माँ के जेवर

लघुकथा -माँ के जेवर

बचपन में जो बेटे माँ मेरी माँ मेरी कह कर झगड़ते थे वही बड़े होने पर माँ तेरी , माँ तेरी ख कर झगड़ते हैं | ऐसी ही एक माँ थी फुलेश्वरी देवी जिसकी सेवा सिर्फ छोटा बेटा ही करता था | फिर भी बड़े बेटे  का फरमान था कि सेवा भले ही छोटा बेटा  कर रहा हो पर माँ के जेवर आधे उसे भी मिलने चाहिए | माँ उसकी इस बात से हताश होती पर उसने भी अपने जेवरों के अनोखे बंटवारे का फैसला कर लिया |

लघुकथा -माँ के जेवर 

माँ , फुलेश्वरी देवी ,  कम्बल से अपना मुँह ढककर लेटी थी | नींद तो उसकी बहुत पहले खुल गयी थी, पर दोनों बेटों  की बहस सुन रही थी | बहस उसी को लेकर हो रही थी |

बड़े भाई छोटे भाई से क्रोध में कह रहा था  ,” देखो , ये सेवा -एव का नाटक ना करो | मुझे पता है तुम माँ की जेवर  के लिए ये सब कर रहे हो | लेकिन कान खोल कर सुन लो , माँ जेवर हम दोनों में आधे -आधे  बंटेंगे | एक नाक की कील भी ज्यादा मैं तुमको नहीं लेने दूंगा |”

छोटा भी बोला ,” अगर आप को लगता है कि मं इस लिए सेवा कर रहा हूँ कि माँ के जेवर हड़प लूँ , तो आप ले जाइए माँ को अपने साथ , करिए सेवा और रखिये साथ , फिर सारे जेवर आप ही रख लीजियेगा , मुझे एक भी नहीं चाहिए |”

बड़े भाई ने बात काटते हुए कहा ,” वाह बेटा ! वाह इसमें सेवा की बात कहाँ आ गयी | जेवर के बहाने  तुम माँ का भार  मेरे ऊपर डालना चाहते हो | माँ इतने समय से तुमहारे  साथ रह रही है , उसको अगर मैं ले जाउंगा तो उसे वहाँ अच्छा नहीं लगेगा | मेरे बच्चे भी बड़े हो गए हैं , वो भी अपनी पढाई में व्यस्त रहते हैं , माँ दो बातों को तरस जायेंगी | तुम्हारे बच्चे तो अभी छोटे हैं , माँ से दुबक सोते हैं , तुम्हारी पत्नी को भी आराम मिल जाता है , घडी दो घडी का | इसलिए माँ को तुम अपने ही पास रखो , पर जेवर में मुझे भी हिस्सा चाहिए |

छोटा भाई बोला ,” मैं तो बस आपके मन की टोह लेने के लिए ऐसा कह रहा था | माँ कहीं नहीं जायेंगी वो हमारे साथ ही रहेंगी | आपको हो ना हो मुझको तो अहसास है कि बचपन में माँ ने इससे ज्यादा सेवा की थी | आप जाइए जेवर के पीछे , और अभी जोर -जोर से मत चिल्लाइये , माँ जाग जायेंगी तो उन्हें बुरा लगेगा |

बड़ा भाई – हाँ , हाँ जा रहा हूँ , जा रहा हूँ , पर जेवर की बात ना भुलाना  |

बड़ा भाई चला गया |छोटा भाई माँ के कमरे में जाकर देखता है , कि माँ ने सुन न लिया हो उन्हें दुःख होगा |माँ को सोते देख वो चैन की सांस लेता है, फिर अपनी पत्नी को बुलातेहुए कहता है की ध्यन रखना माँ को भैया की बात न पता चले | पत्नी हाँ में सर हिला देती है |

माँ की आँखों में आसूँ है | उसे पता कि छोटा बेटा बहु उसकी सेवा करते हैं , दिल से करते हैं , उन्हें पैसे का लालच नहीं है | बड़ा बेटा उसे कभी दो रोटी  को भी नहीं पूछता | जब देखो तब लड़ने चला आता है | उसे माँ से प्यार नहीं , जेवरों से प्यार है | बड़ा बेटा उसकी भी कहाँ सुनता है | हर बार जब भी तू -तू, मैं मैं होती है वो बड़े से तो कुछ नहीं कह पाती , छोटे को ही समझा बुझा कर शांत कर देती है ताकी घर में शांति बनी रहे |

…………………

तीन वर्ष ऐसे ही बीत गए | बार – बार हॉस्पिटल  जाना , आना लगा रहता | कभी -कभी कई  दिनों के लिए भी बीमार पड़ती | छोटा बेटा और बहु दौड़ -दौड़ कर सेवा करते | एक बार माँ को मैसिव हार्ट अटैक पड़ा | बचने की उम्मीद कम थी , बस साँसों की डोर थमी थी | सब रिश्तेदार आ कर देख के जा रहे थे | एक दिन अस्पताल में उन्हें देखने उनकी छोटी बहन राधा मौसी भी आई तो माँ ने एक डायरी उसे पकड़ा कर कहा कि मेरा एक काम का देना मेरे मरने के बाद  तेरहवीं  के दिन इसे सबके सामने पढना |

बहन डायरी ले कर अपने घर चली गयी | उसी रात माँ के प्राण पखेरू उड़ गए | शायद बहन को डायरी सौंपने के लिए ही प्राण अटके थे |

तेरहवीं के दिन जब सब लोग खाने बैठे तो मौसी ने डायरी खोल कर पढना शुरू किया |

मेरे बेटों ,
               ये डायरी ही मेरी वसीयत है | अक्सर मैं तुम दोनों को  झगड़ते हुए सुनती | मेरी आत्मा बहुत तडपती पर मैं  ये दिखाती कि मैंने सुना ही नहीं है | ज्यादातर जेवरों की बात होती | मैं बताना चाहती हूँ कि मेरे जेवर भण्डार घर की  अलमारी के तीसरे खाने में छोटू के पुराने कपड़ों के नीचे एक डब्बे में रखे हैं | क्योंकि तुम दोनों मेरे ह बच्चे हो इसलिए मैं उन जेवरों को तौल के अनसुर बाँट कर आधा -आधा तुम दोनों को दे रही हूँ | 




परन्तु मेरे पास कुछ और जेवर हैं वो मैं छोटे बेटे को दे रही हूँ …. वो है मेरा आशीर्वाद | मैं ढेरों आशीर्वाद अपने छोटे  बेटे के लिए छोड़े  जा रही हूँ क्योंकि सिर्फ उसी ने मेरी निस्वार्थ सेवा करी है | 


                                                                      तुम्हारी माँ 

पत्र सुनते ही लोग छोटे बेटे की जयजयकार करने लगे | छोटे बेटे की आँखों में आँसू थे और बड़ा बेटा सर झुकाए लज्जित खड़ा था |

माँ के जेवरों के ऐसे अद्भुत बंटवारे की किसी ने कल्पना भी नहीं की थी |

नीलम गुप्ता

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