दो जून की रोटी

एक इंसान के जीने के लिए पहली आवश्यकता क्या है .. बस “दो जून रोटी ” उसका सारा संघर्ष इसी के इर्द गिर्द बिखरा पड़ा है | हृदयस्पर्शी कहानी …

दो जून की रोटी  

दो जून रोटी
बुआ जी के घर पर, सत्यनारायण कब आया, मुझे पता नहीं. जबसे होश संभाला, उसे बुआ जी के घर
के पीछे
,
भंडरिया में रहते हुए पाया. वह ईंट
, गारा उठाने की मजदूरी करता. सुबह और शाम को बुआ
जी के काम में थोड़ा-बहुत हाथ बंटा देता. उनकी हाट-बाजार कर देता. बुआ जी को माँ के
पास कोई खबर भेजनी होती तो वही लेकर आता. गोल चेहरा
, घुटा हुआ सर, धोती और कुरते पर अंगोछा डाले हुए; पैरों में सस्ते
स्लीपर- यही उसका हुलिया था. जाड़ों में कुरते के ऊपर
, सदरी चढ़ जाती. अंदर के कपड़े वह ऐसे पहनता, जिससे उसका शरीर
गदबदा लगता. उसे कपड़े लादे रहने का शौक था.


फूफा पंडिताई करते थे. उससे उन्हें जो कुछ भी मिलता, उसी से बुआ घर का
सारा खर्च चलातीं. वह बड़ी संतोषी जीव थीं. उन्होंने अपने मायके वालों से
, यानी हमारे घरवालों
से
, अपनी
किसी तकलीफ की
, कभी भी, कोई शिकायत नहीं की. किन्तु हमें मालूम था कि बुआ किस कठिनाई से भैया
को पढ़ा रही हैं.


सत्यनारायण जब भी हमारे घर आता , मेरी दोनों बड़ी बहनें, उसे किसी न किसी
बहाने से चिढ़ातीं. कभी कहतीं
, “सत्यनारायण, तूने इतने कपड़े क्यों पहन रखे हैं? तुझे गर्मी नहीं
लगती
?! नहाता
नहीं है क्या
??” वह हंसकर कहता, “अभी काम से आ रहा हूँ न इसलिए. माँ जी ने तुरंत
ही मुझे यहाँ भेज दिया
, कपड़े बदल ही नहीं पाया” 

कभी उसे वक्र दृष्टि से देखती हुई, गोल-गोल आँखें
नचाकर बोलतीं
, “सत्यनारायण जरा इधर तो आ.” फिर धीरे से आवाज को रहस्यमय बनाकर कहतीं,“देख सत्यनारायण, वह लाइनपार वाले
वैद्य जी हैं न
, त्रिभुवन शास्त्री जी; तू उनके पास चला जा, वह बहुत बढ़िया दवा देते हैं. उनके इलाज
से तेरे दाढ़ी-मूंछें निकल आयेंगी. शरीर में कोई कमी हो
, तभी ऐसा होता है.” और वह फिक्क से हंस
देता. कुछ दिनों से सत्यनारायण का भतीजा परमानन्द भी गाँव से आ गया था. वह उसी के
साथ रहकर
, मजूरी
करने लगा था.


समय यूँ ही सरक रहा था. देखते ही देखते भैया ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली
और उनका पी. सी. एस. में चयन हो गया. इसके साथ ही बुआ का सारा दलिद्दर(दरिद्रता)
भी दूर हो गया. उन्होंने बड़े उत्साह से भैया की शादी तय कर दी. शादी का सारा काम
फूफा और बुआ के साथ ही सत्यनारायण पर आ पड़ा. वह बहुत प्रसन्न था. दौड़- दौड़कर सारा
काम निपटा रहा था.

घर में शादी की चहल- पहल थी. अचानक ही सत्यनारायण और परमानन्द की तेज
आवाजें पड़ीं. वह लड़ते हुए
, एक दूसरे को धकियाते हुए भंडरिया से बाहर आ रहे
थे. परमानन्द कह रहा था
, “ठहर जनानी, अभी तेरी पोल-पट्टी खोलता हूँ. तू सारी दुनियां
की आँखों में धूल झोंक सकती है
, लेकिन मुझे तो तेरी असलियत मालूम है…तू मुझसे
पंगा लेने चली है! अगर तुझे दूध की मक्खी की तरह
, न निकलवा फेंका तो मेरा नाम भी परमानन्द
नहीं. तू अपने आप को समझती क्या है
?!” और सत्यनारायन रोते हुए कह रहा था, “जब ससुराल वालों
ने घर से निकाला था
, तब तेरे ही माँ-बाप के दरवाजे गयी थी, यह सोचकर कि माता- पिता नहीं तो क्या, भाई- भौजाई तो हैं; लेकिन तेरी माँ ने
बाहर से ही भगा दिया था कि कहीं दो जून की रोटी न देनी पड़ जाए. पर तुझे तो मैंने
अपने साथ रखा
, खिलाया-पिलाया. उसका यह बदला दिया है तूने! आखिर है तो उन्हीं माँ-
बाप की औलाद…सांप का संपोला!!”

चारों ओर भीड़ इकट्ठा हो गई थी. सारे नाते-रिश्तेदार, नौकर-चाकर आकर जमा
हो गये थे. तभी भीड़ में से एक आवाज आई
, “राम-राम, पंडित जी ने औरत रख छोड़ी है. क्या इतने
दिनों से इन्हें मालूम नहीं कि यह औरत है
?!” बुआ गरजीं, “ तुम क्या जानते हो? मुझे मालूम नहीं कि
यह औरत है
??
लेकिन मैंने उसे कभी यह एहसास नहीं होने दिया कि मुझे उसकी सच्चाई
मालूम है…मुझे पता है
, एक बिना पढ़ी-लिखी अकेली औरत का घर से बाहर निकलकर रोजी-रोटी कमाना, कितना कठिन और जीवट
का काम है! अगर वह चार रोटी
, अपनी मेहनत से कमाकर खा रही है तो तुम्हारे पेट
में मरोड़ें क्यों उठती हैं
?! रही पंडित जी की बात, तो उनकी चिन्ता करने की तुम लोगों को
जरूरत नहीं. उसके लिए मैं ही काफी हूँ. तुम सब चरित्र की क्या बातें करते हो
? मुझे मालूम नहीं कि
कौन कैसा है
? 


बताओ तो सही, इसने किसके साथ बेहयाई की है? किसी एक का भी नाम
बता दो
, जिसके
साथ मुंह काला किया हो….किसी का शांति से जीना भी तुम लोगों से देखा नहीं जाता
, यदि वह इंसान औरत
हो तब तो और भी नहीं! और तुम परमानंद…!! अभी अपना सामान उठाओ और यहाँ से चलते
बनो. अब कभी अपना मुंह मत दिखाना” फिर घूमकर सत्यनारायण से बोलीं
, “ अब जबकि तेरी
हकीकत खुल ही गयी है
, तुझे केवल दो जून की रोटी के लिए बाहर जाने की जरूरत नहीं है. घर में
बहुतेरा अन्न है. तू तो जानती है
, बाहर कितने बहेलिये, जाल बिछाए बैठे हैं!!” फिर बोलीं, “जाकर देख, हलवाई को किसी
सामान की जरूरत है या नहीं
?



सभी की निगाहें झुकी हुई थीं. धीरे- धीरे सब लोग तितर-बितर होकर, अपने कामों में
व्यस्त हो गये…और बुआ तो इस तरह काम में लगीं
, मानों कुछ हुआ ही न हो!!!

    उषा अवस्थी

लेखिका

लेखिका का परिचय 

नाम
– उषा अवस्थी
शिक्षा
– एम
.ए. मनोविज्ञान
             अतिरिक्त योग्यता – १- संगीत
प्रभाकर (सितार)
                                (अखिल भारतीय
गंधर्व महाविद्यालय)
                               २ – संगीत विशारद
(सितार)
         (प्रयाग समिति,
इलाहाबाद)
              कार्य अनुभव – सरस्वती बालिका
विद्यालय
, कानपुर में कुछ वर्षों तक अध्यापन कार्य


               विशेष –१- आकाशवाणी लखनऊ द्वारा
समय- समय पर (गृहलक्ष्मी कार्यक्रम में) 


कविताओं का प्रसारण (२१ अप्रैल २०१७ और १३
अक्तूबर २०१७ )



        
– राष्ट्रीय
पुस्तक मेले ( ११ से २० अगस्त २०१७) में कवियित्री सम्मेलन की अध्यक्षता
        
– दयानंद गर्ल्स
कॉलेज
, कानपुर के द्वारा वर्ष १९६१- ६२ में
सर्टिफिकेट ऑफ़ ऑनर
४ – डी. ए. वी. कॉलेज, कानपुर में
आयोजित पांचवे इंटर कॉलेजियेट यूथ- फेस्टिवल (१९६२) के तहत
,सितार
वादन में प्रथम स्थान   
                सम्प्रति –१- समिति सदस्य अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था लखनऊ
                २ – सदस्य भारतीय लेखिका परिषद, साहित्यिक संस्था, लखनऊ
                 प्रकाशित रचनाएँ- 

१- अभिव्यक्ति के कथा- संग्रह पलाश वन की बयार (सन २००५) में कहानी                प्रकाशित
                                 
२ – लखनऊ से
निकलने वाली
नामान्तर पत्रिका के अप्रैल २००५ अंक में
                                      कवितायेँ
प्रकाशित
    ३ – झाँसी से निकलने वाले
दैनिक पत्र
राष्ट्रबोध के ११-०४ -२००५ अंक में
कहानी प्रकाशित      
४- भावना- सन्देश त्रैमासिक (लखनऊ) के
जुलाई- २००५ अंक में कहानी प्रकाशित
५-      
दैनिक पत्र
दैनिक जागरण (लखनऊ)
, अंक १६-०२-२०१६ के वीथिका स्तम्भ में
लघुकथा प्रकाशित   
६-      
भारतीय लेखिका
परिषद कीपत्रिका
अपूर्वाके सन २०१६ व २०१७ के संस्करणों में क्रमशः
कविता एवं कहानी प्रकाशित
७-      
दैनिक पत्र
दैनिक जागरण (लखनऊ)
, अंक १४-०६-२०१७ में कविता प्रकाशित
८-      
विश्वविधायक साप्ताहिक
पत्र (लखनऊ)
, अंक १४-०६-२०१६ में कविता प्रकाशित
९-      
दैनिक पत्र
दैनिक जागरण (लखनऊ)
, अंक १७-०१-२०१७ में कविता प्रकाशित
१०-  
विश्वविधायक साप्ताहिक
पत्र (लखनऊ)
, अंक १५-०३-२०१७ में कहानी प्रकाशित
११-  
शुभ रश्मि मासिक
पत्रिका (लखनऊ) के नवम्बर एवं दिसम्बर २०१७ के अंकों में कवितायेँ प्रकाशित
१२-  
अभिव्यक्ति के
कहानी संग्रह
सांध्य
बेला

(सन २०१७) में कहानी प्रकाशित
१३-  
दैनिक पत्र
दैनिक जागरण (लखनऊ) के अंक ८-०१-२०१८ में कविता प्रकाशित
१४-  
दैनिक पत्र
दैनिक जागरण (लखनऊ) के अंक १८-०१-२०१८ में कविता प्रकाशित
१५-  
अभिव्यक्ति संस्था के कहानी संग्रह उमंग
(२०१८) में कहानी प्रकाशित
पत्राचार का पता-
उषा अवस्थी,
गोमती नगर- २२६०१०

यह भी पढ़ें ……

ब्याह -कहानी वंदना गुप्ता


ढिंगली


बेबस बुढ़ापा


अंतिम इच्छा

आपको     दो जून की रोटी   कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |

filed under:  stories, Hindi stories, stories in Hindi, roti,Meal

1 thought on “दो जून की रोटी”

  1. बहुत ही बढ़िया कहानी है, शुक्र हो उस बुआजी का जिन्होने इतना बड़ा कदम उठाया की पहले तो सत्यनारायण को भी कभी पता ना चलने दिया जिससे उसे एसा ना लगे की वो उस पर एहसान कर रही है, ओर बाद मे भी उसका साथ देने के लिए |

    Reply

Leave a Comment