किसी का आगमन तो किसी का प्रस्थान ये जीवन का शाश्वत नियम है | प्रात : सुंदरी सूर्य की रश्मियों के रथ पर बैठ कर जब आती है तो संध्या को खिलने वाले फूल कुम्हला जाते हैं और दीपक धुंधले पड़ जाते हैं | आईये पढ़ें प्रकृति का मनोहारी वर्णन करती हुई कविता …
फूल गए कुम्हला
फूल गए कुम्हला , साँझ के
दीप गए धुंधला
फूल गए कुम्हला
देव भास्कर का सारथि
आरुण रथ ले आया
अंधकार डूबा , पूरब में
है प्रकाश झाँका
फूल- – – –
नव किरणें संदेश बिखेरें
सुप्रभात आया
भानु बढ़ रहे लेकर रथ
अब , नव प्रकाश छाया
फूल- – – –
प्रात कुमुदिनी , सकुचाई
खिली कमलिनी पाँत
भ्रमर कर रहे मधुमय गुंजन
ज्योति भरे आकाश
फूल गए कुम्हला , साँझ के
दीप गए धुंथला
फूल गए कुम्हला
मौलिक एवं स्वरचित
उषा अवस्थी
विराम खण्ड,
गोमती नगर, लखनऊ (उ0 प्र)
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बेहद खूबसूरत रचना