मतलब

लघु कथा -मतलब

सुनो , “ये करवाचौथ के क्या ढकोसले पाल रखे हैं तुमने ?”

कहीं व्रत रखने से भी कभी किसी की उम्र बढ़ी है ?
रहोगी तुम गंवार ही , आज जमाना कहाँ से कहाँ पहुँच गया है , और तुम वही पुराने ज़माने की औरतों की तरह ….इतनी हिम्मत तो होनी चाहिए ना कि परम्परा तोड़ सको |”

हर साल तुम्हें समझाता हूँ पर तुम्हारे कानों पर जूं  भी नहीं रेंगती |

हर साल करवाचौथ पर गुस्सा करवा -करवा कर तुम मेरी उम्र घटवाती हो , देखना एक दिन मैं  यूँही चीखते -चिल्लाते  चला जाऊँगा भगवान् के घर ….फिर रह जायेंगे तुम्हारे सारे ताम -झाम , नहीं मानेगा करवाचौथ इस घर में |

हर बार की तरह दीनानाथ जी के कटु वचनों से मंजुला घायल हो गयी | आँसू पोछते हुए बोली , ” भगवान् के लिए आज के दिन शुभ -शुभ बोलो ,मेरी सारी  पूजा लग जाए,तुम्हारी उम्र  चाँद सितारों जितनी हो | माना की तुम्हें परम्परा में विश्वास नहीं है पर मेरी इसमें आस्था है …. तुम कुछ भी कहो इस घर में करवाचौथ हमेशा ऐसे ही पूरे विधि विधान से मनेगा |”

ओह इस मूर्ख औरत को समझाना व्यर्थ है , जब मैं नहीं रहूँगा तो खुद ही अक्ल आ जायेगी | तब नहीं मनेगा इस घर में करवाचौथ |

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रात को चाँद अपने शबाब पर था | हर छत पर ब्याह्तायें सज धज कर अपने पति के साथ चलनी से चाँद का दीदार कर रहीं थीं |

दीनानाथ जी ने पीछे मुड़ कर अपनी छत पर नज़र डाली | ना वहां चलनी थी , ना दीपक , ना चाँद के इंतज़ार को उत्सुक आँखे |

चार साल हो गए मंजुला को तारों के पास गए हुए , तब से इस घर में करवाचौथ नहीं मना | हमेशा करवाचौथ को अपनी उम्र से जोड़कर देखने वाले दीनानाथ जी ने आंसूं पोछते हुए कहा ,”वापस आ जाओ मंजुला अब कभी  नहीं कहूँगा करवाचौथ ना मनाने को | नादान था मैं हर करवाचौथ को तुम्हारा दिल दुखाता रहा …नहीं पता था कि इस घर में करवाचौथ ना मनने का मतलब ये भी हो सकता है |

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नीलम गुप्ता
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