फोटो -पंजाब केसरी से साभार |
फेसबुक पर एक माँ ने अपने बेटे को 60 % मार्क्स लाने पर बधाई दी , तब उन्हें नहीं पता था कि उनकी यह पोस्ट लाखों लोगों की जुबान बन जायेगी | उनकी यह पोस्ट वायरल हुई है | इस पोस्ट के 7000 से ऊपर शेयर , एक हज़ार से ज्यादा कमेन्ट व दस हज़ार से ज्यादा लैक आ चुके हैं | दरअसल बहुत से लोग ऐस कहना चाहते हैं पर कह नहीं पाते क्योंकि बच्चों पर अच्छे नंबर लाने का सामाजिक दवाब हमीं ने बनाया है और अब हम और हमारे बच्चे ही इसका शिकार हो रहे हैं | ऐसे में बहुत जरूरत है ऐसी माँओं के आगे आने की जो कम प्रतिशत लाने वाले अपने बच्चों के साथ खड़ी हो सकें |
वंदना कटोच – 60 % लाने पर अपने बेटे को बधाई देने वाली माँ की पोस्ट हुई वायरल
वंदना कटोच ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि ..
मैं ओने बेटे पर गर्व महसूस कर रही हूँ | जिसने दसवीं की बोर्ड की परीक्षा में 60 % मार्क्स हासिल किये हैं | ये 90 % मार्क्स नहीं हैं , लेकिन मेरी भावनाएं नहीं बदली हैं | मैंने अपने बेटे का संघर्ष देखा है , जहाँ वो कुछ विषयों को छोड़ने की स्थिति में था |जिसके बाद पढाई को लेकर उसने काफी संघर्ष किया | बेटा आमेर जैसे मछलियों से पेड़ पर चढ़ने की उम्मीद की जाती है , लेकिन ठीक इससे उल्ट तुम अपने दायरे के भीतर ही एक बड़ी उपलब्द्धि हासिल करो | तुम मछली की तरह पेड़ पर नहीं चढ़ सकते लेकिन बड़े समुद्र को अपना लक्ष्य बना सकते हो| मेरा प्यार तुम्हारे लिए | अपने भीतर अच्छे जिज्ञासा और ज्ञान को हमेशा जीवित रखो , और हाँ ! अपना अटपटा सेंसोफ़ ह्यूमर भी |”
इस पोस्ट के बाद बहुत से लोगों ने उनके साहस और प्रेरणादायक पोस्ट के लिए उन्हें बधाई दी है |
वंदना कहतीं हैं कि मैंने ९७ -९८ प्रतिशत लाने वाले बच्चों के माता -पिता को भी रोते हुए देखा है | बच्चे रोते हैं तब तो समझ में आता है पर माता -पिता क्यों रोते हैं ? उन्होंने अपनी खुशियाँ बच्चों के नंबरों से जोड़ रखी हैं | ये एक बहुत ही खतरनाक परंपरा हो गयी है | बच्चे पर दवाब डालने के लिए माता -पिता के आँसू ही काफी हैं … और ये आँसू ही कई बार बच्चे के उस अंतिम खत का कारण बनते हैं ,” ये मेरा आखिरी खत है , मुझे दुःख है कि मैं आप की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर सका |”
बहुत से लोगों ने उनकी पोस्ट पर यह भी लिखा कि की इतने कम नंबर लाने वाले बच्चे भविष्य में क्या कर पायेंगे |
इसके जवाब में उन्होंने कहा कि रिजल्ट आते ही कम प्रतिशत लाने वाले बच्चों के प्रति दया दिखाते लोग कहने लगते हैं कि ये बच्चा कैसे सर्वाइव करेगा …ऐसा लगता है कि बच्चे के जीवन से ज्यादा महत्वपूर्ण उसके मार्क्स हो गए हैं | और फिर हर बच्चा कुछ ना कुछ तो कर ही लेगा | पर नंबरों का दवाब उसे उस काम को करने से भी रोक देता है जिसमें वो अच्छा है | बहुत से लोग फोटोग्राफी में जाते हैं , नृत्य -कला के क्षेत्र मे जाते हैं वहां विज्ञानं और गणित के नंबरों की जरूरत नहीं होती | उनका बेटा इन्हीं विषयों में कमजोर रहा है , अब वो अपने मन के विषय चुनेगा और उसमें निश्चित तौर पर अच्छा करेगा |
कुछ लोगों ने ये भी भी सवाल उठाया कि जब एक -डेढ़ महीने पढने से ये रिजल्ट रहा तो सारा साल पढने से बेहतर होता
इस के उत्तर में वंदना कहतीं हैं कि लोगों को लगता है कि जो बच्चे अच्छे नंबर नहीं लायें हैं उन्होंने साल भर ऐय्याशी की हैं | जबकि ऐसा नहीं है | कुछ बच्चों का कुछ और इंटरेस्ट होता है वो उसे करते हैं या फिर कुछ उन विषयों में जूझने में अपनी ज्यादा ऊर्जा जाया करते हैं जो उन्हें रुचिकर नहीं लगते | उनके बेटे को मैथ्स व् साइंस में मुश्किल होती थी | उसने बहुत मेहनत की पर रिजल्ट अनुकूल नहीं रहा | वो अवसाद से घिर गया | हमारे लिए भी वो बहुत मुश्किल वक्त था | फिर हमने हिम्मत की सब्जेक्ट को छोटे -छोटे टुकड़ों में बांटा और उस को तैयार करवाया | एक समय ऐसा था जब उनके बेटे आमेर ने इन सब्जेक्ट्स की परीक्षा ना देने का मन बनाया पर एक -डेढ़ महीने पहले उसने हिम्मत कर सभी विषयों की परीक्षा देने का मन बनाया और हमने उसका साथ दिया | हर बच्चा जो नंबर कम ला रहा है वो पढ़ा नहीं हो , ऐसनाहीं है | नंबर और रूचि किसी विषय को समझने की क्ष्त्मा में अंतर जीवन में उसके सफल या असफल होने की गारंटी नहीं हैं |
कुछ लोगों ने पूछा जब वो 90 % वाले बच्चों को देखतीं है तो अपने बच्चे को कहाँ पाती हैं ?
इसके जवाब में वंदना कहती हैं कि वो बच्चों की तुलना नहीं करती | हर बच्चा खास है | जिन्होंने ज्यादा नंबर पाए हैं वो भी खास हैं और उनका बेटा आमेर भी | दोनों की तुलना नहीं हो सकती |
आज जब कम प्रतिशत लाने वाले बच्चे समाज की नज़रों में खुद को कमतर , नाकारा , बेकार सिद्ध किये जाने से अवसाद में आ रहे हैं तब वंदना जैसी माँओं की बहुत जरूरत है जो डटकर अपने बच्चे के साथ खड़ी हो |
अटूट बंधन
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