अरे बशेसर की दुल्हिन , ” हम का सुन रहे हैं , अब तुम हफ्ता में तीन व्रत करने लगी हो | देखो , पेट से हो , अपने पर जुल्म ना करो | अभी तो तुमको दुई जानो का खाना है और तुम …
काकी की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि बशेसर की अम्माँ बोल पड़ीं | समझाया तो हमने भी था , पर मानी ही नहीं | अब धर्म -कर्म की बात है , का करें …हम रोकेंगे तो पाप तो हमहीं को चढ़ेगा ना |”
काकी ने समर्थन में सर हिलाया |
“चलो पुन्य करने वाली है लड़का ही होगा “
” तुम्हारे मुँह में घी शक्कर “
उधर इन दोनों से थोड़ी दूर पर बैठी बशेसर की दुल्हिन अपने पैर के अंगूठे से जमीन खोदते हुए सोचती है कि , ” पुन्य जाए भाड़ में छठे महीने से जब जमीन पर बैठ चूल्हे पर रोटी बनाने में दिक्कत होने लगी तब कितना कहा था उसने सासू माँ से , हमसे नहीं होता है | तब कहाँ मानी थीं वो , बस एक ही रट लगी रहती , ऐसे कैसे नहीं होता , हमने तो ६ बच्चे जने और पूरे समय तक रोटी बनायीं और तुम पहले बच्चे में ही हाथ झाड़ रही हो |”
तब व्रत ही उसे एक उपाय लगा | सास खुद ही उसे रसोई से हटा देतीं , चलो हटो , व्रत की हो , ये रोटी की रसोई है |खुद ही फल ला कर उसके आगे रख देतीं |
व्रत की वजह से ही सही इस भीषण गर्मी में उसे रोटी बनाने से तो मुक्ति मिल ही गयी थी |
नीलम गुप्ता
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