दादी कानपुर वाली …. प्रस्तुत है पहली कड़ी …
दादी कानपुर वाली -दादी और फोटो शूट
हम दादी बोल रहे हैं कानपुर से … अरे वही रिया की दादी … पहचानी की नाही , वही दिल्ली वाली रिया की दादी …. अब तो पहिचान ही गयी हुइयो |
तो बतावे लायक बात ई है कि अभी हम कानपुर गए राहे शादी में शामिल होंये का | शादी हमरे परिवार की राहे , उही का हालचाल बतावे की धुकधुकी मन मा लगी राहे तो सोचा कि कही डाले , अब बूढ़े आदमी का का भरोसा , का पता कब भगवान् का बुलावा आ जाई और हमारी बात हमरे जी मा ही रह जाई | वो कहत हैं ना कि ओही कि खातिर बार -बार जन्म लें को पड़त हैं | अब हम तो चाहित है छुटकारा ई बार -बार के जन्म मरण से , तो सोची की बता ही दें |
तो बात दरअसल ई है बबुआ कि ये जो आजकल शादी ब्याह में फोटो खींचत हैं ना उ हमको तनिको नाहीं सुहात हैं | ऊ स्टेज पर ही दूल्हा -दुल्हन को ऐसे सटा के बिठा देत हैं कि लाजें से आँखे झुक जात हैं | ऊपर बार -बार कहत हैं अब हाथ पकड़ के फोटो खिचाव , अब गले में बाहें डाल के खिचाव , अब कंधे पे सर रख के खिचाव , और दूनो जैनों, माने कि दूल्हा दुल्हन खी -खी करत खिचात राहत हैं | हम बड़े बुजर्गन का तनिको संकोच नाही रह गया है | पहिले का जमाना का भला था | बुजर्गन की आशीर्वाद देत भये फोटो खिचत थी | अब काहे का आशीर्वाद , बुजर्गन को तो स्टेज पर चढ़ीबे का मौका ही नाहीं मिलता है , आशीर्वाद का दें |
हमहूँ मुन्ना की शादी किये राहे तब तो सबका एक -एक करी के बड़ी इज्ज़त देई -देई के स्टेजवा पर बुलात थे , स्टेज पर बुलाई जान वाली महरारु अइसन लजात थीं की मानो उनही का बियाह हो रहा हुई | अरे मुन्ना की शादी में पप्पू की अम्माँ को दुई बार बुलाये रहे , वो लजात हि राही और हम उके बाद भूले गयी, का है काम काज में काम भी बहुत होत हैं , फिर तो अइसन नाराज़ भइ की चार साल तक बातहू ना कीन्ह रहीं , पप्पू की शादी मा भी मुँह लुकाय -लुकाय डोलत रहीं |
पर आज का बाल बच्चा समझदार हैं | जानत है स्टेज पर तो फोटो शूट चलिहे , तो आपन -आपन मोबाइल से दुई चार लोगन के साथ आपन फोटू खीच के खुदही रख लेत है | सही है इत्ता -महंगा कपड़ा पहिनो , तरह -तरह की डिजाइन बनाय के साज श्रृंगार करो और फोटू एकहू ना आय तो का फायदा | हमहूँ को मुन्ना की बहु दुई हज़ार की धोती खरीद के दीन रही , सब ऊँच -नीच भी समझाय दीन रही , मोबाइल से फोटो भी खींच दींन रही |
फिर भी तुम लोग तो जानत हइयो कि परंपरा भी कोई चीज होत है , तो आशीर्वाद की परंपरा राखिबे की खातिर हमहूँ स्टेज पर चढ़ने की कोशिश कीं राहे , अब तुम सब जानत हुइयो कि ई उमर मा घुटन्वा कितना पिरात हैं , काहे की कोई न कोई बुजुर्ग तो रहिबे करी तुम्हार लोगन का घर मा | तो जब हम घुटना पकड़ के चढ़ीबे की कोशीश करत राहीं तो ऊ फोटो ग्राफर हम का ऐसन घूरन कि लागन लाग कि अबैहे कच्चा ही चबा जाहिए | तो हम तो भईया तुरंत ही जाई के आपन सीट पर दुबक गए | अब ईहे दशा रह गयी है बुजर्गन की , रोटी खाओ और राम भजो , बोलो कछु नाहीं |
चलो ऊ भी छोड़ दे तो एक बात तो कहे बिना हमसे ना रहा जाई , ई जो तुम लोग का काहत हो , अरे उही शादी के पहले की फोटो खीचन को ….उ प्री वेल्डिंग फोटो शूट , उको सभी बरात -जनात के सामने अइसन बड़ा सा टी वी में दिखात हो कि जी मा धुकधुकी होन लागत है कि सबै कुछ तो खींच डाल तो अब ई वरमाला -अर्माला की जरूरत का रह गयी | अरे ऊ फोटो खिचन वाले को तो फोटो खींचन वाले का तो पैसा मिलत है , उ का बस चले तो शादी के बाद के सारे कार्यक्रम भी स्टेजवा पर मनवा दे | राम -राम , एक हमरा जमाना था , शादी के दुई साल बीत गए मुन्ना की अम्माँ भी बन गए पर मजाल है कि मुन्ना के बाबूजी का चेहरा भी ठीक से देखा हो | अरे सभ्यता संस्कार भी कौन्हो चीज होत है की नाहीं |
हमने तो अपने जी की कह ली , अब समझना तो तुम्हीं लोगन का है | अब ज्यादा बात करन का टेम नहीं है अपने पास , ऊ का है ना अभी दूसरी शादी मा भी जाना है , ई भी घरही की है | अब जाने से पहिले घुटनों की मालिश भी तो करी के पड़ी | वो का है कि आजकल ऊ डी जे पर बुजुर्गन को भी तो नचा देत हैं | पिछली बार सब बहुअन ने मिल के नचवा दीन ,ऊ झिन , झिन , झिन , झिन पे , तो ई बार थोड़ी तैयारी से जईये | का है की जमाना बदल रहा है ना तो बुजुर्गंन को भी बदलना पड़त है | है की नाही
चलो , खूब खुश रहो , मौज करो |
वंदना बाजपेयी
यह भी पढ़ें …….
वन्दना जी बड़ी रोचकता से सीधी सच्ची खरी खरी बातें कहानी के माध्यम से कहीं हैं । बहुत खूब…..,
वर्तमान स्थिति का बहुत ही सुंदर वर्णन।
वाह उम्दा अलग पहचान बनाती प्रस्तुति।
वाह्ह्ह…. वाह्ह्ह…. बेहद सुंदर कहानी…बहुत-बहुत अच्छी लगी….👌👌