ईद का मुबारक मौका हो तो प्रियतमा अपने प्रिय की बाँट जोहती ही है और कहती है कि इस मौके पर तो कम से कम आ ही जाओ और इसे यादगार बना दो |
चूड़ियाँ ईद कहती है
कि अब चूड़ियाँ ईद कहती है।
भर लो बाँहो मे मुझे,
क्योंकि बहुत दिन हो गया,
किसी से कह नही सकती,
कि तुम्हारी हमसे दूरियाँ—-
अब ईद कहती है।
चले आओ———
कि अब चूड़ियाँ ईद कहती है।
सिहर उठती हूं तक के आईना,
इसी के सामने तो कहते थे मेरी चाँद मुझको,
तेरे न होने पे मै बिल्कुल अकेली हूं ,
कि चले आओ——–
अब बिस्तर की सिलवटे और तन्हाइयां ईद कहती है।
चले आओ———
कि अब चूड़ियाँ ईद कहती है।
@@@रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी।
जज कालोनी,मियाँपुर
जौनपुर(उत्तर-प्रदेश)।
सभी को ईद मुबारक
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