम मना कर दिया।
गुलाब; -तुम चलो मेरे साथ
पत्नी :- मै कैसे चलूगी,, मेरी नौकरी है यहां।
गुलाब :- कौन सी पक्की नौकरी है? ऐसी तो वंहा भी मिल जायेगी।
पत्नी :- नही नहीमै बिल्कुल पंसन्द नही करती आपके परिवार को। ना मै वंहा गुजारा कर पाऊगी।
गुलाब:- मै यहां अकेला क्या करूंगा? खाली घर खाने को दोडता है मुझे?
पत्नी :- मुझे नही पता पर मै नही जाऊगी आपके साथ ये बात पक्की है।




छोटी सी फूल सी बेटी जिसे गुलाब खिलाना चाहता था संग रख प्यार देना चाहता था मजबूरी उसे छोड अपने घर लौट आया था। पर तनाव मे रहने लगा। पर पत्नी को कोई सरोकार ना था,,, उसे केवल अपनी इच्छाओ,, व आकांक्षो की फिक्र थी। ससुराल परिवार केलिये जो उसकी जिम्मेवारी थी,,, पति के लिये सहयोग भावना इन सब से दूर दू र तक कुछ लेना देना ना था।



जिस पति ने उसका इतना साथ दिया था अब जब उसे पत्नी की जरूरत थी एक अच्छी राय चाहिये थी मनोबल बढाने की। उस समय वो नही थी। वो चाहती थी मेरा पति भी अपने घर ना जाये यही रहे मुझे सहयोग दे। पर पुरूष, की ईगो नारी की ईगो पर भारी थी। अपनी बच्ची के बिना यहां भी मन नही लग रहा था पर वहां भी नही रूक सकता था क्योकि ससुराल वालो का हस्तक्षेप जारी था। माता पिता की शह मे पत्नी ने पति को छोड मायके के प्रति ज्यादा जवाबदेही थी। अपने लिये पत्नी की इस भावना ने गुलाब के दिल मे नफरत भर दी थी। उसे कोई फर्क नहीपढता था गुलाब की नौकरी लगी या नही। पत्नी के इस व्यवहार से गुलाब परेशान रहने लगा। कई बार वो चिल्ला कर कहता_ _मेरा तो औरत जात से ही विश्वास उठ चला है__ऐसी होती है पत्नी। पति मरे या जीये उसे फर्क ही नही पढता। मै अब ऐसी औरत के संग नही रह सकता। जिसे सिर्फ मेरे पैसे से प्यार था मुझसे नही।



इधर पत्नी मस्त थी अपने घर। उसने एक मास से एक फोन तक करके नही पूछा कि जॉब का क्या रहा?, इधर गुलाब पल पल टुट रहा था उसे अपनी टूटती गृहस्थी की गूंज साफ सुनाई दे रही थी जिसे वो टूटने नही देना चाहता था। वो चाहता था बस एक बार मेरी अच्छी सी नौकरी लग जाये वह सबकुछ ठीक हो जाये और मै फिर से उंचे मुकाम पर पहुंच जाऊ। इसी कशमकश मे घिरा, गुलाब फिर एक नये इन्टरव्यू की तैयारी मे जुट गया।।



रीतू गुलाटी


लेखिका





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1 thought on “टूटती गृहस्थी की गूँज”

  1. कहानी जैसे अचानक ही समाप्त हो जाती है बिना निष्कर्ष निकाले … ऐसे कई परिवार हो सकते हैं ओर कहानी में कोई न कोई दिशा या निर्णय हो तो अच्छा लगता है …

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