टूटते और बनते रिश्तों के बीच आधुनिक समय में स्वार्थ प्रेम पर हावी हो गया , अब लोग रिश्तों को सुविधानुसार कपड़ों की तरह बदल लेते हैं …
कविता -रिश्ते तो कपडे हैं
आधुनिक जमाने में
रिश्ते तो कपड़े हैं
नित्य नई डिज़ाइन,
की तरह बदलते हैं
नया पहन लो
पुराने को त्याग दो
मन जब भी भर जाए
खूँटी पर टाँग दो
यदि कार्य बनता है
तो नाता जोड़ लो
काम निकल जाए
तो घूरे पर फेंक दो
उषा अवस्थी
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बहुत सुंदर।
कड़वी सच्चाई को इंगित करती हृदयस्पर्शी रचना ।
उषा जी, बहुत सुंदर और वास्तविकता से भरी रचना. आज कल रिश्ते इसी तरह के होते हैं उन में प्यार होता ही नहीं हैं.
very realistic, it’s the truth of today’s generation.