The Telegraph से साभार |
अगर आप ग्रीनिज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड के रिकार्ड चेक करें तो देखेंगे कि मशहूर होने के भी अलग अलग किस्से होते हैं |कोई नाखून बढ़ा कर मशहूर होता है, कोई बाल बढ़ा कर तो कोई लगातार हँस कर , या रो कर | पहले लोग इसके लिए बहुत मेहनत करते थे | किसी के लम्बे बालों या नाखूनों की उलझन को सहज ही समझा जा सकता है | पर आज सोशल मीडिया युग है इसमें एक आलतू -फ़ालतू सी ट्वीट आपको रातों -रात स्टार बना सकती है | ऐसा ही किया शुक्ला जी ने ….अब शुक्ला जी तो स्टार बने ही बने मुफ्त का ज़ोमैटो का विज्ञापन भी कर दिया | अब शुक्ला जी टाइप के लोग हर जाति धर्म में होते ही हैं | इन्हें कुछ दिन बाद सिरफिरे कह कर भुला भी दिया जाएगा पर ज़ोमैटो तो एक कम्पनी है उसे तो इससे आर्थिक लाभ हुआ उसका श्रेय शुक्ला जी को जरूर जाएगा क्योंकि “विज्ञापन का भी कोइऊ धर्म नहीं होता “
जोमैटो और शुक्ला जी
अब ज़ोमैटो और शुक्ल जी का किस्सा जिनको नहीं पता है उनकी जानकारी के वास्ते इतना बता दें कि एक ऑनलाइन वेबसाईट (कम्पनी) है ज़ोमैटो | जिसमें जुड़े किसी भी रेस्ट्रोरेन्ट से आप खाना ऑन लाइन आर्डर कर के मंगवा सकते हैं | ये आपको घर बैठे उस रेस्ट्रोरेन्ट का लजीज खाना पहुँचा देती है | बड़े शहरों में ये वेबसाईट खासी प्रसिद्द है | इसके लिए इसने तमाम डिलीवरी बॉय रखे हैं जो पैक करा हुआ खाना ग्राहक तक पहुंचाते हैं |
अभी कुछ दिन पहले ज़ोमैटो के एक डिलीवरी बॉय के द्वारा रास्ते में स्कूटर रोक कर इन पैक किये हुए खाने को करीने से खोल कर हर पैकेट से कुछ चम्मच भोग लगा कर वापस वैसे ही पैक कर डिलीवरी कर देने की पोस्ट वायरल हुई थी | इससे उन लोगों को भी ज़ोमैटो के बारे में पता चला जिनके पास इसकी जानकारी नहीं थी …और जिन्होंने इससे खाना तो कभी मँगाया ही नहीं था |
अब एक हैं शुक्ला जी | शुक्ला जी को चार रोज पहले उनके मुहल्ले के चार लोगों से ज्यादा कोई नहीं जानता था | एक दिन शुक्ला जी ने जोमैटो से कुछ खाना मँगवाया | और जैसे ही उनके पास मेसेज आया कि फलां डिलीवरी बॉय उनके घर खाना ले कर आ रहा है तो मेसेज में उसके धर्म को देख कर शुक्ला जी को अपना धर्म याद आया | शुक्ला जी का कहना था कि वो सावन के दिनों में अपने धार्मिक कारणों की वजह से किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति के हाथ से लाया गया खाना नहीं ले सकते | कृपया उनके धर्म के व्यक्ति का डिलीवरी बॉय से खाना भिजवाया जाए |
जोमैटो ने उनकी इस शर्त को मानने से इनकार कर दिया |
शुक्ला जी को गुस्सा बहुत आया , उन्होंने जनेऊ सर पर (कान पर नहीं ) चढ़ा कर खाना कैंसिल करते हुए ये बात ट्वीट कर दी |
उनकी ट्वीट पर ज़ोमैटो ने अपने पक्ष की ट्वीट करी कि वो ये आग्रह स्वीकार नहीं कर सकते क्योंकि …
“खाने का कोई धर्म नहीं होता |
खाना अपने आप में एक धर्म है |”
अब बस जनता को हथियार मिल गया कुछ लोग शुक्ला जी के पक्ष में तो कुछ ज़ोमैटो के पक्ष में खड़े हो गए | देखते ही देखते ट्विटर और फेसबुक की हर वाल पर शुक्ल जी या ज़ोमैटो जी छा गए | हड़प्पा और मोहन जोदाड़ों की खुदाई फिर शुरू हुई और एक पुरानी ट्वीट और पापुलर हुई जिसमें हलाल का मीट ना देने पर ज़ोमैटो ने ग्राहक से माफ़ी माँगी थी | एक और खबर छाने लगी कि कैसे एक मुस्लिम मदरसे ने इस्कॉन टेम्पल में बनाए खाने को मिड डे मील के रूप में लेने से इंकार कर दिया था |
मने की सहिष्णुता /असहिष्णुता का खेल शुरू होगया |
मतलब ई कि शुक्ला जी ही सिरफिरे नहीं हैं , उनके जैसे सिरफिरे पहले भी रह चुके हैं |
खैर अब मध्य प्रदेश पुलिस की तरफ से शुक्ला जी को FIR मिल (दर्ज )गयी है और ज़ोमैटो को वार्निंग |
तो अब पर्दा गिराने से पहले अगर ज़ोमैटो की बात की जाए तो इससे कई वेज और नॉन वेज रेस्ट्रोरेन्ट जुड़े हैं | ग्राहक अपनी पसंद के किसी भी रेस्ट्रोरेन्ट से खाना मँगवा सकता है | कई ऐसे रेस्ट्रोरेन्ट जहाँ वेज और नॉन वेज दोनों प्रकार का खाना बनता है वो भी नवरात्र स्पेशल व् पितृ पक्ष स्पेशल नाम की थाली निकालते हैं | उसमें दावा होता है कि ये थालियाँ अलग रसोई में पूर्णतया शुद्ध सात्विक तरीके से बनायी गयीं हैं | निश्चित तौर पर ऐसा कम्पनियाँ धर्म की वजह से नहीं करती बल्कि अपने व्यापार को बढ़ने के लिए करती हैं | निश्चित तौर पर इससे उनका व्यापर बढ़ा है और सहूलियत मिलने पर व्रत करने वालों की संख्या भी |
आज अगर आप नवरात्र थाली स्पेशल देखें तो आप को जरूर लगेगा कि काश आपने भी व्रत कर लिया होता | क्योंकि उसमें इतने आइटम होते हैं जितने आम आदमी की थाली में नहीं होते | पुन्य लाभ और स्वाद लाभ दोनों | ऐसा वो अन्य धर्मों की थालियों में भी करते होंगे |
इन समस्त सुविधाओं में ऐसा कभी रेस्ट्रोरेन्ट की ओर से नहीं लिखा जाता कि वो अपने रसोइये किसी खास धर्म के व्यक्ति को ही रखेगा | रसोइया कौन है इसकी जानकारी किसी को नहीं होती | होटल में भी खाना परोसने वाले व्यक्ति के धर्म की जानकारी किसी को नहीं होती | आज पैकेट बंद फ़ूड का ज़माना है | बिस्कुट , दालमोठ , अचार आदि में किस धर्म के व्यक्ति के हाथ लगे हैं ये पैकेट पर नहीं लिखा रहता | ऐसे में शुक्ला जी का ये विश्वास कर लेना कि खाना तो स्वधर्मी ने ही बनाया होगा परन्तु डिलीवरी बॉय का नाम देखकर लेने से इनकार कर देना गलत है | ऐसे व्यक्तियों के लिए घर का बना खाना ही सही है | और अगर ऐसा न कर सकें तो फल या दूध दही से गुज़ारा कर लें |
क्योंकि कम्पनी इस तरह का कोई वादा नहीं करती इसलिए उसे गलत नहीं कहा जा सकता |
शुक्ला जी मशहूर हो गए और ज़ोमैटो भी …पर इस खेल ने लोगों के मन में एक गलत बीज बो दिया |
एक बाद जो इस विवाद में सामने आई है …क्योंकि कम्पनियाँ खाने का धर्म नहीं निभातीं व्यापार का धर्म निभाती हैं इसलिए क्या पता कल से वो इस बात का भी इश्तेहार शुरू कर दें कि आप को व्रत का सुद्ध सात्विक खाना स्वधर्मी के हाथों पहुचाया जाएगा | तब ज़ोमैटो भी इस दौड़ में पीछे नहीं रहेगा | हो सकता है कल को ये विज्ञापन की मुख्य लाइन बन जाए |
और अगर ऐसा हुआ तो इंसानियत की ये बहुत बड़ी हार होगी |
क्योंकि आजकल सोशल मीडिया का ज़माना है इसलिए किसी भी तरह का विचार रखें सामान लोगों के जुड़ते देर नहीं लगती | जरूरी है इस तरह के विचारों को ख़ारिज किया जाए और भटके लोगों को समझाया जाए कि ..
इंसानियत सबसे बड़ा धर्म होता है | और प्रेम सब्सेबदी पूजा |
अपने -अपने धर्मिक पूर्वाग्रहों को छोड़ कर साथ मिल बैठ कर खाने से इस सबसे बड़े धर्म की रक्षा होती है |
नीलम गुप्ता
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बिल्कुल सही कहा नीलम दी कि खाने का कोई धर्म नहीं होता। शुक्ला जी जैसे सिरफिरे लोग आज भी हैं समाज में हैं यह हमारी सोच का पतन ही हैं।