काजू महँगे होते हैं इसमें कोई शक नहीं | पर क्या अपने नुकसान की भरपाई किसी दूसरे से कर लेना उचित है | पढ़िए लघुकथा …
महँगे काजू
यशोदा जी ने डिब्बा खोलकर देखा 150 ग्राम काजू बचे ही होंगे | पिछले बार मायके जाने पर बच्चों के लिए पिताजी ने दिए थे | कहा था बच्चों को खिला देना |
तब उसने काजू का भाव पूछा था |
“कितने के हैं पिताजी ?”
“1000 रुपये किलो”
“बहुत महँगे हैं ” उसने आँखें चौड़ी करते हुए कहा |
पिताजी ने उसके सर पर हाथ फेर कर कहा ,” कोई बात नहीं बच्चों के लिए ही तो हैं , ताकत आ जायेगी |”
वो ख़ुशी -ख़ुशी घर ले आई थी |
बच्चे भी बड़े शौक से मुट्ठी-मुट्ठी भर के खाने लगे थे | १५ दिन में ८५० ग्राम काजू उड़ गए | इतने महंगे काजू इतनी जल्दी खत्म होना उसे अच्छा नहीं लगा | सो डब्बे में पारद की गोली डाल उसे पीछे छुपा दिया कि कभी कोई मेहमान आये तो खीर में डालने के काम आयेंगे, नहीं तो सब ऐसे ही खत्म हो जायेंगे |
फिर वह खुद ही भूल गयी |
अभी आटे के लड्डू बनाते -बनाते उसे काजुओं के बारे में याद आया | उसने सोचा काजू पीस कर डाल देगी तो उसमें स्वाद बढ़ जाएगा |वर्ना रखे-रखे खराब हो जायेंगे | उसने झट से काजू के डिब्बे को ग्राइंडर में उड़ेल कर उन्हें पीस दिया |
तभी सहेली मीता आ गयी और बातचीत होने लगी | दो घंटे बाद जब वो वापस लौटी और भुने आटे में काजू डालने लगीं तो उन्हें ध्यान आया कि जल्दबाजी में वो काजू के साथ पारद की गोली भी पीस गयीं हैं | अब पारद की गोली तो घुन न पड़ने के लिए होती है कहीं उससे बच्चे बीमार ना हो जाए ये सोचकर उनका मन घबरा गया | पर इतने महँगे काजू फेंकने का भी मन नहीं हो रहा था |
बुझे मन से उन्होंने बिना काजू डाले लड्डू बाँध लिए | फिर भी महंगे काजुओं का इस तरह बर्बाद होना उन्हें खराब लग रहा था | बहुत सोचने पर उन्हें लगा कि वो उन्हें रधिया को दे देंगी | आखिरकार ये लोग तो यहाँ -वहाँ हर तरह का खाते रहते हैं | इन्हें नुक्सान नहीं करेगा |
सुबह जब उनकी कामवाली रधिया आई तो उन्होंने उससे कहा , ” रधिया ये काजू पीस दिए हैं अपने व् बच्चे के लिए ले जा | बहुत मंहगे हैं संभल के इस्तेमाल करना |
रधिया खुश हो गयी | शाम को उसने अपने बच्चे के दूध में काजू का वह पाउडर डाल दिया | देर रात बच्चे को दस्त -उल्टियों की शिकायत होने लगी | रधिया व् उसका पति बच्चे को लेकर अस्पताल भागे | डॉक्टर ने फ़ूड पोईजनिंग बतायी | महँगे -महंगे इंजेक्शन लगने लगे |
करीब ६ -सात हज़ार रूपये खर्च करने के बाद बच्चा खतरे के बाहर हुआ |
रधिया ने सुबह दूसरी काम वाली से खबर भिजवा दी की वो दो तीन दिन तक काम पर नहीं आ पाएगी …बच्चा बीमार है |
यशोदा जी बर्तन साफ़ करते हुए बडबडाती जा रहीं थी … एक तो इतने महंगे काजू दिए , तब भी ऐसे नखरे | सही में इन लोगों का कोई भरोसा नहीं होता |
सरिता जैन
* किसी को ऐसा सामान खाने को ना दें जो आप अपने बच्चों को नहीं दे सकते हैं |
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सही बात हैं कामवाली बाई या उसके बच्चे भी तो इंसान ही हैं। इसलिए जो चीज हम नहीं कहा सकते वो उन्हें कैसे दे सकते हैं
काम वाले भी इंसान होते हैं।जो हम स्वयं नहीं खा सकते वह दूसरे को क्यों दे ।सार्थक कहानी
bahut achhi kahani hain. Aese dusro ki jindagi se khilwad nhi karna chahiye
Nice story