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ये उन दिनों की बात है जब बाज़ार में तरह -तरह के शर्बत व्ग कोल्ड ड्रिंक नहीं आये थे ….तब गर्मी दूर भगाने का एक ही तरीका था …रूह अफजा शर्बत , गर्मी शुरू और रूह अफजा की मांग शुरू | ठंडे पेयों के फैलते जाल के बीच भी इसकी मांग कम ना होने पायी और अभी भी अपनी युवा पीढ़ी के साथ माल में शान से खड़ा रहता है … परन्तु कवि की कल्पना ये तो कुछ और ही कह रही है ….
हमदर्द की रूह-अफ्ज़ा
तू मेरी, शरीक-ऐ-हयात है, कि—-
हमदर्द की रूह-अफ्ज़ा.
ये तेरी—-
नर्म-नाजूक सी कलाई की छुअन,
हाय !! तू मह़ज़ गिलास है ,या —-
हमदर्द की रूह-अफ्ज़ा.
ये शर्म से झुकी नज़र,
उसपे सुर्खी ,तेरे गाल की,
बता तू ,गुलाब है, कि—-
हमदर्द की रूह-अफ्ज़ा.
ये हवा की शरारत ,
ये उड़ती तेरी जुल्फें,
हाय !!
तू खुबसूरत ढ़लती शाम है,या —-
हमदर्द की रूह-अफ्ज़ा.
टहलना —-
तेरा हौले-हौले यूं छत पे
और मेरा देखना तुमको ,
तू मेरी मुमताज़ है, या —-
हमदर्द की रूह-अफ्ज़ा.
@@ रंगनाथ द्विवेदी
जजकालोनी, मियांपुर
जिला-जौनपुर 222002 (U.P.)