मछेरन एक रोमांटिक कविता है … जिसमें कवि मछली पकड़ती स्त्री को देखकर मंत्रमुग्द्ध हो जाता है और उसे वो स्त्री दुनिया की सबसे सुंदर स्त्री लगने लगती है …….
मछेरन
मै नदी के किनारे बैठा————-
एकटक उस साँवली सी मछेरन को तक रहा था,
जो डूबते हुये सूरज की लालिमा मे,
अपनी कसी हुई देहयष्टि के कमर तक साड़ी खोसे,
एक खम और लोच के साथ,
अपनी मछली पकड़ने वाले जाल को खिच रही थी,
मुझे यूँ लगा कि जैसे——–
उसकी जाल की फँसी मछलियों मे से,
एक फँसी हुई मछली सा मेरा मन भी है.
वे इससें बेखबर,
एक-एक मछली निकाल——-
अपने पास रंखे पानी से भरे डिब्बे,
मे डालती रही.
बस इतना उसने इतनी देर मे जरुर किया,
कि अपने माथे पे गिर आये,
बाल को पीछे कर,
उसने कुछ और बची मछलियाँ,
उस डिब्बे मे रख,
गीले जाल और डिब्बे को पकड़,
ज्यो घुटनों भर पानी से निकली,
तो यूँ लगा कि जैसे——–
वे साँवली मछेरन,
विश्व कैनवास की सबसे खूबसूरत औरत हो.
रंगनाथ द्विवेदी
जज कालोनी, मियाँपुर
जिला–जौनपुर.
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वाह … यथार्थ के रंगों को केनवास पे उतार दिया हो जैसे …
अच्छी रचना है …