कहते हैं कि परिवर्तन की शुरुआत बहुत छोटी होती है, परन्तु वो रूकती
नहीं है और एक से एक कड़ी जुडती जाती है और अन्तत : सारे समाज को बदल देती है …एक
ऐसे ही परिवर्तन की सूत्रधार है कोयलिया | यूँ तो कोयलिया ‘नया ज्ञानोदय में प्रकाशित
रश्मि शर्मा जी की कहानी ‘नैहर छूटल जाए’ का एक पात्र ही है पर उसे बहुत ही
खूबसूरती से गढ़ा गया है |
नहीं है और एक से एक कड़ी जुडती जाती है और अन्तत : सारे समाज को बदल देती है …एक
ऐसे ही परिवर्तन की सूत्रधार है कोयलिया | यूँ तो कोयलिया ‘नया ज्ञानोदय में प्रकाशित
रश्मि शर्मा जी की कहानी ‘नैहर छूटल जाए’ का एक पात्र ही है पर उसे बहुत ही
खूबसूरती से गढ़ा गया है |
नैहर छूटल जाए – एक परिवर्तन की शुरुआत
कहानी ग्रामीण परिवेश की है | दो भाइयों की इकलौती बहन कोयलिया की माँ की मृत्यु बचपन में ही हो गयी
थी | पिता ने ही उसे माँ व् पिता दोनों का प्यार दिया | प्रेम –प्रीत से पली
कोयलिया के नसीब में शराबी पति लिखा था | जो उसे अकसर मारता और वो देह पर नीले
निशान लिए हुए मायके आ जाती | भाई और पिता उसकी खातिर करते पर भौजाइयाँ इस डर से
की वो वहीँ ना बस जाए उसको गेंहू , चावल , खेत की तरकारी आदि दे कर ये कह कर विदा कर देती कि जैसा भी है अब वही घर
तेरा है | और कोयलिया विदाई के समय आँचल में चावल के दाने बाँध के साथ मायके का प्रेम बाँध कर घर आ जाती |
थी | पिता ने ही उसे माँ व् पिता दोनों का प्यार दिया | प्रेम –प्रीत से पली
कोयलिया के नसीब में शराबी पति लिखा था | जो उसे अकसर मारता और वो देह पर नीले
निशान लिए हुए मायके आ जाती | भाई और पिता उसकी खातिर करते पर भौजाइयाँ इस डर से
की वो वहीँ ना बस जाए उसको गेंहू , चावल , खेत की तरकारी आदि दे कर ये कह कर विदा कर देती कि जैसा भी है अब वही घर
तेरा है | और कोयलिया विदाई के समय आँचल में चावल के दाने बाँध के साथ मायके का प्रेम बाँध कर घर आ जाती |
जिस साल कोयलिया पैदा हुई थी उस साल उसके पिता को खेती में बहुत लाभ हुआ | उन्हें लगा कि कोयलिया उनके लिए बहुत भाग्यशाली है | धीरे -धीरे उन्होंने कई खेत खरीदे | माँ की मृत्यु के बाद कोयलिया बिना माँ की तो जरूर हो गयी पर उसके पिता व् भाइयों ने उसे लाड -प्यार की कोई कमी नहीं होने दी | इसी हक से तो वो हर बार ससुराल से मार खा कर सीधे अपने घर आ जाती | आखिर ये घर भी तो उसका अपना ही था |
उसी समय गाँव में कारखाना लगने का सरकारी प्रस्ताव आया | भूमि का अधिग्रहण शुरू हुआ | किसी के मकान का अधिग्रहण होना था तो किसी के खेत का | कोयलिया के पिता के खेत भी उसी भूमि में आये जिनका अधिग्रहण होना था | जमीन से चार गुना रकम मिलनी थी | हालांकि खेती की जमीन चली जाने पर आगे आय के श्रोत बंद हो रहे थे परन्तु उस पैसेका अन्यत्र कहीं इस्तेमाल किया जा सकता था | कोयलिया के पिता ने उसी समय भाइयों -भौजाइयों के आगे एक खेत जो उस्न्होने उस साल खरीदा था जिस साल कोयलिया पैदा हुई थी , उसके नाम करने को कहा | उन्हें कोयलिया प्रिय तो थी ही साथ ही शराबी दामाद का भय भी था कि उसकी वजह से कहीं उनकी बिटिया नाती को दिक्कत ना आये |
भूमि अधिग्रहण और पैसे का आवंटन में होने में गड़बड़ी होने पर गाँव वालों का विद्रोह शुरू हुआ | विद्रोह को दबाने के लिए पुलिस आई और उसने अंधाधुंध हवाई फायरिंग शुरू की | इस फायरिंग में सात लोगों की गोली लगने से मृत्यु हुई | उसी में एक कोयलिया के पिता भी थे | कोयलिया रोती पीटती आई उसे पिता को खोने के साथ -साथ नैहर छूटने का भी भी था | भाइयों और भाभियों ने आश्वासन दिया और वो दुखी ह्रदय से घर वापस आ गयी | दुःख था की छूटने का नाम नहीं ले रहा था |
इसी बीच पता चलता है कि कंपनी की तरफ से उसके पिता की मृत्यु का हर्जाना मिलेगा | खबर सुन कर उसका दिल दुःख से भर गया … करोणों के पिता की जगह लाखों का हर्जाना , क्या उसका दुःख इससे कम हो सकता है ?परन्तु उसके पति की आँखों में चमक आ गयी | वह कोयलिया पर दवाब डालने लगा कि वो भी अपना हिस्सा मांगे ताकि वो अपने घर की टपकती छत बरसात आने से पहले ठीक करवा सके | कोयलिया को बात ठीक लगती है | वो मायके जाती है | भाई -भाभी उसका बहुत स्वागत करते हैं , परन्तु हर्जाने में हिस्समांगने की बात सुन कर नाराज़ हो जाते हैं | भाभियाँ समझा देती हैं कि क्यों बेकार में हिस्सा माँगती हो | तुम बाबा की बेटी हो पर उनके कारज में खर्चा तो हमारा ही हुआ था | बाबा नहीं रहे पर तुम्हारा नैहर तो है …तुम आओगी तो अपनी सामर्थ्य भर दाना -पानी हम बांधते रहेंगे तुम्हारे साथ … हम भी बेटी हैं ,नैहर बना रहे इससे ज्यादा एक बेटी को और क्या चाहिए |
कोयलिया को भाभियों की बात सही लगती है और वो वापस अपने घर आ जाती है | तभी मुआवजा मिलने की खबर आती है | पति फिर हिस्सा माँगने को कहता है | वो फिर नैहर जाती है | बाबा के बाद वैसे भी अब उसका नैहर जाने का मन नहीं करता | भाई टका सा जवाब दे देते हैं कि पैसा मिला ही नहीं और बाबा ने कब कहा था हमने तो सुना ही नहीं | उसका मन उदास तो होता है तो भाई उसे समझा देते हैं कि जब पैसा मिलेगा तब सोचेंगे | इस बार भाभियाँ मनुहार नहीं करती | वो वापस लौट आती है |
जो लड़की बात -बात पर नैहर जाती थी वो अब महीनों नैहर नहीं जाती | नैहर छूटा सा जा रहा है | अब तो बदन पर पड़े नीले निशानों को भी किसी को दिखने की इच्छा नहीं होती | क्या फायदा ? कौन उसका अपना है जो सुनेगा | अपने दर्द अपने मन में ही रखती है …. जो भी है उसका पति ही है उसी के सहारे उसकी जिन्दगी की नैया पार लगेगी |
तभी उसे पता चलता है कि भाइयों को मुआवजे की रकम मिल गयी है | पर किसी ने उसे बताया नहीं, नैहर सेकोई आया भी नहीं ? ये सोच कर उसे गहरा धक्का लगता है | बहुत दिन तक उदास रहने के बाद मन में क्रोध उफनता है | आखिर वो भी तो अपने बाबा की बेटी है , उस घर द्वार पर उसका भी हक़ है | ऐसे कैसे भैया भाभी उसे , उस घर में आने से बेदखल कर देंगे | वो अपने नैहर जाती है और बिना भाभियों से मोले सीधे भण्डार में जाकर चावल , दाल आदि की कुछ बोरिया उठा कर सासरे आ जाती है | भाइयों को उसकी हरकत नागवार गुज़रती है , अगली बार कुछ महीने बाद जब वो दुबारा आती है तो भाभियाँ उसके घुसने के बाद भंडार के दरवाजे को बंद कर देती हैं …वो रोटी पीटती है पर खोलती नहीं हैं तन उसकी चची जिन्हें उसके आने की खबर है मिन्नत करके दरवाजा खुलवाती हैं |
अप मानित हो कर आने के बाद वह समझ जाती है कि अब उसका नैहर हमेशा के लिए छूट गया | तभी अपनी सहेली के कहने पर वो अपने हक की लड़ाई शुरू कर देती है …वो हक़ जो सरकार ने बेटियों को दिया है पिता की सम्पत्ति पर बराबर का हक़ |
कोयलिया इस संघर्ष में विजयी होगी की नहीं … उसे उसका अधिकार मिलेगा कि नहीं ये तो कहानी पढने के बाद ही पता चलेगा लेकिन लेखिका ने इस कहानी में एक महत्वपूर्ण बिंदु को उठाया है … लड़कियों के पिता की सम्पत्ति में हक़ का | अक्सर लडकियां सम्पत्ति में हक इसलिए छोड़ देती हैं कि मायका बना रहेगा | परन्तु अगर माता -पिता के बाद भाई पूछे ही नहीं , भौजाइयों सीधे मुँह बात ही ना करें ….नैहर में नैहर जैसा कुछ महसूस ही ना हो तो ? जड़ से अलग की गयी लड़की पग -पग पर नैहर छूटने से बचाने का प्रयास करती रहती है | कहीं न कहीं उसकी कोशिश रहती है कि नैहर में आने -जाने का उसका हक़ बना रहे , फिर भी नैहर छूटता जाता है टुकड़ा -टुकड़ा रोज -रोज | लडकियां मायके को तोड़ने में नहीं जोड़ने में विश्वास करती हैं लेकिन अगर बलात नैहर छुडवाया ही जा रहा हो तो क्या लड़कियों को इस हक का प्रयोग कर अपनी बराबरी का ऐलान करना चाहिए | कहानी की खास बात है इसमें इस्तेमाल हुए देशज शब्द जो कहानी को पढने नहीं देखने का सुखद अहसास कराते हैं |
उसी समय गाँव में कारखाना लगने का सरकारी प्रस्ताव आया | भूमि का अधिग्रहण शुरू हुआ | किसी के मकान का अधिग्रहण होना था तो किसी के खेत का | कोयलिया के पिता के खेत भी उसी भूमि में आये जिनका अधिग्रहण होना था | जमीन से चार गुना रकम मिलनी थी | हालांकि खेती की जमीन चली जाने पर आगे आय के श्रोत बंद हो रहे थे परन्तु उस पैसेका अन्यत्र कहीं इस्तेमाल किया जा सकता था | कोयलिया के पिता ने उसी समय भाइयों -भौजाइयों के आगे एक खेत जो उस्न्होने उस साल खरीदा था जिस साल कोयलिया पैदा हुई थी , उसके नाम करने को कहा | उन्हें कोयलिया प्रिय तो थी ही साथ ही शराबी दामाद का भय भी था कि उसकी वजह से कहीं उनकी बिटिया नाती को दिक्कत ना आये |
भूमि अधिग्रहण और पैसे का आवंटन में होने में गड़बड़ी होने पर गाँव वालों का विद्रोह शुरू हुआ | विद्रोह को दबाने के लिए पुलिस आई और उसने अंधाधुंध हवाई फायरिंग शुरू की | इस फायरिंग में सात लोगों की गोली लगने से मृत्यु हुई | उसी में एक कोयलिया के पिता भी थे | कोयलिया रोती पीटती आई उसे पिता को खोने के साथ -साथ नैहर छूटने का भी भी था | भाइयों और भाभियों ने आश्वासन दिया और वो दुखी ह्रदय से घर वापस आ गयी | दुःख था की छूटने का नाम नहीं ले रहा था |
इसी बीच पता चलता है कि कंपनी की तरफ से उसके पिता की मृत्यु का हर्जाना मिलेगा | खबर सुन कर उसका दिल दुःख से भर गया … करोणों के पिता की जगह लाखों का हर्जाना , क्या उसका दुःख इससे कम हो सकता है ?परन्तु उसके पति की आँखों में चमक आ गयी | वह कोयलिया पर दवाब डालने लगा कि वो भी अपना हिस्सा मांगे ताकि वो अपने घर की टपकती छत बरसात आने से पहले ठीक करवा सके | कोयलिया को बात ठीक लगती है | वो मायके जाती है | भाई -भाभी उसका बहुत स्वागत करते हैं , परन्तु हर्जाने में हिस्समांगने की बात सुन कर नाराज़ हो जाते हैं | भाभियाँ समझा देती हैं कि क्यों बेकार में हिस्सा माँगती हो | तुम बाबा की बेटी हो पर उनके कारज में खर्चा तो हमारा ही हुआ था | बाबा नहीं रहे पर तुम्हारा नैहर तो है …तुम आओगी तो अपनी सामर्थ्य भर दाना -पानी हम बांधते रहेंगे तुम्हारे साथ … हम भी बेटी हैं ,नैहर बना रहे इससे ज्यादा एक बेटी को और क्या चाहिए |
कोयलिया को भाभियों की बात सही लगती है और वो वापस अपने घर आ जाती है | तभी मुआवजा मिलने की खबर आती है | पति फिर हिस्सा माँगने को कहता है | वो फिर नैहर जाती है | बाबा के बाद वैसे भी अब उसका नैहर जाने का मन नहीं करता | भाई टका सा जवाब दे देते हैं कि पैसा मिला ही नहीं और बाबा ने कब कहा था हमने तो सुना ही नहीं | उसका मन उदास तो होता है तो भाई उसे समझा देते हैं कि जब पैसा मिलेगा तब सोचेंगे | इस बार भाभियाँ मनुहार नहीं करती | वो वापस लौट आती है |
जो लड़की बात -बात पर नैहर जाती थी वो अब महीनों नैहर नहीं जाती | नैहर छूटा सा जा रहा है | अब तो बदन पर पड़े नीले निशानों को भी किसी को दिखने की इच्छा नहीं होती | क्या फायदा ? कौन उसका अपना है जो सुनेगा | अपने दर्द अपने मन में ही रखती है …. जो भी है उसका पति ही है उसी के सहारे उसकी जिन्दगी की नैया पार लगेगी |
तभी उसे पता चलता है कि भाइयों को मुआवजे की रकम मिल गयी है | पर किसी ने उसे बताया नहीं, नैहर सेकोई आया भी नहीं ? ये सोच कर उसे गहरा धक्का लगता है | बहुत दिन तक उदास रहने के बाद मन में क्रोध उफनता है | आखिर वो भी तो अपने बाबा की बेटी है , उस घर द्वार पर उसका भी हक़ है | ऐसे कैसे भैया भाभी उसे , उस घर में आने से बेदखल कर देंगे | वो अपने नैहर जाती है और बिना भाभियों से मोले सीधे भण्डार में जाकर चावल , दाल आदि की कुछ बोरिया उठा कर सासरे आ जाती है | भाइयों को उसकी हरकत नागवार गुज़रती है , अगली बार कुछ महीने बाद जब वो दुबारा आती है तो भाभियाँ उसके घुसने के बाद भंडार के दरवाजे को बंद कर देती हैं …वो रोटी पीटती है पर खोलती नहीं हैं तन उसकी चची जिन्हें उसके आने की खबर है मिन्नत करके दरवाजा खुलवाती हैं |
अप मानित हो कर आने के बाद वह समझ जाती है कि अब उसका नैहर हमेशा के लिए छूट गया | तभी अपनी सहेली के कहने पर वो अपने हक की लड़ाई शुरू कर देती है …वो हक़ जो सरकार ने बेटियों को दिया है पिता की सम्पत्ति पर बराबर का हक़ |
कोयलिया इस संघर्ष में विजयी होगी की नहीं … उसे उसका अधिकार मिलेगा कि नहीं ये तो कहानी पढने के बाद ही पता चलेगा लेकिन लेखिका ने इस कहानी में एक महत्वपूर्ण बिंदु को उठाया है … लड़कियों के पिता की सम्पत्ति में हक़ का | अक्सर लडकियां सम्पत्ति में हक इसलिए छोड़ देती हैं कि मायका बना रहेगा | परन्तु अगर माता -पिता के बाद भाई पूछे ही नहीं , भौजाइयों सीधे मुँह बात ही ना करें ….नैहर में नैहर जैसा कुछ महसूस ही ना हो तो ? जड़ से अलग की गयी लड़की पग -पग पर नैहर छूटने से बचाने का प्रयास करती रहती है | कहीं न कहीं उसकी कोशिश रहती है कि नैहर में आने -जाने का उसका हक़ बना रहे , फिर भी नैहर छूटता जाता है टुकड़ा -टुकड़ा रोज -रोज | लडकियां मायके को तोड़ने में नहीं जोड़ने में विश्वास करती हैं लेकिन अगर बलात नैहर छुडवाया ही जा रहा हो तो क्या लड़कियों को इस हक का प्रयोग कर अपनी बराबरी का ऐलान करना चाहिए | कहानी की खास बात है इसमें इस्तेमाल हुए देशज शब्द जो कहानी को पढने नहीं देखने का सुखद अहसास कराते हैं |
नया ज्ञानोदय -जून 2019 में प्रकाशित
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