आज फुर्सत किसके पास है , हर कोई भाग रहा है …तेज , और तेज , लेकिन इस भागने में , अपने अहंकार की तुष्टि में , ना जाने कितने मासूम पलों को खोता जाता है जो वास्तव में जिंदगी हैं … तभी तो ज्ञानी कहते हैं …
कविता -जरा धीरे चलो
जिन्दगी थोड़ा ठहर जाओ
जरा धीरे चलो
तेज इस रफ्तार से
घात से प्रतिघात से
वक्त रहते , सम्भल जाओ
जरा धीरे चलो
जिन्दगी – – – –
कामना के ज्वार में
मान के अधिभार में
डूबने से बच , उबर जाओ
जरा धीरे चलो
जिन्दगी – – – –
शब्दाडम्बरों के
उत्तरों प्रत्युत्तरों के
जाल से बच कर , निकल जाओ
जरा धीरे चलो
जिन्दगी – – – –
ऊषा अवस्थी
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A very good n important msg
Yes the poem wants us to slow down n reflect on life ratherror than join the rat race that others are running to go ahead. Deepak Sharma