रीता की सफलता

प्रेरक कथा  -रीता की सफलता

सफलता और असफलता केवल एक सिक्के के दो पहलू हैं | आपके माता -पिता के लिए आपकी सफलता से कहीं ज्यादा आप अनमोल हो | आखिर रीता को ऐसी क्या बात समझ में आ गयी जिससे  उसके जीवन की सफलता के मायने ही बदल गए |

प्रेरक कथा -रीता की सफलता 

ये उस ज़माने की बात है जब हाईस्कूल  रिजल्ट ऑनलाइन नहीं निकलते थे | छात्रों  को मात्र एक संभावित तिथि पता होती थी | उस दिन से एक दो दिन पहले से बच्चों के दिल की धड़कने बढ़ जाया करती थीं | बच्चों और उनके घरों में रिजल्ट की प्रतीक्षा  बढ़ जाती |रिजल्ट के F, S और Th बस तीन अक्षर बच्चों की ख़ुशी मात्र को निर्धारित करते | फेल  होने वाले छात्रों का रोल नंबर नहीं चाप होता था | वो बच्चे निराशा में डूब जाते , तब घर वाले तरह -तरह के प्रयास कर उन्हें , ” अरे तो क्या हुआ अगले साल पास हो जाओगे कहकर सँभालने का प्रयास करते |

ये वो समय था जब रिजल्ट माता -पिता की प्रेस्टीज का इशु नहीं हुआ करता था | पर बच्चे तो उत्साहित या निराश हुआ ही करते थे |   “निकल गया भाई निकल गया , हाई स्कूल  का रिजल्ट निकल गया ” कहते हुए  जब सड़क  से होकर गुजरता था तो ना जाने  कितनी घरों की साँसे थम जाया करती थीं |

बच्चे जिन्होंने हाईस्कूल  का एग्जाम दिया है वो ना रात देखते ना दिन उसी समय सड़क पर दौड़ लगा पड़ते | लडकियाँ जो रात -बिरात घर से नहीं निकल पातीं | भाइयों की चिरौरी में लग जातीं | भाई पहले तो भाव खाते फिर  मान मनव्वल करके निकल पड़ते साइकिल वाले लड़के की खोज में जिसके पास होता उसी समय  प्रकाशित हुए परीक्षाफल वाला अखबार |

उसी दौर में एक लड़की थी रीता  | जिसने पूरे साल फर्स्ट डिवीजन  लाने के लिए बहुत मेहनत की थी | सारे इम्तिहान सही जारहे थे  , बस विज्ञान का पर्चा बचा था |  उस दिन हिंदी का पर्चा था |  पर्चा बहुत ही अच्छा हुआ था | घर लौटते हुए वो इम्तिहान खत्म होने के बाद मौसी के घर जा कर , अपने मौसेरे भाई -बहनों के साथ खूब मस्ती की योजनायें बना रही थी |  तभी तवे की  टनटनाहट ने उसका ध्यान खींचा | गोलगप्पे उसकी जुबान में खट्टा चटपटा स्वाद उतर आया | गोलगप्पे की तो वो दीवानी थी |  एक रुपये के पांच गोलगप्पे मिला करते थे उन दिनों और वो  दो तीन रुपये से कम के तो खाती ही नहीं थी |

भैया दो रुपये के गोलगप्पे दो कहते हुए उसे ख्याल तक नहीं आया कि माँ ने मना किया है कि इम्तिहान वाले दिन बाहर की चीज मत खाना , तबियत खराब हो गयी तो पछताना पड़ेगा | धडाधड गोलगप्पे खाए और निकल पड़ी घर की ओर |

शाम से ही पेट में दर्द होने लगा | उलटी और दस्त का जो सिलसिला शुरू हुआ वो एग्जाम रुका नहीं | जैसे -तैसे एग्जाम देने गयी | पर ठीक से पर्चा लिखा नहीं जा रहा था | जितना कुछ लिख पायी , लिख दिया |फेल होने की पूरी सम्भावना थी | रोते हुए घर लौटी | माँ से  लिपट करतो घिग्घी  ही बंध गयी | रोते हुए बोली , ” माँ मुझे माँ कर देना , मैं पास नहीं हो पाउंगी |”

रीता को सबसे ज्यादा दुःख था अपने माता-पिता की अपेक्षाओं पर खरे ना उतर पाने का | माँ बचपन से ही उसे अच्छे नंबर लाने को कहती थीं , और पिताजी ने ट्यूशन , किताबों आदि पर अपनी सीमा से ज्यादा खर्च किया था | और वो … वो उनको क्या दे रही है |

माँ ने उसे सीने लगा लिया | अकेली बेटी थी बड़ी मन्नतों बाद हुई थी | उसको यूँ निराश देखकर शब्द ही साथ छोड़ रहे थे | दो महीने बहुत ही निराशा से कटे | माँ कोे बेटी के दुःख का अंदाजा था | वो खुद ही हर रोज उसकी सफलता की दुआएं मांगती , पर रिजल्ट से कुछ दिन पहले माँ ने ये सोच कर उसे मौसी के यहाँ भेज दिया कि अचानक से फेल की खबर पर वहां भाई -बहन उसे संभल लेंगे |

उसने तय कर लिया था कि वो रिजल्ट निकलने के अगले दिन ही घर आ जायेगी |

तय तिथि पर रिजल्ट निकला | शाम को अपने मौसेरे  भाई के साथ घर आते ही वो माँ से चिपक गयी | माँ … ओ माँ मेरी फर्स्ट डिविजन आई है | लगता है और पेपर में नंबर इतने अच्छे आये कि  विज्ञान का पेपर ख़राब होने के बाद भी फर्स्ट डिविजन बन  गयी |

माँ ने भी हुलस कर उसे गले से लगा लिया |

रीता ने  अंदर आ कर देखा | खाने की मेज पर तरह -तरह के व्यंजन लगे हुए हैं | जैसे घर में कोई पार्टी हो | उसने डोंगों की प्लेट हटा कर देखा , सारे उसी के पसंद के व्यंजन थे | वो समझ गयी कि पार्टी उसी के लिए हैं | तभी उसने एक डोंगा खोला , उसमें एक परचा रखा हुआ था | जिसमें कुछ लिखा हुआ था |

मेरी प्यारी बेटी रीता ,
                      मुझे पता था कि तुम जरूर सफल होगी | आखिर तुमने मेहनत जो इतनी की थी | एक पेपर बिगड़ क्या तो भी तुम्हारी सफलता तय थी  | ये तुम्हारे जीवन की पहली सफलता है | इस पहले कदम को अपनी सफलता के भवन की नींव समझो और कदम दर कदम आगे बढ़ो |
                                                                                ढेर सारे प्यार के साथ
                                                                                   तुम्हारी माँ

रीता की आँखें नम हो गयीं |

तब तक पापा भी आ चुके थे | रीता चहक -चहक कर उनसे बात करने लगी | तभी माँ ने खाने के लिए आवाज़ लगायी | चरों खाना खाने लगे | खाना बहुत ही स्वादिष्ट था | रीता स्वाद ले लेकर खा रही थी | तभी पापा ने पानी माँगा | माँ उठने ही वाली थीं कि रीता ने कहा , ” माँ आप  रहने दो मैं ले आती हूँ |

अगले ही पल वो उछलती हुई रसोई में पहुँच गयी | उसने पानी का जग उठाया ही था कि उसकी नज़र एक बंद डोंगे पर पड़ी | ओह , लगता है माँ ने कुछ और बनाया है | लगता है डेजेर्ट है ,बाद में सरप्राइज़ में देंगीं | देखूं , देखूं है क्या ? कहते हुए उसने डोंगा खोला | डोंगे में फिर एक पर्चा रखा था |

रीता पानी का जग एक तरफ रख कर पर्चा पढने लगी |

मेरी प्यारी रीता ,
                     क्या हुआ जो तुम परीक्षा में सफल नहीं हुईं | मुझे पता है तुमने मेहनत तो बहुत की थी | तबियत खराब होने की वजह से तुम्हारा पेपर बिगड़ गया , इसमें तुम्हारा क्या दोष | जीवन हमें बार -बार मौका देता है , पर हम ही हार स्वीकार कर मेहनत का रथ रोक देते हैं | याद रखना दुनिया में जितने सफल लोग हुए हैं उन्होंने बहुत सारी शुरूआती असफलताएं देखीं | इस असफलता की नीव अपने मन में ना जमने देना , देखना बहुत सारी  सफलताएं तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हैं |
                                                                  ढेर सारे प्यार के साथ
                                                                     तुम्हारी माँ

अब रीता अपने आंसुओं को ना रोक सकी | उसे समझ आ गया कि उसकी सफलता या असफलता  नहीं , वह स्वयं  अपनी  माँ की जिन्दगी की पहली प्राथमिकता है |

रीता अपनी इस सफलता पर बहुत खुश थी …. बहुत खुश |

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                           बच्चों  ये प्रेरक कथा भले ही पुराने ज़माने की है | पर सन्देश आज भी वही है | एग्जाम सर पर हैं | कुछ बच्चे सफल होंगे कुछ असफल | जो बच्चे असफल हो जाते हैं अक्सर वो आत्मघाती कदम उठा लेते हैं | जबकि असफलता , सफलता का ही एक हिस्सा है | जो आज सफल दिख रहे हैं जीवन की परीक्षा में कहीं वो भी असफल होंगे  | जो आज असफल हैं वो कल सफल हो सकते हैं | ये समझना होगा की असफलता , सफलता के मार्ग में एक पड़ाव भर हैं | इसलिए  निराश होकर कोई गलत कदम मत उठाना क्योंकि आपके माता पिता की जिन्दगी में आप की सफलता -असफलता की नहीं आपकी कीमत सबसे ज्यादा है |  भले ही उन्होने आप  को सफल देखने के लिए कितना भी प्रेणादायक बोला हो पर उनका आशय सिर्फ आपको मोटिवेट करने का था ना कि दवाब डालने और आप को ओछा या कमत समझने का |

तो ख़ुशी -ख़ुशी इम्तहान दीजिये और जो भी रिजल्ट आये उसे ख़ुशी से स्वीकार कर आगे के लिए फिर प्रयास करिए | अपने माता -पिता के प्रेम को समझिये | आपको प्यार करने वाले  माता -पिता मिले हैं …. ये भी आपके जीवन की सफलता का ही हिस्सा है |

नीलम गुप्ता

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