साहित्य जगत में डॉ .भारती वर्मा बौड़ाई एक सशक्त हस्ताक्षर के रूप में उभर रही हैं | अटूट बंधन के साहित्य सुधि पाठक उन्हें यहाँ अक्सर पढ़ते रहे हैं | कभी हिंदी अध्यापिका रही भारती जी साहित्य की पगडंडियों पर चल कर तेजी से आगे बढती जा रहीं है | क्योंकि वो स्वयं अध्यापिका रहीं हैं इसलिए उनके सहित्य में मैंने एक खास बात देखी हैं कि संवेदनाओं को जागते हुए भी उनके साहित्य में समाज के लिए कोई सीख कोई दिशा छिपी रहती है | मुझे लगता है कि साहित्य का मूल उद्देश्य भी यही होना चाहिए कि समाज का केवल सच ही सामने ना लाये अपितु उसे हौले से बदलने का प्रयास भी करें | कदाचित इसी लिए जन सरोकारों से जुड़े साहित्य को हमेशा श्रेष्ठ साहित्य की श्रेणी में रखा जाता है |
2019 में उनकी 6 लघु पुस्तिकाएं आई हैं | जिनमें चार काव्य की एक लघु कथाओं की और एक लेखों की हैं | सभी लघु पुस्तिकाएं अपने आप में विशेष है पर आज मैं यहाँ पर उनके लघुकथा संग्रह “पगडंडियों पर चलते हुए” की बात करना चाहती हूँ | भारती जी के इस लघु कथा संग्रह में करीब ३० लघुकथाए है | समाज को दिशा देती ये सारी लघुकथाएं प्रशंसनीय हैं |
पगडंडियों पर चलते हुए -समाज को दिशा देती लघुकथाएं
पहली लघुकथा “इस बार की बारिश” एक ऐसी स्त्री के बारे में है जिसका पति कोई काम नहीं करता | घर में बैठे -बैठे खाना और सोना उसका प्रिय शगल है | उसकी पत्नी दिविका उसे बहुत समझाती है परन्तु उस पर कोई असर नहीं होता | दिविका बाहर जा कर नौकरी कर सकती है | परन्तु वो सोचती है कि अगर वो ऐसा करेगी तो उसके पति व् ससुराल वाले और निश्चिन्त हो जायेगे तथा वो दोहरी जिम्मेदारियाँ निभाते -निभाते परेशान हो जायेगी | अन्तत : वो अपने पति से संबंध संपत कर अपने जीवन की डोर अपने हाथ में लेने का संकल्प लेती है |
दुर्भाग्य से आज जब मैं इस कहानी पर लिख रही हूँ तो अखबार में दिल्ली की एक खबर है | एक व्यक्ति जो पिछले दो सालों से बेरोजगार था और पत्नी नर्स का काम कर अपने परिवार को पाल रही थी , उसने नशे व् क्रोध में अपनी पत्नी बच्चों की हत्या कर आत्महत्या कर ली |
क्या ऐसे समय में जरूरत नहीं है दिविक जैसी महिलाओं की जो सही समय में सही फैसले ले और अपनी व् बच्चों की जिन्दगी को इस तरह जाया ना होने दें |
“रक्षा बंधन ” से सम्बंधित दो लघुकथाएं मुझे बहुत अच्छी लगी | इनमें से एक में “रक्षा बंधन ऐसा भी ” एक माँ जो बिमारी जूझ रही है और उसके बच्चे उसकी सेवा तन मन से करते हैं वो रक्षा बंधन के दिन अपने भाई के बाद अपने बच्चों के राखी बांधती है | वहीँ दूसरी कहानी ‘अनोखा रक्षा बंधन ” में पुत्र दोनों मामाओं की मृत्यु के बाद उदास रहती माँ से राखी बंधवाता है | रक्षा बंधन की मूल भावना ही किसी की दर्द तकलीफ में उसका सहारा बन जाने में है | वो हर रिश्ता जो इस बात में खरा उतरता है इस बंधन का हकदार है | ये एक नयी सोच है जो बहुत उचित भी है |
“नया सवेरा ” कहानी एक ऐसी बच्ची की कहानी है जो माता -पिता के दवाब में दसवीं में विज्ञान लेती है और फेल हो जाती है | अन्तत : माता -पिता समझते हैं कि हर बच्चा कुछ कर सकता है ,कुछ बन सकता है बशर्ते उस पर अपनी इच्छाओं का बोझ ना डाला जाए |
“उड़ान “में बच्ची मीना अपने जन्मदिन केक काट कर दोस्तों व् रिश्तेदारों के साथ डिनर करके नहीं बल्कि वृद्ध आश्रम में मनाना चाहती है | वो अपने मित्रों के साथ वहां जा कर वृद्ध लोगों में आशा का संचार करती है | तो वहीँ “नयी सोच ‘के प्रधानाध्यापक बच्चो को सफाई के सिर्फ उपदेश ना पिला कर , न सिर्फ स्वयं सफाई करते हैं वरन बचे हुए खाने से खाद बनाने व् पौधे लगाने का भी काम करते हैं | उनको इस तरह करता देख बच्चे स्वयं प्रेरित हो जाते हैं | एक अंग्रेजी कहावत है कि …
“Action speaks louder than words”
ये कहानी इस लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ये सिर्फ कोरी शिक्षा पर जोर नहीं देती , वरन बच्चों को सिखाने के लिए स्वयं में परिवर्तन के महत्व को रेखांकित करती है |
“ विस्फोट ‘ एक ऐसी कहानी है जिस दशा से आमतौर पर महिलाएं गुजरती हैं | पुरुषों के लिए कोई बंधन नहीं हैं पर घर की बहु , कहाँ जारही है ? , कब जा रही है ? और कब तक लौटेगी ? के सवालों से झूझती ही रहती है | खासकर जब वो अपने मायके जा रही हो | ऐसे ही एक लड़की गौरी अपने माता -पिता के पास मिलने जाती है ,बारिश होने लगती है तो वो फोन कर के ससुराल में बता देती है , उधर बारिश ना रुकते देख माँ कहती हैं कि खानाबन ही गया है खा के जा ” माँ का दिल ना टूटे इसलिए वो खाना खा कर ससुराल जाती है |
वहां सब नाराज बैठे हैं | आते ही ताने -उलाह्नेशुरु हो जाते हैं , ” आ गयीं मायके से पार्टी जीम कर , भले ही ससुराल में सब भूखे बैठे हो ?”
आहत गौरी पहली बार अपनी जुबान खोलती है कि, ” क्या वो मायके भी नहीं जा सकती ? अगर इस पर भी ऐतराज़ है तो अब वो जब चाहे , जहाँ चाहे जायेगी |
गौरी का प्रश्न हर आम महिला का प्रश्न है | बहुधा ससुराल वाले विवाह के बाद महिला के उसके माता -पिता के प्रति प्रेम पर ऐतराज़ करने लगते हैं …….तब उनके यहाँ भी गौरी की तरह ही विस्फोट होता है |
“बहु कभी बेटी के बराबर नहीं हो सकती ये कहने से पहले खुद का व्यवहार भी देखना होता है |”
इसके अतिरिक्त शोर , अचानक , नयी पहचान व् अपने हिस्से का काम भी, उल्लेखनीय लघु कथाएँ हैं | भारती जी की भाषा हमेशा की तरह सधी हुई है , उनकी हर लघुकथा के अंत का पंच उसे लघुकथों के मानकों पर खरा उतारता है | संग्रह में ३०लघुकथाये हैं जो ३२ पेजों में समाई हुई हैं | कवर पेज आकर्षक है | संग्रह का मूल्य 55 रुपये है |
आज की भागदौड़ वाली जीवन शैली में समय कम होने के कारण वैसे भी आजकल लोग लघु पुस्तिकाएं ज्यादा पसंद कर रहे हैं | उपन्यास भी १०० -१२५ पृष्ठों के लिखे जा रहे हैं | क्योंकि आम पाठक पढना तो चाहता है परन्तु महगी और मोटी पुस्तकें देख कर अपने हाथ पीछे खींच लेता है | ऐसे में अन्तरा शब्द शक्ति प्रकाशन का छोटी व् कम कीमत की लघु पुस्तिकाएं निकालने का प्रयास सराहनीय है |
भारती जी को उनके लघु कथा संग्रह ” पगडंडियों पर चलते हुए ” के लिए बधाई व् शुभकामनाएं
वंदना बाजपेयी
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